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"गरबा, जो कभी माँ की भक्ति और आस्था का प्रतीक था,
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रिश्ते की डोर
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धर्म को लूट का जरिया बना दिया है लोगों ने
11/09/2025

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|| खोई हुई उड़ान ||राधा एक छोटे से कस्बे की बेटी थी। उसके पिता स्कूल में अध्यापक और माँ गृहिणी। घर अमीर नहीं था, लेकिन इ...
10/09/2025

|| खोई हुई उड़ान ||

राधा एक छोटे से कस्बे की बेटी थी। उसके पिता स्कूल में अध्यापक और माँ गृहिणी। घर अमीर नहीं था, लेकिन इज़्ज़त और संस्कारों की कमी भी नहीं थी। बचपन से ही राधा होशियार, हँसमुख और सपनों से भरी लड़की थी। स्कूल की पढ़ाई खत्म होते ही उसने कॉलेज में दाखिला लिया। उम्र के साथ उसका मन भी नए ख्वाब बुनने लगा।
18 साल की दहलीज़ पर कदम रखते ही उसे लगा जैसे दुनिया बदल गई है। अब वो "बड़ी" हो गई है। उसे लगा अब उसकी ज़िंदगी उसकी अपनी है। माँ-बाप की बातें उसे "पाबंदी" जैसी लगने लगीं।
कॉलेज में उसका दायरा बढ़ा। नई सहेलियाँ मिलीं, सोशल मीडिया की चकाचौंध से वो और भी आकर्षित हुई। इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सएप – इन सबने उसे एक नया संसार दिखाया। और इसी दुनिया में उसकी मुलाकात "अरमान" से हुई।
अरमान उसकी पोस्ट पर लाइक करता, तारीफ़ें करता। वो कहता – “तुम्हारी आँखों में तो पूरा समंदर है… तुम बहुत खास हो।”
राधा को पहली बार किसी ने इतना महत्व दिया था। उसके मासूम दिल को ये सब बेहद सच्चा लगा।
धीरे-धीरे बातचीत घंटों तक चलने लगी। अरमान ने कहा –
“तुम्हारे माँ-बाप तुम्हें बाँधकर रखते हैं। अगर तुम सच में उड़ना चाहती हो तो मेरे पास आ जाओ… मैं तुम्हें पूरी आज़ादी दूँगा।”
राधा ने माँ को बताया कि उसे मॉडलिंग करनी है। माँ ने समझाया –
“बेटी, ये दुनिया उतनी आसान नहीं है जितनी दिखती है। ज़रा सोच-समझकर कदम रखना।”
लेकिन राधा को लगा माँ उसकी "आजादी" छीनना चाहती है।
एक दिन अरमान ने उसे शहर बुलाया। राधा ने माँ-बाप को बिना बताए घर छोड़ दिया। उसके दिल में बस यही ख्याल था – अब उसकी ज़िंदगी नई शुरू होगी।
शहर पहुँचकर उसने पहली बार अरमान को सामने देखा। अरमान ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया। लेकिन वो मुस्कान कुछ अजीब थी… जैसे उसके पीछे कोई और राज़ छुपा हो।
शुरू के दो दिन सब अच्छा लगा। राधा को लगा उसने सही फैसला लिया है। लेकिन तीसरे ही दिन सब बदल गया।
अरमान ने कहा –
“अगर मुझे सच में चाहती हो, तो मेरे दोस्तों से भी मिलना होगा। उनका कहना मानना होगा।”
राधा डर गई। लेकिन अरमान ने प्यार के नाम पर उसे मजबूर किया। धीरे-धीरे वो जाल खुलता गया।
कुछ ही दिनों में राधा समझ गई कि वो "प्यार" नहीं, एक "सौदा" थी।
उसकी मासूमियत बिक चुकी थी। वो जगह दरअसल तस्करों का अड्डा थी जहाँ लड़कियों को धोखे से फँसाकर आगे बेच दिया जाता था।
राधा रोती, गिड़गिड़ाती –
“मुझे घर जाने दो… मेरी माँ मेरा इंतज़ार कर रही होगी।”
लेकिन अब उसके पास घर लौटने का रास्ता नहीं था।
उधर उसके गाँव में माँ हर दरवाज़ा खटखटा रही थी। वो पुलिस स्टेशन गई, रिश्तेदारों के घर गई, यहाँ तक कि मंदिर में भी रो-रोकर भगवान से कहती –
“मेरी बेटी को वापस भेज दो… वो बहुत छोटी है, उसे कुछ समझ नहीं।”
पिता का चेहरा गम से सूख गया। लोग ताने देने लगे –
"लड़की को ज़्यादा खुला छोड़ दिया होगा, वरना घर नहीं छोड़ती।"
लेकिन सच्चाई ये थी कि राधा "आजादी" और "प्यार" के नाम पर फँस गई थी।
राधा अब उस जगह पर थी जहाँ न रोने की इजाज़त थी, न हँसने की। उसके पास न फोन था, न आज़ादी। जिस आज़ादी के लिए वो घर छोड़कर आई थी, वही अब उसकी सबसे बड़ी कैद बन चुकी थी।
कभी-कभी रात को वो आसमान की ओर देखती और सोचती –
"काश मैं घर पर होती… माँ मुझे डाँट रही होती, पापा मेरी किताबें जाँच रहे होते… वो डाँट भी अब दुआ जैसी लगती है।"
महीनों बीत गए। माँ-बाप बूढ़े हो गए, लेकिन राधा की कोई खबर नहीं आई। गाँव वाले धीरे-धीरे भूल गए कि कभी इस घर में एक चहकती हुई लड़की रहती थी।
लेकिन माँ नहीं भूली। हर दिन दरवाज़े की ओर देखती, हर आती-जाती लड़की में अपनी राधा को ढूँढती।
आज भी न जाने कितनी "राधाएँ" भारत में हर साल 18 की उम्र के बाद "आजादी" और "झूठे रिश्तों" के नाम पर तस्करी के अंधेरे में खो जाती हैं।
कहानी का अंत कड़वा है –
राधा कभी वापस नहीं आई।
लेकिन इस कहानी का सबक गहरा है –
आज़ादी अगर समझदारी से न जी जाए तो वो सबसे बड़ी गुलामी बन जाती है।

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