29/05/2025
**"दादी, आज बेसन के लड्डू बना दो ना!"** रिद्धि ने आंखें मटकाते हुए कहा तो उर्मिला देवी मुस्कुराईं, "अरे, पहले अपना स्कूल का प्रोजेक्ट खत्म कर लो, फिर तुम्हारे लिए घी वाले लड्डू बनाऊंगी, वो भी काजू-बादाम डालकर।"
**"सच दादी? आप बेस्ट हो!"** रिद्धि ने प्यार से गले लगते हुए कहा।
उर्मिला देवी हँसते हुए बोलीं, **"हां-हां, अब जा, पहले पढ़ाई कर।"** कहकर वो रसोई की ओर चल दीं।
इधर नीहार, रिद्धि का छोटा भाई, टीवी के सामने बैठा कार्टून देख रहा था, तभी मां स्वाति की आवाज आई, **"नीहार! आज क्या खाओगे लंच में?"**
नीहार ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया, **"पास्ता! लेकिन व्हाइट सॉस वाला, मम्मा!"**
स्वाति ने हँसते हुए कहा, **"ठीक है, लेकिन सब्जी भी खानी पड़ेगी।"**
**"ठीक है मम्मा, एक शर्त पर—ब्रोकली नहीं!"** नीहार की आंखें डर से फैल गईं।
**"ठीक है बाबा, ब्रोकली नहीं।"** स्वाति ने कहा और किचन में जुट गई।
उधर उर्मिला देवी बेसन भून रही थीं, घर में घी और इलायची की खुशबू फैलने लगी। नीहार किचन में आकर बोल पड़ा, **"दादी, ये खुशबू तो जादू जैसी है!"**
**"बिलकुल! यही तो है प्यार का स्वाद।"** उर्मिला देवी ने मुस्कुरा कर कहा।
स्वाति ने जल्दी-जल्दी पास्ता तैयार किया, बच्चों की थाली सजा दी और फिर पति अर्जुन के लिए चपाती और आलू-पालक की सब्जी थाली में परोस दी।
अर्जुन ऑफिस से लौटे तो बच्चों की आवाजें, हंसी और खाने की महक से घर गूंज उठा।
डाइनिंग टेबल पर सबने साथ बैठकर खाना खाया—किसी ने दिनभर के किस्से सुनाए, किसी ने नए चुटकुले सुनाए, तो किसी ने दादी के बेसन के लड्डुओं की तारीफ की।
**घर की रसोई सिर्फ खाना नहीं बनाती, रिश्तों में मिठास घोलती है।**
स्वाति का ये घर भी एक प्यारी सी दुनिया है—जिसमें है पति अर्जुन, बच्चों रिद्धि और नीहार के साथ सास उर्मिला देवी। अर्जुन के पिता श्रीमान दिनेश शर्मा का निधन कई साल पहले हो चुका है, वो एक स्कूल टीचर थे। अब उर्मिला देवी ही बच्चों को संस्कारों से सींचती हैं और स्वाति उस घर को अपने प्यार और स्वाद से महकाए रखती है।
अगली सुबह…
"रिद्धि! तुम्हारा स्कूल प्रोजेक्ट तैयार है ना?" स्वाति ने आवाज दी।
"मम्मा, सब तैयार है, बस प्रिंट निकलवानी है," रिद्धि ने जल्दी-जल्दी बैग तैयार करते हुए कहा।
उधर नीहार रोज़ की तरह धीरे-धीरे टूथब्रश कर रहा था। स्वाति ने आवाज लगाई, "नीहार! अगर आज भी बस छूटी तो मैं पास्ता बनाना बंद कर दूंगी!"
नीहार फौरन मुंह धोते भागा, "नहीं मम्मा! बस दो मिनट!"
दादी उर्मिला देवी बालकनी में तुलसी को पानी दे रही थीं, फिर मंदिर में बैठकर धीरे-धीरे प्रार्थना करने लगीं। उनकी आंखों में संतोष था, पर दिल में कुछ खालीपन भी।
अर्जुन सुबह की चाय लेकर वहीं आ गए। "मां, आप हमेशा की तरह सुबह-सुबह भगवान से बातें कर रही हैं?"
"हां बेटा," उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "भगवान ही तो हैं जिनसे अब मन की सारी बातें कहती हूं।"
**"आप मुझसे भी कहा करें मां,"** अर्जुन ने धीरे से कहा।
उर्मिला देवी कुछ पल शांत रहीं, फिर बोलीं, **"कभी वक्त मिले तो मेरी पुरानी डायरी पढ़ लेना... उसमें मेरी पूरी दुनिया है।"**
अर्जुन चौंका, "डायरी?"
"हां, जब तुम्हारे पिताजी का ट्रांसफर हुआ करता था, और तुम बच्चे थे... उस समय की यादें, सपने, कुछ अधूरे वादे… सब लिखा है उसमें।"
स्वाति भी वहीं आ गई थी। "मांजी, अगर आप चाहें तो मैं आपकी डायरी को किताब की तरह तैयार करवा दूं। रिद्धि भी तो कह रही थी कि स्कूल में ‘फैमिली हिस्ट्री प्रोजेक्ट’ बनाना है।"
उर्मिला देवी की आंखें भर आईं। "अगर मेरी यादों से कुछ सीख मिल सके, तो इससे बड़ा क्या सम्मान होगा मेरे लिए?"
उसी शाम जब रिद्धि ने दादी की डायरी पढ़नी शुरू की, तो उसमें एक किस्सा था—
**डायरी का एक पन्ना:**
*"5 जून 1987 —*
आज बद्री का प्रमोशन हो गया है। हम देहरादून जा रहे हैं। अर्जुन छोटा है, उसे बार-बार खांसी आ रही है। लेकिन बद्री कहता है — 'उर्मिला, ये बच्चे हमारी जड़ें हैं, और तुम्हारी मुस्कान हमारे घर की छत। बस सब ठीक हो जाएगा।'
मैंने आज पहली बार किसी सरकारी दफ्तर में घुसकर अकेले काम करवाया। बद्री ने कहा — 'तुम कर सकती हो, और तुम्हें करना चाहिए।'
काश अर्जुन कभी ये जाने कि उसके पापा कितने बड़े सपने देखते थे उसके लिए।\_"
डायरी के उन पन्नों ने घर में एक नई लहर ला दी — यादों की, अपनापन की, और समझदारी की।
अर्जुन ने ठान लिया — वो अब हर रविवार को मां के साथ बैठकर डायरी पढ़ेगा, और बच्चों को अपने बचपन की कहानी सुनाएगा।
स्वाति ने एक रजिस्टर निकाला और लिखना शुरू किया —
**"खुशबू घर की — एक मां की डायरी से…"**
**"दादी, आपकी डायरी तो किसी कहानी की किताब जैसी है!"**
रिद्धि ने आंखों में चमक लिए कहा। वो अपने स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए दादी की मदद लेना चाह रही थी।
**"दादी, क्या मैं आपकी कहानी अपने प्रोजेक्ट में लिख सकती हूं?"**
उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, **"हां बेटा, मगर कुछ किस्से दिल के होते हैं... उन्हें संभाल के कहना होता है।"**
अर्जुन लिविंग रूम में बैठा सब देख रहा था। उसके हाथों में वही डायरी थी, जिसमें उसके बचपन, उसकी मां के संघर्ष, और पिता के सपनों की परतें खुल रही थीं।
"रिद्धि, एक काम करते हैं," अर्जुन ने सुझाव दिया, "हम सब मिलकर इस प्रोजेक्ट को बनाएंगे — तुम, मैं, मम्मा, दादी और नीहार भी!"
**"क्या! मैं भी?"** नीहार ने चौंक कर पूछा, "मुझे तो सिर्फ खाना अच्छा लगता है और वीडियो गेम।"
स्वाति हँस पड़ी, "बिलकुल बेटा, और खाने का ज़िक्र भी तो होना चाहिए, आखिर घर की सबसे अच्छी यादें किचन से ही आती हैं!"
**प्रोजेक्ट का नाम रखा गया:**
**"हमारा घर — यादों की चौखट"**
रिद्धि ने कवर पेज बनाया जिसमें घर की छत पर बैठे एक बुज़ुर्ग, पास खेलते दो बच्चे और रसोई की खिड़की से झांकती एक मां की आकृति थी।
**पहला अध्याय:** *"दादी की आँखों से"* — इसमें उर्मिला देवी के बचपन, उनके विवाह, और बद्रीनाथ जी के साथ उनके संघर्षों का ज़िक्र था। कैसे एक छोटे से गांव की लड़की ने शहर आकर खुद को संभाला और अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए।
**दूसरा अध्याय:** *"पापा का बचपन"* — अर्जुन ने अपने पहले स्कूल, पुराने ट्रांजिस्टर पर सुनी गई रामायण, और अपने पिता से पहली बार डांट खाने की बात लिखवाई।
**तीसरा अध्याय:** *"मम्मा का स्वाद"* — इसमें स्वाति ने अपनी शादी, पहली बार खाना बनाते समय की गड़बड़ी और फिर धीरे-धीरे पूरे घर का स्वाद बनने तक की कहानी लिखी।
**चौथा अध्याय:** *"नीहार की नाक में दम"* — नीहार का हिस्सा सबसे मज़ेदार था — कैसे वो ब्रोकली से डरता है, कैसे उसने एक बार चुपके से पास्ता में चॉकलेट डाल दी थी और दादी ने भी बिना बोले खा लिया।
**पांचवां अध्याय:** *"रिद्धि की कलम"* — इसमें रिद्धि ने लिखा:
*"घर सिर्फ दीवारों से नहीं बनता। वो बनता है एक दादी की बातों से, पापा की कहानियों से, मम्मा के हाथों के स्वाद से और नीहार के शरारतों से।
मेरा घर मेरी दुनिया है — और मैं इस कहानी की सबसे छोटी लेखिका हूं।"*
**प्रोजेक्ट सबमिट करने वाले दिन**, जब रिद्धि स्कूल गई, तो उसकी क्लास टीचर की आंखें नम थीं।
"रिद्धि, तुम्हारा प्रोजेक्ट पढ़कर लगा जैसे मैं तुम्हारे घर में बैठी हूं — ऐसा एहसास कम ही आता है," मैडम ने कहा।
रिद्धि मुस्कुरा दी, और बोली,
**"मैडम, मेरी दादी कहती हैं — घर वो होता है जहाँ कहानियाँ सांस लेती हैं।"**
घर लौटकर रिद्धि ने सबको गले लगा लिया।
स्वाति ने कहा, "आज के लिए मिठाई बनानी चाहिए!"
**"गाजर का हलवा?"** नीहार ने खुशी से पूछा।
**"हाँ, लेकिन ब्रोकली की सब्ज़ी भी!"** स्वाति ने आंखें तरेरी।
**"उफ़! फिर से?"** नीहार की चीख सुनकर पूरा घर हँसी से गूंज उठा।