27/08/2025                                                                            
                                    
                                                                            
                                            यह कहानी 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव पर आधारित है। फिल्म दो छोटे बच्चों, भोला और शंभू की नज़रों से दुनिया को दिखाती है। ये दोनों बच्चे बहुत जिज्ञासु हैं और उनके मन में भगवान को लेकर कई तरह के सवाल हैं।
भोला के पिता, जिनका किरदार विनय पाठक ने निभाया है, एक यथार्थवादी और कुछ हद तक नास्तिक व्यक्ति हैं। वह अपने बेटे के धार्मिक सवालों को अक्सर टाल देते हैं या उन्हें अंधविश्वास बताते हैं। वहीं, भोला की माँ एक बहुत ही धार्मिक महिला है, जो अपने बेटे में ईश्वर के प्रति आस्था जगाना चाहती है।
बच्चों का जीवन अपनी ही मासूमियत में चल रहा होता है, लेकिन उस दौर में देश का सामाजिक और राजनीतिक माहौल बदल रहा था। राम जन्मभूमि आंदोलन का असर उनके छोटे से गाँव तक भी पहुँच जाता है, जिससे गाँव में धीरे-धीरे सांप्रदायिक तनाव बढ़ने लगता है।
फिल्म का मुख्य संघर्ष तब शुरू होता है जब यह धार्मिक और राजनीतिक नफ़रत बच्चों की मासूम दुनिया में प्रवेश करती है। वे यह समझने की कोशिश करते हैं कि जो लोग कल तक दोस्त थे, वे आज धर्म के नाम पर एक-दूसरे के दुश्मन क्यों बन गए हैं।
कहानी का अंत एक दुखद घटना के साथ होता है जो इन बच्चों की मासूमियत को पूरी तरह से तोड़ देती है। यह फिल्म दिखाती है कि कैसे नफ़रत और कट्टरता का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है और यह सवाल उठाती है कि जब इंसान ही इंसान का दुश्मन बन जाए, तो क्या सब कुछ 'भगवान भरोसे' छोड़ा जा सकता है?
संक्षेप में, यह फिल्म आस्था, मासूमियत के खो जाने और धार्मिक कट्टरता के समाज पर पड़ने वाले असर को बच्चों के नजरिए से दिखाती एक मार्मिक और सोचने पर मजबूर करने वाली कहानी है।