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आज का सत्य
19/06/2025

आज का सत्य

17/06/2025
क्या जीवित व्यक्ति को गरूड पुराण पढ़ना चाहिए ?आज इस पोस्ट मे हम गरूड पुराण के बारे मे जानेंगे। जानेंगे की मनुष्य को जीते...
17/06/2025

क्या जीवित व्यक्ति को गरूड पुराण पढ़ना चाहिए ?

आज इस पोस्ट मे हम गरूड पुराण के बारे मे जानेंगे। जानेंगे की मनुष्य को जीते जी गरूड पुराण पढ़ना चाहिए या नहीं पढ़ना चाहिए। तो चलिए बिना देरी किए पढ़ते हैं आज की पोस्ट-

मित्रों ! अक्सर आपने गरुड़ पुराण के बारे में बहुत सी बातें सुनी होगी, जिसमें कि हमें ज्यादातर समाज में यह सुनने को मिलता है कि किसी भी जीवित मनुष्य को गरुड़ पुराण नहीं पढ़ना चाहिए।

इतना ही नहीं अधिकतर लोगों के मन में यह डर बैठा दिया गया है की अगर कोई जीवित मनुष्य इस पुराण को पड़ता है या अपने पास रखता भी है तो उसके जीवन में हर समय कुछ न कुछ घटनाएं घटती रहती है।

लेकिन दोस्तों! ऐसा बिल्कुल भी नही है ,क्योंकि आज हम गरुड़ पुराण के बारे में आपको ऐसा रहस्य बताने वाले हैं जिसे जानने के बाद आप इस भय से मुक्त हो जाएंगे।

प्रिय पाठकों! गरुड़ पुराण का पाठ किसी परिजन की मृत्यु के पहले कभी भी पढ़ा जा सकता है। गरूड पुराण को हर जिवित मनुष्य पढ़ सकता है। जो व्यक्ति गरूड पुराण पढ़ने की इच्छा रखता है इसे बेखौफ हो कर पढ़ सकता है और घर मे पुराण का पाठ करवा भी जा सकता है।
गरूड पुराण मे स्वर्ग,नर्क, पाप और पुण्य के अलावा भी बहुत कुछ है। गरूड पुराण मे ज्ञान ,विज्ञान ,नीति ,नियम और धर्म की बातें हैं। गरुड़ पुराण को सनातन धर्म में 18 पुराणों में से एक माना जाता है।

दान के अधिष्ठात्री देव भगवान विष्णु हैं। हिंदू धर्म में कुल 18 पुराण हैं उन्हीं में से एक गरुड़ पुराण है जिसमें कुल 18000 श्लोक और 271 अन्य है।

गरूड पुराण मे एक ओर जहां मौत का रहस्य है,तो वहीँ दूसरी ओर जीवन का रहस्य छुपा हुआ है। गरूड पुराण से हमें कई तरह की शिक्षा मिलती है। गरुण पुराण में मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है।

गरूड पुराण में भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के बीच हुए संवाद का वर्णन किया गया है।दोस्तों,अक्सर ये देखा गया है कि जब किसी के परिवार मे किसी की मृत्यु हो जाती है या कोई मृत्यु शय्या पर होता है ,तो उस घर में गरूड का पाठ कराया जाता है।

और यही सब देखकर लोगों के मन मे डर बैठ जाता है कि ,जीवित मनुष्य गरूड पुराण का पाठ ना कर सकता और ना ही अपने पास रख सकता है। परंतु ऐसा नहीं है क्योंकि गरुड़ पुराण के शुरू में ही इसके पाठ करने से संबंधित महात्म्य के बारे में बताया गया है।

जिसके अनुसार यदि कोई जीवित मनुष्य अपने जीवन में इस पवित्र पुराण का पाठ करता है, तो उसे यश,विद्या,सोंदर्य,लक्ष्मी,विजय और आरोग्य आदि के विषय में ज्ञान की प्राप्ति होती है।

जो मनुष्य इसका नियमित पाठ करता है या सुनता है, तो वह सब कुछ जान जाता है। और उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर इस गरूड पुराण का पाठ करता है सुनता है या जो लिखता है अथवा जो पुस्तक के रूप मे ही इसको अपने पास रखता है,वह मनुष्य यदि धर्माथी है तो उसे धर्म की प्राप्ति होती है। और यदि वो अर्थ का अभिलाषी है, तो वह अर्थ प्राप्त करता है।

गरुड़ पुराण के अनुसार ,ऐसे लोग जो अपने माता-पिता या संतान को दुखी करते हैं ,वो अगले जन्म में धरती पर जन्म नहीं ले पाते ब्लकि जन्म लेने से पहले गर्भ मे ही उनकी मृत्यु हो जाती है।

ऐसे लोग जो महिलाओं का शोषण करते है या कराते हैं, वे अगले जन्म में भयंकर बीमारियों से पीड़ित होते हैं। और शारीरिक कष्ट मे जीवन बिताते है।

जिस मनुष्य के हाथ में यह महापुराण विद्यमान है उसके हाथ में ही नीतियों का भंडार है जो प्राणी इस पुराण का पाठ करता है इसको सुनता है। वह भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त कर लेता हैगरूड पुराण को केवल एक बार पढ़ने व सुनने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थ ओं की सिद्धि हो जाती हैं।

गरूड पुराण का पाठ करके या सुन कर ,पुत्र चाहने वाला मनुष्य पुत्र प्राप्त करता है तथा कामना का इच्छुक अपनी कामना प्राप्ति में सफलता प्राप्त कर लेता है। बंध्या स्त्री वह स्त्री जिसको संतान सुख ना मिला हो उसको पुत्र सुख प्राप्त होता है।

भक्त और भगवान का सम्बन्ध एक बार की बात है -एक संत जगन्नाथ पुरी से मथुरा की ओर आ रहे थे, उनके पास बड़े सुंदर ठाकुर जी की म...
17/06/2025

भक्त और भगवान का सम्बन्ध

एक बार की बात है -एक संत जगन्नाथ पुरी से मथुरा की ओर आ रहे थे, उनके पास बड़े सुंदर ठाकुर जी की मूर्ति थी । वह संत उन ठाकुर जी को हमेशा साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना कर लाड़ लड़ाया करते थे ।

ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने ठाकुर जी को अपनें बगल की सीट पर रख दिया और अन्य संतो के साथ हरी चर्चा में मग्न हो गए ।

जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे तब वे सत्संग में इतनें मग्न हो चुके थे कि झोला गाड़ी में ही रह गया !उसमें रखे ठाकुर जी भी वहीं गाड़ी में रह गए । संत सत्संग की मस्ती में भावनाओं में ऐसा बहे कि ठाकुर जी को साथ लेकर आना ही भूल गए ।

बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर सब संत पहुंचे और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा कि- हमारे ठाकुर जी तो हैं ही नहीं ।

संत बहुत व्याकुल हो गए, बहुत रोने लगे परंतु ठाकुर जी मिले नहीं । उन्होंने ठाकुर जी के वियोग में अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया । संत बहुत व्याकुल होकर विरह में अपने ठाकुर जी को पुकारकर रोने लगे ।

तब उनके एक पहचान के संत ने कहा - महाराज मै आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये ठाकुर जी दे देता हूँ ,परंतु उन संत ने कहा कि हमें अपने वही ठाकुर चाहिए जिनको हम अब तक लाड़ लड़ाते आये हैं।

तभी एक दूसरे संत ने पूछा - आपने उन्हें कहा रखा था ? मुझे तो लगता है गाड़ी में ही छूट गए होंगे।

एक संत बोले - अब कई घंटे बीत गए है । गाड़ी से किसी ने निकाल लिए होंगे और फिर गाड़ी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी ।

इस पर वह संत बोले - मैं स्टेशन मास्टर से बात करना चाहता हूँ वहाँ जाकर । सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे । स्टेशन मास्टर से मिले और ठाकुर जी के गुम होने की शिकायत करने लगे । उन्होंने पूछा कि कौन-सी गाड़ी में आप बैठ कर आये थे ?

संतो ने गाड़ी का नाम स्टेशन मास्टर को बताया तो वह कहने लगा - महाराज ! कई घंटे हो गए, यही वाली गाड़ी ही तो यहां खड़ी हो गई है, और किसी प्रकार भी आगे नहीं बढ़ रही है । न कोई खराबी है न अन्य कोई दिक्कत, कई सारे इंजीनियर सब कुछ चेक कर चुके हैं, परंतु कोई खराबी दिखती है नहीं ।

महात्मा जी बोले - अभी आगे बढ़ेगी, मेरे बिना मेरे प्यारे कही अन्यत्र कैसे चले जायेंगे ?

वे महात्मा अंदर ट्रेन के डिब्बे के अंदर गए और ठाकुर जी वहीं रखे हुए थे जहां महात्मा ने उन्हें पधराया था । अपने ठाकुर जी को महात्मा ने गले लगाया और जैसे ही महात्मा जी उतरे-गाड़ी आगे बढ़ने लग गयी ।

ट्रेन का चालक, स्टेशन मास्टर तथा सभी इंजीनियर सभी आश्चर्य में पड़ गए और बाद में उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो वे गद्गद् हो गए।उसके बाद वे सभी जो वहां उपस्थित उन सभी ने अपना जीवन संत और भगवन्त की सेवा में लगा दिया...

भगवान जी भी खुद कहते है ना....

भक्त जहाँ मम पग धरे, तहाँ धरूँ में हाथ !

सदा संग लाग्यो फिरूँ, कबहू न छोडूँ साथ !!

मत तोला कर इबादत को अपने हिसाब से,

ठाकुर जी की कृपा देखकर ,अक्सर तराज़ू टूट जाते हैं !!

जय जय... ।

स्रोत : अंतर्जाल ।

17/06/2025

22 जून से 30 दिन सूर्य पर राहु की दृष्टि होगी ग्रहण योग बनेगा
सबके लिए तो नहीं पर सिंह राशि और सूर्य जिस भाव में होंगे उसके फल में दिक्कत हो सकती है चोट चपेट दुर्घटना का योग बढ़ जायेगा

17/06/2025

22 जून से सूर्य देव आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे आद्रा से 10नक्षत्र बारिश वाले माने जाते हैं इसलिए 22 जून से मानसून का आगमन भी होता है
वायु वेग के साथ सामान्य जल वृष्टि का योग बनेगा

भगवान का दंड गया के आकाशगंगा पहाड़ पर एक परमहंस जी वास करते थे। एक दिन परमहंस जी के शिष्य ने एकादशी के दिन निर्जला उपवास...
16/06/2025

भगवान का दंड
गया के आकाशगंगा पहाड़ पर एक परमहंस जी वास करते थे। एक दिन परमहंस जी के शिष्य ने एकादशी के दिन निर्जला उपवास करके द्वादशी के दिन प्रातः उठकर फल्गु नदी में स्नान किया, विष्णुपद का दर्शन करने में उन्हें थोड़ा विलम्ब हो गया। वे साथ में एक गोपाल जी को सर्वदा ही रखते थे।

द्वादशी के पारण का समय बीतता जा रहा था, देखकर वे अधीर हो गये एवं शीघ्र एक हलवाई की दुकान में जाकर उन्होंने दुकानदार से कहा..पारण का समय निकला जा रहा है, मुझे कुछ मिठाई दे दो, गोपाल जी को भोग लगाकर मैं थोड़ा जल ग्रहण करुँगा।

दुकानदार उनकी बात अनसुनी कर दी।

साधु के तीन - चार बार माँगने पर भी हाँ ना कुछ भी उत्तर नहीं मिलने से व्यग्र होकर एक बताशा लेने के लिए जैसे ही उन्होने हाथ बढ़ाया, दुकानदार और उसके पुत्र ने साधु की खुब पिटाई की,

निर्जला उपवास के कारण साधु दुर्बल थे, इस प्रकार के प्रहार से वे सीधे गिर पड़े। रास्ते के लोगों ने बहुत प्रयास करके साधु की रक्षा की।

साधु ने दुकानदार से एक शब्द भी नहीं कहा, ऊपर की ओर देखकर थोड़ा हँसते हुए प्रणाम करके कहा- भली रे दयालु गुरुजी, तेरी लीला। केवल इतना कहकर साधु पहाड़ की ओर चले गये।

गुरुदेव परमहंस जी पहाड़ पर ध्यानमग्न बैठे हुए थे, एकाएक चौक उठे एवं चट्टान से नीचे कूदकर बड़ी तीव्र गति से गोदावरी नामक रास्ते की ओर चलने लगे।

रास्ते में शिष्य को देखकर परमहंस जी कहा 'क्यो रे बच्चा, क्या किया ?

शिष्य ने कहा, गुरुदेव मैने तो कुछ नहीं किया।

परमहंस जी ने कहा, बहुत किया। तुमने बहुत बुरा काम किया। रामजी के ऊपर बिल्कुल छोड़ दिया। जाकर देखो, रामजी ने उसका कैसा हाल किया। यह कहकर शिष्य को लेकर परमहंस जी हलवाई की दुकान के पास जा पहुँचे।

उन्होंने देखा हलवाई का सर्वनाश हो गया है।

साधु को पीटने के बाद, जलाने की लकड़ी लाने के लिए हलवाई का लड़का जैसे ही कोठरी में घुसा था उसी समय एक काले नाग ने उसे डस लिया।

हलवाई घी गर्म कर रहा था, सर्पदंश से मृत अपने पुत्र को देखने दौड़ा। उधर चूल्हे पर रखे घी के जलने से दुकान की फूस की छत पर आग लग गई।

परमहंस जी ने देखा, लड़का रास्ते पर मृतवत पड़ा है, दुकान धू-धू करके जल रही है, रास्ते के लोग हाहाकार कर रहे है। भयानक दृश्य था।

परमहंस जी शिष्य को लेकर पहाड़ पर आ गए। शिष्य को खूब फटकारते हुए कहा कि बिना अपराध के कोई अत्याचार करता है, तो क्रोध न आने पर भी साधु पुरुष को कम-से-कम एक गाली ही देकर आना चाहिए।

साधु के थोड़ा भी प्रतिकार करने से अत्याचारी की रक्षा हो जाती है, परमात्मा के ऊपर सब भार छोड़ देने से परमात्मा बहुत कठोर दंड देते हैं।

भगवान् का दंड बड़ा भयानक है।

जानते हैं जब कौवा बीमार महसूस करता है… तो वह चींटियों की तलाश करता है।जी हां, आपने सही पढ़ा। जब कौवा अस्वस्थ महसूस करता ...
16/06/2025

जानते हैं जब कौवा बीमार महसूस करता है… तो वह चींटियों की तलाश करता है।

जी हां, आपने सही पढ़ा। जब कौवा अस्वस्थ महसूस करता है, तो वह किसी चींटी के बिल के पास बैठ जाता है, अपने पंख फैला लेता है, और एकदम शांत हो जाता है ताकि चींटियाँ उस पर चढ़ जाएँ और हमला करें।

इसके पीछे एक खास वजह होती है: चींटियाँ कौए के शरीर पर फॉर्मिक एसिड छिड़कती हैं, जो एक प्राकृतिक कीटाणुनाशक (antiparasitic) के रूप में काम करता है। यह एसिड कौए को फंगस, बैक्टीरिया और परजीवियों से छुटकारा दिलाने में मदद करता है, जिससे वह बिना किसी दवा के ठीक हो जाता है।

इस व्यवहार को “एंटिंग” (Anting) कहा जाता है और इसे कई पक्षियों में देखा गया है। यह पशु स्व-चिकित्सा (self-medication) का एक अद्भुत उदाहरण है।

प्रकृति अपनी खामोश बुद्धिमत्ता से हमेशा हमें चौंकाती रहती है

सुविधाएं बढ़ने के साथ रिस्क भी बढ़ रहा है हैं । कुछ महीनों की घटनाओं को देखकर महसूस होता है उपर वाले के कृपा के बिना सुर...
16/06/2025

सुविधाएं बढ़ने के साथ रिस्क भी बढ़ रहा है
हैं । कुछ महीनों की घटनाओं को देखकर महसूस होता है उपर वाले के कृपा के बिना सुरक्षित जगह भी सुरक्षित नहीं । क्या है हमारे हाथ में.. पैसा,पावर, नौकरी, एशो-आराम सब 30 सेकेंड में बिखर गए 😥😓

धर्म से ही सुख मिलेगा        ❣️🙏
15/06/2025

धर्म से ही सुख मिलेगा ❣️🙏

हनुमान चालीसा 40 छंदों का एक संग्रह है, जिसे पढ़ना बेहद प्रभावशाली माना जाता है। इसलिए, अकी लोग हनुमान चालीसा रोजाना पूरी...
15/06/2025

हनुमान चालीसा

40 छंदों का एक संग्रह है, जिसे पढ़ना बेहद प्रभावशाली माना जाता है। इसलिए, अकी लोग हनुमान चालीसा रोजाना पूरी भक्ति के साथ पढ़ते हैं।

लेकिन जब इसे तुलसीदास ने लिखा था, तो उनके साथ कुछ अनोखी घटना होती थी।

क्या है पूरा किसा, चलिए जानते हैं...दरअसल, जब तुलसीदास हनुमान चालीसा लिखते थे, तो वे लिखे हुए पत्रों को रात के समय संभालकर रख देते थे।

लेकिन जब सुबह उठकर देखते थे, तो रात में उन्होंने जो कुछ भी लिखा होता था, वो सब मिटा हुआ होता था। कई दिनों के प्रयास के बाद भी रोज का परिणाम वही था। इसलिए, तुलसीदास जी ने हनुमान जी की आराधना की।

हनुमानजी प्रकट हुए, तो तुलसीदास ने उनसे पूछा कि 'मैं हनुमान चालीसा लिखता हूँ, तो वह रातोंरात क्यों मिट जाता है'।

इसपर हनुमानजी ने तुलसीदास को जवाब दिया कि 'यदि प्रशंसा ही लिखनी है, तो मेरे प्रभु श्री राम की लिखो, मेरी नहीं'।

फिर तुलसीदास ने हनुमान जी को पहली चौपाई सुनाई, जो उन्होंने अयोध्या कांड की शुरुआत में हनुमान चालीसा को शुरू करते हुए लिखा था। चौपाई इस प्रकार है।।।

"श्रीगुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि।

वरूणौं रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि॥"

इस दोहे को सुनने के बाद हनुमान जी ने कहा कि 'मैं रघुवर नहीं हूं'। इस पर तुलसीदास ने जवाब दिया कि 'आप और भगवान श्री राम एक ही प्रसाद प्राप्त करके अवतरित हुए हैं।

इसलिए आप भी रघुवर समान हैं'।
उन्होंने हनुमान जी को याद दिलाते हुए वो किस्सा सुनाया, जिसमें ब्रह्मा लोक में सुवर्चला नाम की एक अप्सरा रहती थी,

जो कभी ब्रह्मा पर मोहित हो गई थी और क्रोधित होकर ब्रह्मा ने उसे गिद्ध होने का श्राप दे दिया था।

जब राजा दशरथ के पुत्र के यज्ञ में जो प्रसाद तीनों रानियों में बांटा गया था, उसका एक हिस्सा लेकर वो गिद्ध उड़ गयी थी।

उसी समय कहीं दूर माता अंजना भगवान शिव के सामने हाथ फैलाकर पुत्र की कामना कर रही थीं और उन्हीं हाथों में उस गिद्ध ने वह प्रसाद गिरा दिया था।

उस प्रसाद से प्रभु राम ने भी जन्म लिया और माता अंजना के कोख से हनुमानजी ने भी। भगवान् राम ने भी तो स्वयं आपको अपना भाई कहा है।

उसी कारण तो मैंने यह चौपाई लिखी है -
तुम मम प्रियहि सम भाई।'
तुलसीदास ने एक और तर्क दिया कि जब आप माँ जानकी की खोज में आप अशोक वाटिका गये थे, तो माँ जानकी ने आपको अपना पुत्र बना लिया।
"अजर अमर गुणनिधि सुत होहु।

करहुं बहुत रघुनायक छोहू॥
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नहीं।
देखौं करि विचार मन माहीं॥"
तुलसीदास ने हनुमानजी को प्रशंसा का पात्र बनाते हुए कहा कि 'इस प्रकार आप भी रघुवर बन गए'

और मेरी यह चालीसा आपके उन्हीं तथ्यों पर आधारित है, जो आपके गुण हैं।

तुलसीदास का यह तर्क सुनकर हनुमानजी को प्रसन्न हुये आशिर्वाद दिया,और उसके बाद बिना किसी परेशानी के हनुमान चालीसा की रचना हुई। ।

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