20/11/2025
कानपुर के बिल्हौर इलाके में पैदा हुए मुन्ना सोनकर, जिन्हें लोग काला बच्चा सोनकर के नाम से पहचानते थे, 90 के दशक की शुरुआत में खटिक समाज और आसपास के हिन्दू समुदाय के बीच एक जाना-पहचाना और सक्रिय चेहरा बन चुके थे। उनका स्वभाव सीधा-साधा था, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर लोगों के लिए खड़े होने की हिम्मत और तैयारी ही उन्हें अलग बनाती थी। बिल्हौर और कानपुर के कई हिस्सों में लोग उन्हें एक ऐसे युवक के रूप में जानते थे जो विवादित हालात में भी पीछे नहीं हटता था।
दिसंबर 1992 में बाबरी ढांचा गिरने के बाद देश के साथ ही कानपुर में भी दंगे फैले। बाबूपुरवा, जूही, चमनगंज और कई मिश्रित आबादी वाले इलाकों में तनाव और हिंसा बढ़ती गई। इन दिनों काला बच्चा सोनकर कई इलाकों में लोगों को सुरक्षित निकालने, झगड़े शांत कराने और जहाँ सम्भव हो, स्थिति संभालने में जुटे रहे। उनके बारे में यह कहा जाने लगा कि वह दंगे के समय हिन्दू परिवारों की मदद में सबसे आगे थे, और इसी वजह से उनका नाम तेजी से फैलने लगा। इस कारण उनके खिलाफ उन दिनों प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की और अलग-अलग घटनाओं में उन पर एक ही दिन में 76 एफआईआर दर्ज की गईं। यह संख्या जितनी बड़ी थी, उतनी ही बड़ी उनकी सार्वजनिक पहचान भी होती गई।
1993 का चुनाव आया तो भाजपा ने उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें बिल्हौर से टिकट दिया। इस चुनाव में उनका मुकाबला शिव कुमार नाम के उम्मीदवार से था। चुनाव कड़ा था, लेकिन वे थोड़े अंतर से हार गए। हार के बावजूद स्थानीय स्तर पर उनका प्रभाव बना रहा और उनके समर्थक भी बढ़ते रहे।
चुनाव के कुछ महीनों बाद 9 फरवरी 1994 को उनकी हत्या कर दी गई। उस दिन वह स्कूटर से कहीं जा रहे थे जब उन पर बम से हमला हुआ। धमाका इतना तेज था कि उन्हें बचाया नहीं जा सका। बाद में जांच में सामने आया कि हमलावरों का संबंध मुस्लिम समुदाय के कुछ कट्टरपंथियों से था और हत्या की साजिश में बाहर से आर्थिक मदद आने की बात भी कही गई। शुरुआती जांच में ISI से जुड़े तत्वों का नाम भी सामने आया था, हालांकि कई बातें बाद में अदालतों में सबूतों के अभाव में कमजोर हो गईं।
हत्या के बाद मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उनका शव परिवार को नहीं दिया, पुलिस ने सुबह 4 बजे चुपके से शरीर को सिंधियों के श्मशान में जला दिया। परिवार को अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया गया, और उनकी मां को पुलिस ने पीटा। हत्या के बाद कानपुर में भयंकर हिंसा हुई, भाजपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर बेरहमी से पिटाई भी हुई,
पुलिस का तर्क था कि माहौल खराब होने की संभावना थी, जिससे तनाव और बढ़ सकता था। इसी आशंका में पुलिस ने सुबह के वक्त उनका अंतिम संस्कार अपने नियंत्रण में करा दिया। यह घटना परिवार और समर्थकों के लिए आज तक एक कड़वी याद की तरह बनी हुई है।
उनकी मृत्यु के बाद कानपुर में कुछ समय तक माहौल तनावपूर्ण रहा। लोगों ने सड़कों पर विरोध जताया, और प्रशासन को कर्फ्यू तक लगाना पड़ा। लेकिन समय बीतता गया और आखिरकार जीवन सामान्य होने लगा, जबकि काला बच्चा सोनकर का नाम स्थानीय लोगों की यादों में बस गया।
आज उनके बेटे राहुल बच्चा सोनकर बिल्हौर से विधायक हैं। लोग उनके पिता का ज़िक्र सम्मान के साथ करते हैं—ज्यादातर उन्हें एक ऐसे युवक के रूप में याद करते हैं जो खटिक समाज और आसपास के लोगों के लिए सक्रिय, निडर और मददगार था, और जिसकी हत्या 90 के दशक के सांप्रदायिक तनाव से भरे दौर की एक दुखद घटना बनकर रह गई।
काला बच्चा की कहानी हिंदू सुरक्षा, दलित नेतृत्व, राजनीतिक हत्या, और साम्प्रदायिक तनाव से जुड़ी हुई है, जो आज भी कानपुर की राजनीति का एक संवेदनशील हिस्सा है।