Munna Kumar

Munna Kumar "हर दिन नई प्रेरणा! सफलता, संघर्ष और सकारात्मकता से जुड़ी बातें, सिर्फ आपके लिए।"

एकता की ताकत 🦜🦜एक जंगल में तोतों का बड़ा झुंड रहता था। वे सब मिलकर पेड़ों पर बैठते, साथ उड़ते और एक-दूसरे की मदद करते।जं...
18/08/2025

एकता की ताकत 🦜🦜

एक जंगल में तोतों का बड़ा झुंड रहता था। वे सब मिलकर पेड़ों पर बैठते, साथ उड़ते और एक-दूसरे की मदद करते।
जंगल के शिकारी को यह पसंद नहीं था। उसने सोचा – “अगर मैं एक-एक तोते को पकड़ूँगा, तो मुश्किल होगी, लेकिन अगर उन्हें अलग कर दूँ तो आसानी से फँस जाएंगे।”

वो पेड़ों पर जाल बिछाने लगा। लेकिन हुआ उल्टा –
जब एक तोता जाल में फँसता, तो बाकी सारे तोते मिलकर अपनी चोंच और पंखों से रस्सी काटते और दोस्त को छुड़ा लेते।

शिकारी हार मान गया और बोला –
“सच है, जहाँ एकता होती है, वहाँ हार नामुमकिन है।”

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👉 सीख:

अकेले इंसान कमजोर पड़ सकता है,

लेकिन जब सब साथ हों, तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी आसान हो जाती है।

 #संग_साथ_की_ताकत 🐘🐘अफ्रीका के एक जंगल में एक माँ हाथी अपने छोटे बच्चे के साथ रहती थी। बच्चा छोटा था, इसलिए अक्सर चलने म...
18/08/2025

#संग_साथ_की_ताकत 🐘🐘

अफ्रीका के एक जंगल में एक माँ हाथी अपने छोटे बच्चे के साथ रहती थी। बच्चा छोटा था, इसलिए अक्सर चलने में पीछे रह जाता। कभी ठोकर खाता, कभी गिर जाता।

लेकिन माँ हाथी हर बार रुककर अपने बच्चे को अपनी सूँड़ से सहारा देती और उसे फिर से खड़ा करती। बच्चा धीरे-धीरे चलना सीख रहा था।

एक दिन नदी पार करते समय पानी का बहाव तेज़ था। बच्चा हाथी डर गया और बीच में रुक गया। तभी माँ हाथी ने अपनी मज़बूत सूँड़ से उसे थामा और अपने पास खींच लिया।
बच्चा सुरक्षित किनारे तक पहुँच गया।

गाँव के लोग यह देखकर बोले –
“माँ का साथ हो तो कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है।”

👉 सीख:

माँ-बाप का सहारा ही बच्चे की असली ताकत है।

जीवन की हर ठोकर हमें मज़बूत बनाती है।

संग-साथ और भरोसा ही कठिनाई से बाहर निकालता है।

 #ममता_की_शक्ति 🐄🐮एक गाँव में एक गाय थी, जिसका हाल ही में एक छोटा-सा बछड़ा हुआ था। गाय पूरे गाँव में अपनी ममता के लिए मश...
18/08/2025

#ममता_की_शक्ति 🐄🐮

एक गाँव में एक गाय थी, जिसका हाल ही में एक छोटा-सा बछड़ा हुआ था। गाय पूरे गाँव में अपनी ममता के लिए मशहूर थी।
वह चाहे कितनी भी थकी हो, लेकिन अपने बछड़े को हमेशा पहले दूध पिलाती, फिर खुद कुछ खाती।

एक दिन गाँव में अकाल पड़ा। लोगों के पास खाने-पीने की चीज़ें कम हो गईं। गाय को भी घास-पानी कम मिलने लगा।
गाँव वाले सोचते थे कि अब शायद गाय अपने बछड़े को दूध नहीं पिला पाएगी।

लेकिन चमत्कार हुआ! 🪄
गाय खुद भूखी रह जाती, लेकिन बछड़े के लिए दूध देती रही। धीरे-धीरे गाँव वाले गाय की ममता देखकर भावुक हो गए और सबने मिलकर उसके लिए चारा और पानी जुटाया।

👉 इस घटना से गाँव वालों ने सीखा कि निस्वार्थ प्रेम और ममता में इतनी शक्ति होती है कि वो कठिन से कठिन हालात को भी आसान बना देती है।

"स्वतंत्रता का अमूल्य उपहार, शहीदों के बलिदान को नमन। 🇮🇳15 अगस्त की शुभकामनाएँ!"
14/08/2025

"स्वतंत्रता का अमूल्य उपहार, शहीदों के बलिदान को नमन। 🇮🇳
15 अगस्त की शुभकामनाएँ!"

13/08/2025
🐅 नेपाल से बगहा तक का आतंक – 20 घंटे चला बाघ का ड्रामाबगहा के लोगों के लिए यह एक ऐसा दिन था, जिसे वो जिंदगी भर नहीं भूल ...
12/08/2025

🐅 नेपाल से बगहा तक का आतंक – 20 घंटे चला बाघ का ड्रामा

बगहा के लोगों के लिए यह एक ऐसा दिन था, जिसे वो जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे। नेपाल के चितवन नेशनल पार्क के माड़ी जंगल से आया एक 12 साल का बूढ़ा बाघ, पानी और शिकार की तलाश में बिहार के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व इलाके में आ पहुंचा। लेकिन यह सफर यहीं खत्म नहीं हुआ — बाघ सीधे बगहा के खेतों में घुस गया और फिर जो हुआ, उसने पूरे इलाके में दहशत फैला दी।

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किसान पर जानलेवा हमला

65 वर्षीय किसान मधुरा महतो सोमवार सुबह अपने खेत गए थे। उन्हें क्या पता था कि आज खेत में फसल नहीं, मौत उनका इंतजार कर रही है। बाघ ने अचानक पीछे से हमला किया, उनके गले और सिर के हिस्से को नोच डाला और उन्हें मौके पर ही मार डाला।

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100 लोगों का ऑपरेशन, 20 घंटे की जंग

बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग ने 100 लोगों की टीम बनाई। मंगलवार सुबह 6 बजे से ऑपरेशन शुरू हुआ। कई बार बाघ नजर आया, कई बार खेतों में गायब हो गया। सुबह 10 बजे, बाघ गन्ने के खेत में छिपा मिला। मुजफ्फरपुर से बुलाए गए ट्रैंकुलाइज गन एक्सपर्ट ने करीब 20 फीट की दूरी से निशाना साधा। पहली ही शॉट में बाघ बेहोश होकर खेत में गिर पड़ा।

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ट्रैकर पर हमला

रेस्क्यू के दौरान एक पल ऐसा भी आया जब बाघ ने सीनियर टाइगर ट्रैकर विजय उरांव पर हमला कर दिया। वीडियो में साफ दिखता है कि बाघ ने उन्हें दबोच लिया था, लेकिन तभी 6 वनकर्मी लाठी-डंडे लेकर टूट पड़े और साथी को बचा लिया।

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बूढ़े बाघ की मजबूरी

विशेषज्ञ बताते हैं कि 12 साल की उम्र में बाघ की शिकार करने की क्षमता कम हो जाती है। नए और ताकतवर बाघों से बचने के लिए वह अपना इलाका छोड़ देता है और अक्सर जंगल के बाहर के इलाकों में आकर शिकार करता है। यही कारण था कि यह बाघ चितवन से निकलकर VTR और फिर बगहा के पास आ पहुंचा।

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इलाज के लिए पटना रवाना

बाघ की हालत काफी कमजोर थी, खून की कमी थी और शरीर पर चोट के निशान भी थे। उसे बेहतर इलाज के लिए संजय गांधी जैविक उद्यान, पटना भेजा गया, जहां उसकी देखभाल की जाएगी।

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यह कहानी सिर्फ एक बाघ के रेस्क्यू की नहीं है, बल्कि इंसान और जंगल के उस जटिल रिश्ते की है, जहां सीमाएं मिट जाती हैं — और डर, साहस व जिम्मेदारी एक साथ मैदान में उतरते हैं।

💔 एकतरफा प्यार, डर और लापरवाही — गुमान से गुनाह तक की कहानीगुड़िया… सिर्फ़ 19 साल की मासूम लड़की। सपनों से भरी आंखें, पढ...
12/08/2025

💔 एकतरफा प्यार, डर और लापरवाही — गुमान से गुनाह तक की कहानी

गुड़िया… सिर्फ़ 19 साल की मासूम लड़की। सपनों से भरी आंखें, पढ़ाई का जुनून और घर वालों का सहारा। लेकिन किसे पता था कि उसकी जिंदगी कुछ लोगों की लापरवाही और एक बीमार सोच की वजह से इतनी जल्दी खत्म हो जाएगी।

गुड़िया की बड़ी बहन सपना, परिवार का सहारा बनने के लिए एक स्कूल में पढ़ाने लगी। वहीं मिला उसे आरोपी कुमोद—40 साल का शिक्षक, जिसने सपना से एकतरफा प्यार करना शुरू कर दिया। सपना ने उसे नज़रअंदाज़ किया, लेकिन कुमोद का जुनून पागलपन में बदल गया। जब उसने देखा कि सपना उसकी परवाह नहीं करती, तो उसने धमकी और डर का खेल शुरू किया।

पहले मीठी बातें, फिर रोज़-रोज़ फोन, स्कूल में पीछा करना, और जब ये सब नहीं चला तो खुलेआम धमकियां। उसने सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप पर सपना और उसके परिवार को मारने की धमकियां दीं। तस्वीरें, गोलियां, पिस्तौल — हर तरीके से डराने की कोशिश।

सपना ने स्कूल जाना छोड़ दिया, लेकिन कुमोद का जुनून नहीं टूटा। उसने अब गुड़िया और उसकी मां को भी धमकाना शुरू कर दिया। गुड़िया ने साहस जुटाकर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई, प्रिंट आउट, मैसेज, सबूत… सब दिया। लेकिन पुलिस की उदासीनता और कार्रवाई की कमी ने आरोपी का हौसला और बढ़ा दिया।

और फिर वो दिन आया — सोमवार की सुबह, जब गुड़िया रोज़ की तरह कोचिंग के लिए निकली। रास्ते में कुमोद मिला… हाथ में बंदूक, आंखों में नफरत और बदले की आग। उसने गुड़िया के सिर पर गोली मार दी। 19 साल की मासूम वहीं सड़क पर गिर गई, उसकी जिंदगी खत्म हो गई।

गुड़िया अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन पीछे छोड़ गई है सवाल —

अगर पुलिस ने समय पर कार्रवाई की होती, तो क्या गुड़िया जिंदा होती?

कब तक महिलाएं एकतरफा प्यार और जुनून के नाम पर जान गंवाती रहेंगी?

कब तक शिकायत दर्ज कराने के बाद भी पीड़ितों को सुरक्षा नहीं मिलेगी?

📌 सबक:

किसी भी धमकी को हल्के में मत लें, तुरंत FIR कराएं और उसकी कॉपी सुरक्षित रखें।

परिवार, स्कूल और समाज को ऐसे मामलों में चुप नहीं रहना चाहिए।

पुलिस प्रशासन को पीड़ित की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए, वरना "लापरवाही" भी अपराध बन जाती है।

गुड़िया की कहानी सिर्फ़ एक खबर नहीं, एक चेतावनी है—
"चुप्पी कभी-कभी जान ले लेती है, और लापरवाही कातिल को हिम्मत देती है।"

📜 एग्रीकल्चर सेक्टर की बर्बादी – अंग्रेजों की कॉमर्शियल खेती का काला सच 🇮🇳भारत का कृषि इतिहास सिर्फ खेती-बाड़ी का नहीं, ...
11/08/2025

📜 एग्रीकल्चर सेक्टर की बर्बादी – अंग्रेजों की कॉमर्शियल खेती का काला सच 🇮🇳

भारत का कृषि इतिहास सिर्फ खेती-बाड़ी का नहीं, बल्कि संघर्ष और शोषण का भी गवाह है। अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय किसानों को अपने खेतों में अनाज नहीं, बल्कि कपास, जूट, नील, अफीम जैसी कॉमर्शियल फसलें उगाने के लिए मजबूर किया गया।

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🌾 क्यों आई ये बर्बादी?

भारत में कपड़ा उद्योग बढ़ने की बजाय खत्म हो गया।

अंग्रेजों ने किसानों को ज़बरदस्ती ऐसी फसलें उगाने को कहा जिनकी यूरोप में ज़्यादा मांग थी।

किसानों के पास अपने खाने के लिए भी अनाज नहीं बचता था।

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💰 टैक्स और शोषण का जाल

जितना उत्पादन किसान करते, उसका बड़ा हिस्सा टैक्स में चला जाता।

ब्रिटिश व्यापारी पहले से ही तय कीमत पर फसल खरीदते और कई बार पैसा भी रोक लेते।

किसान कर्ज में डूबते गए और गरीबी का शिकार हुए।

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📊 चौंकाने वाले आंकड़े

1896-97 में 16 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिर्फ अफीम और नील की खेती हुई।

करीब 19 हज़ार टन इंडिगो यूरोप भेजा गया।

गेहूं, चावल जैसी खाने की फसलों की खेती घटने से देश में अकाल और भुखमरी फैली।

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⚠️ परिणाम
अंग्रेजों की इस नीति से भारतीय कृषि आत्मनिर्भरता खो बैठी। किसान पेट भरने के लिए तरस गए और भारत एक बड़े भूख संकट में फंस गया।

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✊ सीख
कृषि का असली उद्देश्य लोगों का पेट भरना है, न कि सिर्फ मुनाफा कमाना। इतिहास हमें सिखाता है कि खेती को हमेशा लोगों की ज़रूरतों के हिसाब से प्राथमिकता देनी चाहिए।

🇮🇳 भारतीय कपास – अंग्रेज़ों की लूट की एक और कहानी 🧵क्या आप जानते हैं कि 19वीं सदी में भारत का कपास कैसे अंग्रेज़ों के मु...
11/08/2025

🇮🇳 भारतीय कपास – अंग्रेज़ों की लूट की एक और कहानी 🧵

क्या आप जानते हैं कि 19वीं सदी में भारत का कपास कैसे अंग्रेज़ों के मुनाफे का हथियार बन गया? यह कहानी सिर्फ कपास की नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक रीढ़ तोड़ने की भी है।

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📜 कैसे शुरू हुई लूट?

ब्रिटेन की कपड़ा मिलों के लिए कपास पहले अमेरिका से आता था।

1861 में अमेरिकी सिविल वॉर शुरू होते ही वहां से कपास की सप्लाई रुक गई।

ब्रिटेन ने भारत से बड़े पैमाने पर कपास लेना शुरू किया।

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💰 भारत में असर

अचानक मांग बढ़ने से कपास की कीमत 3 आने प्रति किलो से बढ़कर 12 आने प्रति किलो हो गई।

किसान ज्यादा मुनाफे के लालच में बड़े पैमाने पर कपास उगाने लगे।

लेकिन 1865 में सिविल वॉर खत्म होते ही अंग्रेज़ों ने भारत से कपास खरीद कम कर दी।

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🚨 किसानों की मजबूरी

कर्ज में डूबे किसान अब मजबूर होकर अंग्रेज़ों को ही कम दाम में कपास बेचने लगे।

अंग्रेज़ कपास इंग्लैंड भेजते, वहां कपड़ा बनाकर महंगे दामों में भारत में ही बेचते।

शशि थरूर (An Era of Darkness) के अनुसार, उस समय भारत की आबादी के हिसाब से हर व्यक्ति के लिए 3 गज से ज्यादा सूती कपड़ा इंग्लैंड से वापस आता था।

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📉 नतीजा

1896 तक भारत में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों में से सिर्फ 8% भारतीय मिलों में बनते थे।

बाकी 92% कपड़े इंग्लैंड से आयात किए जाते थे।

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💬 सोचिए! हमारा ही कपास, हमारी ही मेहनत, और मुनाफा किसी और का!
आपके विचार क्या हैं? कमेंट में बताएं…

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