14/06/2024
हिंदू भाईयो द्वारा, देख रेख किया जाने वाला इमामबाड़ा !
बात हो रही है हरिश्चंद्र घाट स्थित एक ऐसे इमामबाड़े की जिसकी बुनियाद की कहानी एक ¨हदू कुम्हार की श्रद्धा से जुड़ी है। कुम्हार के अटूट विश्वास के कारण ही इस इमामबाड़े का नाम कुम्हार का इमामबाड़ा पड़ा। इसमें एक ओर जहां शिया मुस्लिम मजलिस करते हैं तो वहीं ¨हदू हाथ जोड़कर अकीदत से फूल चढ़ाते हैं। शहर ही नहीं बल्कि दुनिया का लगभग हर इमामबाड़ा गुंबदनुमा होता है, जो मस्जिद या मकबरे की सूरत में नजर आता है। वहीं हरिश्चंद्र घाट के कुम्हार का इमामबाड़ा मंदिर की तरह दिखता है। मुहर्रम आते ही यहां के ¨हदू भाई इसकी साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम कराते हैं।
इमामबाड़े का इतिहास :
-हरिश्चंद्र घाट स्थित कुम्हार का इमामबाड़ा लगभग 150 वर्ष पुराना है। इसकी देखरेख एक ¨हदू कुम्हार परिवार कर रहा है, तो वहीं सरपरस्ती शिया वर्ग के हाथ है। इमामबाड़े के मुतवल्ली सैयद आलिम हुसैन रिजवी बताते हैं कि 150 वर्ष पहले इमामबाड़े के पास ही एक ¨हदू कुम्हार परिवार रहता था। कुम्हार का एक बेटा था, जो हर वर्ष मुहर्रम पर मिट्टी की ताजिया बनाया करता था। पिता ने पहले तो बच्चे को ताजिया बनाने से मना किया। जब वह नहीं माना तो उसकी खूब पिटाई की। पिटाई के बाद बच्चा इतना बीमार हुआ कि वैद्य, हकीम भी काम न आए। बेटे को लेकर पिता की चिंता बढ़ने लगी। मंदिर, मस्जिद, मजार पर उसने हाजिरी लगाई, लेकिन कोई फायदा न हुआ। फिर एक दिन कुम्हार ने सपने में देखा कि एक बुजुर्ग उसके सामने खड़े हैं। वह कह रहे हैं कि तेरा बेटा मुझसे अकीदत रखता है। तुमने उसे ताजिया बनाने से रोक दिया, तो वह बीमार पड़ गया है। अगर तुम्हें उससे मोहब्बत नहीं है तो मैं उसे अपने पास बुला लेता हूं। कुम्हार ने स्वप्न में ही अपनी गलती मानते हुए कहा कि बस एक बार आप मुझे माफ करके मेरे बच्चे को ठीक कर दें। इस पर बुजुर्ग ने कहा कि नींद से उठकर देख, तेरा बच्चा खेल रहा है। आलिम हुसैन अपने बड़े-बुजुर्गो की जबानी बातों को याद करते हुए बताते हैं कि नींद से जगकर कुम्हार ने देखा कि जो बच्चा गंभीर रूप से बीमार था, वह न केवल पूरी तरह स्वस्थ था, बल्कि बच्चों के साथ खेल भी रहा था।