જય આદીવાસી - जय आदिवासी

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જય આદીવાસી - जय आदिवासी જય આદીવાસી � જય જોહાર
ભારત દેશના મૂળ નાગરીક

हमारी मिट्टी, हमारे नियम, हमारे अधिकार, आदिवासी संघर्ष कभी नहीं होता बेकार।जो कदम उठाते हैं, इतिहास बनाते हैं।
13/12/2025

हमारी मिट्टी, हमारे नियम, हमारे अधिकार, आदिवासी संघर्ष कभी नहीं होता बेकार।
जो कदम उठाते हैं, इतिहास बनाते हैं।

हमने दर्द को हथियार बनाया है,हमने जुल्म को ललकार बनाया है,आदिवासी हूं…झुकना नहीं सीखा,सीना ठोककर अधिकार कमाया है।
12/12/2025

हमने दर्द को हथियार बनाया है,
हमने जुल्म को ललकार बनाया है,
आदिवासी हूं…
झुकना नहीं सीखा,
सीना ठोककर अधिकार कमाया है।

जो गिरकर उठता है वही सबसे बड़ा होता है,क्योंकि ठोकरें ही इंसान को मजबूत बनाती हैं।
12/12/2025

जो गिरकर उठता है वही सबसे बड़ा होता है,
क्योंकि ठोकरें ही इंसान को मजबूत बनाती हैं।

धरती हमारी माँ है… इसे बेचने या लूटने का अधिकार किसी को नहीं।   #जोहार    #आदिवासी
11/12/2025

धरती हमारी माँ है… इसे बेचने या लूटने का अधिकार किसी को नहीं।

#जोहार #आदिवासी

🌳 1. वनाधिकार क्या है? (Forest Rights Act – FRA 2006)भारत सरकार ने 2006 में Forest Rights Act बनाया, जिसे वनाधिकार कानून...
11/12/2025

🌳 1. वनाधिकार क्या है? (Forest Rights Act – FRA 2006)

भारत सरकार ने 2006 में Forest Rights Act बनाया, जिसे वनाधिकार कानून भी कहा जाता है।
इसका मुख्य उद्देश्य था:

✔️ जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के अधिकारों को कानूनी मान्यता देना

✔️ “जंगल–जमीन से बेदखली” रोकना

✔️ आदिवासियों को जंगल का मालिकाना हक, खेती का हक, और ग्रामसभा की शक्ति देना

FRA कहता है कि:

जंगलों में 75 साल से रहने वाले समुदायों का भूमि पर अधिकार होगा

वे कुदरती संसाधनों (Minor Forest Produce) पर अधिकार रखते हैं

ग्रामसभा ही अंतिम निर्णय लेने वाली संस्था है — चाहे वन विभाग हो, खनन कंपनी हो या कोई सरकारी प्रोजेक्ट

🪓 2. लकड़ी कटान (Deforestation) पर आदिवासी विरोध क्यों?

कई राज्यों में वन विभाग या निजी कंपनियाँ बड़े पैमाने पर:

पेड़ों की कटाई

जंगल साफ करना

सड़क, प्रोजेक्ट, प्लांटेशन बनाना

शुरू कर देती हैं।

इससे आदिवासियों को 3 सबसे बड़े खतरे होते हैं:

1. उनका घर और जीवन का आधार खत्म होता है

2. जंगल के पौधे-पशु मरते हैं, पर्यावरण बिगड़ता है

3. उन्हें गाँव छोड़कर शहर/मज़दूरी में जाना पड़ता है

इसलिए आदिवासी समुदाय कहते हैं:

“जंगल सिर्फ पेड़ नहीं, यह हमारी संस्कृति, पहचान और जीवन है।”

⚒️ 3. खनन (Mining) के खिलाफ आदिवासी आंदोलन

भारत में कुछ बड़े खनन प्रोजेक्ट —
जैसे कोयला खनन, बॉक्साइट (अल्युमिनियम), लोहे की खदानें —
सीधे आदिवासी क्षेत्रों में सामने आते हैं।

आदिवासी विरोध के कारण:

1️⃣ जमीन छीन जाने का डर
2️⃣ विस्थापन (घर उजड़ना)
3️⃣ प्रदूषण — पानी दूषित, खेती नष्ट
4️⃣ पहाड़ और जंगल की पवित्र जगहें खत्म हो जाना

सबसे बड़ा कारण:

ग्रामसभा की मंजूरी के बिना खनन शुरू करना—जो कानूनन गलत है

FRA और PESA कानून के तहत बिना ग्रामसभा की सहमति के कोई भी खनन प्रोजेक्ट मान्य नहीं है।

🪧 4. आदिवासी समुदाय कैसे विरोध कर रहे हैं?

भारत में कई जगहों पर आदिवासी भाई–बहन शांतिपूर्वक लेकिन मज़बूती से विरोध कर रहे हैं:

✔️ धरना, प्रदर्शन

✔️ जंगल सत्याग्रह

✔️ “देवस्थान/सरना” स्थलों की रक्षा

✔️ ग्रामसभा प्रस्ताव

✔️ कोर्ट में याचिका

कई महत्वपूर्ण आंदोलन हुए:nioamgiri आंदोलन (ओडिशा) – बक्साइट खनन रोका गया

Hasdeo Arand (छत्तीसगढ़) – कोयला खदानों के खिलाफ जंगल बचाओ आंदोलन

Jharkhand – Pathalgadi Movement – ग्रामसभा की शक्ति को स्थापित करने का प्रयास

Maharashtra – Gadchiroli – Mining विरोध

इन आंदोलनों में आदिवासी महिलाओं की भूमिका भी बहुत मजबूत रही है।

✊ 5. आदिवासी मांग क्या है?

✔️ जंगल, जमीन, जल पर कानूनी अधिकार

✔️ ग्रामसभा को अंतिम निर्णय की शक्ति

✔️ खनन–प्रोजेक्ट से पहले जन-सहमति

✔️ जबरन विस्थापन रोकना

✔️ पर्यावरण और परंपरा की रक्षा

उनका मूल वाक्य:

“जंगल बचाओ, जीवन बचाओ”

क्योंकि आदिवासी समाज मानता है:

“जंगल खत्म हुआ तो आदिवासी नहीं रहेगा।

और आदिवासी नहीं रहा तो जंगल भी नहीं बचेगा।”

🌱 6. आदिवासी समाज की इस लड़ाई का महत्व

यह सिर्फ जमीन की लड़ाई नहीं है —
यह संस्कृति, पहचान, अस्तित्व और भविष्य की लड़ाई है।

🌿 जंगल = जीवन

🌊 नदियाँ = रक्त

🏞️ पहाड़ = देवस्थान

🌱 भूमि = माँ

अगर जंगल और जमीन सुरक्षित रहेगी,
तो आदिवासी संस्कृति, कला, बोली, ज्ञान सब सुरक्षित रहेंगे।

08/12/2025

“उन्होंने शरीर छोड़ा,
पर इंसाफ की लौ छोड़ गए।”
#जोहार #शिक्षा #आदिवासी #धर्म @ [122138170178046842:49210:] Lalu Tirkey Jagdish Narain Desai Sanjay Mîm Sheîkh आदिवासी परिवार भीलप्रदेश Shivbalk Bediya Chetan Singh Manish Singh Surekha Patel Tulsi Parv

06/12/2025

6 डिसेंबर महापरिनिर्वाण दिवस पर कोटि–कोटि श्रद्धांजलि
#शिक्षा #संविधान #धर्म #आदिवासी #जोहार #भीम Jagdish Narain Mîm Sheîkh Desai Sanjay आदिवासी परिवार भीलप्रदेश Manish Singh Sunil Janatkar Rajendrakumar Arvindbhai Tadvi Chetan Singh Lalu Tirkey Shivbalk Bediya

04/12/2025

शिक्षा ही दुनिया बदल सकती है...!
#शिक्षा #धर्म #जोहार #संविधान #आदिवासी
Mîm Sheîkh Desai Sanjay Sunil Janatkar आदिवासी परिवार भीलप्रदेश Jagdish Narain

03/12/2025

जंगल की रक्षा करो तो...? 🌳☘️🏔️🪨🌨️
#जोहार #आदिवासी #संविधान

युवा ‘नक्सल’ पैदा नहीं होते  हालात उन्हें ऐसा बना देते हैं। 😕🤔💔🌿🔥 आदिवासी युवाओं को नक्सलवाद की ओर धकेलने वाली मजबूरियाँ...
30/11/2025

युवा ‘नक्सल’ पैदा नहीं होते हालात उन्हें ऐसा बना देते हैं। 😕🤔💔
🌿🔥 आदिवासी युवाओं को नक्सलवाद की ओर धकेलने वाली मजबूरियाँ
👉भारत का आदिवासी समाज हजारों वर्षों से जंगल, जमीन और प्रकृति के साथ गहरी एकात्मता में जीता आया है।
लेकिन पिछले कई दशकों में आदिवासी इलाकों में कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं जिन्होंने युवाओं के सामने गहरी निराशा और संघर्ष पैदा किया।

1. जंगल–जमीन का लगातार नुकसान

आदिवासी समाज की पहचान ही जंगल, जमीन और नदी से जुड़ी होती है।
लेकिन कई जगहों पर
जबरन भूमि अधिग्रहण
गलत वन कानूनों का उपयोग

परियोजनाओं के नाम पर विस्थापन
ने आदिवासी परिवारों को घर-बार से दूर कर दिया।

👉 जब किसी की पहचान ही छीन ली जाए, तो उसके अंदर विरोध पैदा होना स्वाभाविक है।

⭐ 2. पुलिसिया अत्याचार, फर्जी मुकदमे और डर का माहौल

कई रिपोर्टों में यह सामने आया है कि कई आदिवासी युवाओं पर बिना सबूत के केस लगाए गए,
उनके गाँवों को “नक्सल जोन” बताकर सामान्य लोगों पर भी शक किया गया।

👉 इस डर और दबाव की वजह से कई युवा मुख्यधारा से कटने लगे।

3. शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं का अभाव

कई आदिवासी क्षेत्रों में:

स्कूल दूर हैं
शिक्षक नहीं आते
अस्पताल नहीं
सड़कें नहीं

इन कठिनाइयों की वजह से युवा महसूस करते हैं कि राज्य उन्हें भूल चुका है।

👉 जब युवाओं को यह लगे कि “सिस्टम हमारी नहीं सुनता”,
तो वे गलत रास्तों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।

4. माओवादियों का फायदा उठाना

जंगल क्षेत्रों में माओवादी (नक्सलवादी) समूह इन पीड़ाओं का फायदा उठाते हैं।
वे युवाओं को यह कहकर जोड़ते हैं कि:

“सरकार तुम्हें दबा रही है।”
“तुम्हें न्याय नहीं मिलेगा।”
“हथियार उठाना ही समाधान है।”

👉 सच यह है कि हथियार का रास्ता किसी समस्या का हल कभी नहीं होता,
लेकिन दुःखी और ठुकराया हुआ युवा कभी–कभी इसे विकल्प समझ लेता है।

5. युवा ‘नक्सल’ पैदा नहीं होते हालात उन्हें ऐसा बना देते हैं

कोई भी आदिवासी युवा जन्म से नक्सली या विद्रोही नहीं होता।
उसे मजबूर करती हैं🏹

रोज-रोज की बेइज्जती
जंगल पर हमले
अफसरों का भ्रष्टाचार
अपनी आवाज़ न सुने जाने का दर्द

युवा गुस्से में, निराशा में या डर में गलत रास्ता चुन लेते हैं।
🌿 आदिवासी समाज की असली लड़ाई क्या है?

👉 जंगल बचाना
👉 जमीन बचाना
👉 संस्कृति बचाना
👉 सम्मान बचाना
👉 और शांतिपूर्ण, संवैधानिक तरीके से अधिकार प्राप्त करना
यही सही रास्ता है।
हिंसा से न आदिवासी हित मजबूत होते हैं, न विकास आता है।
🌱 आदिवासी युवाओं को क्या चाहिए?
न्याय
सम्मान
सुनवाई
रोजगार
शिक्षा
सुरक्षा
और संविधान द्वारा मिले अधिकारों का सही उपयोग।
👉 आदिवासी युवा नक्सल नहीं बनना चाहते…
उन्हें परिस्थितियाँ, अन्याय और व्यवस्था की बेरुख़ी इस दिशा में धकेल देती है।
सच्चा समाधान अधिकारों, संवाद, विकास और न्याय में है हथियारों में नहीं।

29/11/2025

आदिवासी है हम नक्सलवादी समझने की कोशिश मत करना 🏹
#आदिवासी #जोहार #संविधान

28/11/2025

आदिवासी की आवाज उठाने वाले कौन है?

#जोहार #आदिवासी #संविधान
Janak Patel Reeti Dhurve Sahab Lal Aadivasi Lala Ravat Ravat Deva Sori Paru Paru Dilip Vircnd Wankhede Mîm Sheîkh Laxman Lal Pargi Jagdish Narain Lalu Tirkey Puja Lal Shivbalk Bediya Chetan Singh Ashok Shinde

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