तीखी मिर्ची unofficial

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ACP प्रद्युम्न की आवाज मे... ये क्या बक रहे हो, 🤬🤬🤬🤬
15/12/2025

ACP प्रद्युम्न की आवाज मे...
ये क्या बक रहे हो, 🤬🤬🤬🤬

मरने वाले का चेहरा बदला नाम बदला धर्म बदला मारनेवालों के नाम बदले।चेहरे बदले।जगहें बदल,लेकिन धर्म वही का वही.... नफरत के...
14/12/2025

मरने वाले का चेहरा बदला नाम बदला धर्म बदला
मारनेवालों के
नाम बदले।
चेहरे बदले।
जगहें बदल,
लेकिन धर्म वही का वही....
नफरत के बीज पर उपजी मौजहब के लिए इंसानियत का आस्तित्व इनके मौजहब के लिए खतरा है...

जोगेन्द्र नाथ मंडल (1904–1968) बंगाल के नमशूद्र (दलित) समाज से निकले वकील और डॉ. भीमराव अंबेडकर के निकट सहयोगी थे जिन्हो...
07/12/2025

जोगेन्द्र नाथ मंडल (1904–1968) बंगाल के नमशूद्र (दलित) समाज से निकले वकील और डॉ. भीमराव अंबेडकर के निकट सहयोगी थे जिन्होंने दलितों को सिर्फ़ सामाजिक सम्मान नहीं बल्कि सीधे सत्ता में भागीदारी दिलाने का सपना देखा।
उन्होंने बंगाल में अनुसूचित जाति आंदोलन खड़ा किया और दलित अधिकारों के लिए संगठित राजनीतिक लड़ाई शुरू की। हिंदू ऊँची जातीय राजनीति से उपेक्षित महसूस कर उन्होंने मीम-भीम का गठजोड़ किया और यह मान लिया कि पाकिस्तान बनने पर एक नया “धर्म-निरपेक्ष समाज” बनेगा जहाँ जातिवाद खत्म होगा और दलितों को बराबरी व सुरक्षा मिलेगी, जो आगे चलकर उनका यह सबसे बड़ा भूल साबित हुआ
इसी उद्देश्य और भ्रम ने उनसे वह फैसला करवाया जिसकी कीमत भारत को सिलहट के रूप में चुकानी पड़ी।
1947 के सिलहट जनमत संग्रह में उन्होंने दलितों को पाकिस्तान के पक्ष में संगठित किया, जिससे सिलहट भारत से निकलकर पाकिस्तान चला गया। इस फैसले ने जहाँ भारत को भू-भागीय नुकसान पहुँचाया, वहीं मंडल की वह छवि भी कमजोर पड़ी जिसमें वे दलित समाज के हितैषी नेता और सामाजिक न्याय के प्रतीक माने जाते थे, क्योंकि उनके निर्णय से हजारों हिंदू-दलित पाकिस्तान में असुरक्षित अल्पसंख्यक बन गए और बाद में वही समाज इस फैसले का सबसे बड़ा शिकार हुआ।

1947 में हुए सिलहट जनमत संग्रह में मंडल ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर दलित समाज को पाकिस्तान के समर्थन में सक्रिय रूप से लामबंद किया। उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि पाकिस्तान जाति-मुक्त होगा, वहाँ अल्पसंख्यकों को बराबरी मिलेगी और दलित हिंदू सुरक्षित रहेंगे। उनके प्रभाव और संगठन शक्ति के कारण बड़ी संख्या में दलित मत पाकिस्तान के पक्ष में पड़े, जिसके परिणामस्वरूप सिलहट पाकिस्तान के अधीन चला गया और भारत ने एक महत्वपूर्ण भू-भाग खो दिया।

सिलहट में भूमिका के बाद मंडल पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने।
एक हिंदू दलित नेता का इस्लामी राष्ट्र के सत्ता शिखर तक पहुँचना ऐतिहासिक घटना थी। मगर जल्द ही उन्हें दिख गया कि वहाँ हिंदुओं और दलितों पर हिंसा, महिलाओं के अपहरण, जबरन धर्मांतरण और सरकारी बेरुखी आम हो चुकी है। उन्होंने बार-बार प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की माँग रखी, लेकिन सत्ता ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। जिन नेताओं पर उन्होंने भरोसा किया था वही अन्याय पर मौन बने रहे।

अंततः उन्होने ने 8-9 अक्टूबर 1950 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को लंबा इस्तीफा पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने मुस्लिम लीग से जुड़ने का कारण बताया और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों (खासकर दलितों) पर हुए अत्याचारों से उत्पन्न गहरे पछतावे का इजहार किया।
उन्होंने लिखा कि बंगाल में दलितों व मुसलमानों की स्थिति समान थी—दोनों पिछड़े, अशिक्षित, मछुआरे—इसलिए उन्होंने 'दलित-मुस्लिम एकता' का नारा दिया और लीग का समर्थन किया, लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद उनका भ्रम टूट गया।

पछतावे के प्रमुख अंशपत्र में मंडल ने पूर्वी पाकिस्तान के दंगों का विस्तार से वर्णन किया: दीघरकुल में गर्भवती महिलाओं पर क्रूरता से गर्भपात, कलशैरा में 350 घर तोड़कर बलात्कार, मुलादी में 300 हत्याएं व लड़कियों का बंटवारा, मधापाशा में 200 जिंदा जलाए गए।

उन्होंने कहा, "मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया, महिलाओं-बच्चों का विलाप देखा तो दिल पिघल गया।

क्या इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था?" पश्चिमी पाकिस्तान में 1 लाख दलितों का जबरन धर्मांतरण, 363 मंदिरों पर कब्जा व 5 लाख हिंदुओं का पलायन भी उजागर किया।
मंडल ने लीग सहयोग पर अफसोस जताया: "1946 के डायरेक्ट एक्शन डे की हिंसा के बावजूद मैंने साथ दिया, लेकिन अब न्याय व्यवस्था नदारद है।
उच्च हिंदुओं के अत्याचार से बचने पाकिस्तान आया, पर यहां और बदतर मिला।" उन्होंने व्यक्तिगत अपमान भी बताया—प्रधानमंत्री ने उनसे झूठा बयान जारी करवाया, जिसे वे और सहन न कर सके।
टूटे मन से वे भारत लौट आए, पर यहाँ भी उन्हें राजनीतिक स्वीकार्यता नहीं मिली।
उनकी वह छवि—जो कभी दलित अधिकारों के मजबूत योद्धा की थी—धीरे-धीरे विवाद और भ्रम से घिर गई। शेष जीवन गुमनामी में बीता और 1968 में उनका निधन हुआ।

हास्पिटल और स्कूल के निर्माण में जुम्मन च्चा का गिलहरी  योगदान सदैव याद रखा जाएगा
06/12/2025

हास्पिटल और स्कूल के निर्माण में जुम्मन च्चा का गिलहरी योगदान सदैव याद रखा जाएगा

हार्डवेयर शाप मे एक मोहतरमा का बच्चा खो गया.... काफी मशक्कत के बाद मिला भी तो, मोहतरमा को सुझ ही नही रहा था के, रोये या ...
29/11/2025

हार्डवेयर शाप मे एक मोहतरमा का बच्चा खो गया.... काफी मशक्कत के बाद मिला भी तो,
मोहतरमा को सुझ ही नही रहा था के, रोये या हसे, की चुपके से खिसक ले... 👺👺

Domestic और India A का मैच न हो तो मुझसे रन की उम्मीद लगाया न करो...
26/11/2025

Domestic और India A का मैच न हो तो मुझसे रन की उम्मीद लगाया न करो...

सही है इन हगोड़ो का मैच देखना बंद करो... 👺
26/11/2025

सही है इन हगोड़ो का मैच देखना बंद करो... 👺

एक्सीडेंट के बाद घुटने की चोट तो ठीक हो गई दिमाग की रह गई.... 👺👺
24/11/2025

एक्सीडेंट के बाद घुटने की चोट तो ठीक हो गई दिमाग की रह गई.... 👺👺

“डबल स्टैंडर्ड की फ़ैक्ट्री का नया नाम — Losstranian मीडिया।”
22/11/2025

“डबल स्टैंडर्ड की फ़ैक्ट्री का नया नाम — Losstranian मीडिया।”

कानपुर के बिल्हौर इलाके में पैदा हुए मुन्ना सोनकर, जिन्हें लोग काला बच्चा सोनकर के नाम से पहचानते थे, 90 के दशक की शुरुआ...
20/11/2025

कानपुर के बिल्हौर इलाके में पैदा हुए मुन्ना सोनकर, जिन्हें लोग काला बच्चा सोनकर के नाम से पहचानते थे, 90 के दशक की शुरुआत में खटिक समाज और आसपास के हिन्दू समुदाय के बीच एक जाना-पहचाना और सक्रिय चेहरा बन चुके थे। उनका स्वभाव सीधा-साधा था, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर लोगों के लिए खड़े होने की हिम्मत और तैयारी ही उन्हें अलग बनाती थी। बिल्हौर और कानपुर के कई हिस्सों में लोग उन्हें एक ऐसे युवक के रूप में जानते थे जो विवादित हालात में भी पीछे नहीं हटता था।

दिसंबर 1992 में बाबरी ढांचा गिरने के बाद देश के साथ ही कानपुर में भी दंगे फैले। बाबूपुरवा, जूही, चमनगंज और कई मिश्रित आबादी वाले इलाकों में तनाव और हिंसा बढ़ती गई। इन दिनों काला बच्चा सोनकर कई इलाकों में लोगों को सुरक्षित निकालने, झगड़े शांत कराने और जहाँ सम्भव हो, स्थिति संभालने में जुटे रहे। उनके बारे में यह कहा जाने लगा कि वह दंगे के समय हिन्दू परिवारों की मदद में सबसे आगे थे, और इसी वजह से उनका नाम तेजी से फैलने लगा। इस कारण उनके खिलाफ उन दिनों प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की और अलग-अलग घटनाओं में उन पर एक ही दिन में 76 एफआईआर दर्ज की गईं। यह संख्या जितनी बड़ी थी, उतनी ही बड़ी उनकी सार्वजनिक पहचान भी होती गई।

1993 का चुनाव आया तो भाजपा ने उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें बिल्हौर से टिकट दिया। इस चुनाव में उनका मुकाबला शिव कुमार नाम के उम्मीदवार से था। चुनाव कड़ा था, लेकिन वे थोड़े अंतर से हार गए। हार के बावजूद स्थानीय स्तर पर उनका प्रभाव बना रहा और उनके समर्थक भी बढ़ते रहे।

चुनाव के कुछ महीनों बाद 9 फरवरी 1994 को उनकी हत्या कर दी गई। उस दिन वह स्कूटर से कहीं जा रहे थे जब उन पर बम से हमला हुआ। धमाका इतना तेज था कि उन्हें बचाया नहीं जा सका। बाद में जांच में सामने आया कि हमलावरों का संबंध मुस्लिम समुदाय के कुछ कट्टरपंथियों से था और हत्या की साजिश में बाहर से आर्थिक मदद आने की बात भी कही गई। शुरुआती जांच में ISI से जुड़े तत्वों का नाम भी सामने आया था, हालांकि कई बातें बाद में अदालतों में सबूतों के अभाव में कमजोर हो गईं।

हत्या के बाद मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उनका शव परिवार को नहीं दिया, पुलिस ने सुबह 4 बजे चुपके से शरीर को सिंधियों के श्मशान में जला दिया। परिवार को अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया गया, और उनकी मां को पुलिस ने पीटा। हत्या के बाद कानपुर में भयंकर हिंसा हुई, भाजपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर बेरहमी से पिटाई भी हुई,
पुलिस का तर्क था कि माहौल खराब होने की संभावना थी, जिससे तनाव और बढ़ सकता था। इसी आशंका में पुलिस ने सुबह के वक्त उनका अंतिम संस्कार अपने नियंत्रण में करा दिया। यह घटना परिवार और समर्थकों के लिए आज तक एक कड़वी याद की तरह बनी हुई है।

उनकी मृत्यु के बाद कानपुर में कुछ समय तक माहौल तनावपूर्ण रहा। लोगों ने सड़कों पर विरोध जताया, और प्रशासन को कर्फ्यू तक लगाना पड़ा। लेकिन समय बीतता गया और आखिरकार जीवन सामान्य होने लगा, जबकि काला बच्चा सोनकर का नाम स्थानीय लोगों की यादों में बस गया।

आज उनके बेटे राहुल बच्चा सोनकर बिल्हौर से विधायक हैं। लोग उनके पिता का ज़िक्र सम्मान के साथ करते हैं—ज्यादातर उन्हें एक ऐसे युवक के रूप में याद करते हैं जो खटिक समाज और आसपास के लोगों के लिए सक्रिय, निडर और मददगार था, और जिसकी हत्या 90 के दशक के सांप्रदायिक तनाव से भरे दौर की एक दुखद घटना बनकर रह गई।
काला बच्चा की कहानी हिंदू सुरक्षा, दलित नेतृत्व, राजनीतिक हत्या, और साम्प्रदायिक तनाव से जुड़ी हुई है, जो आज भी कानपुर की राजनीति का एक संवेदनशील हिस्सा है।

2024 में न्यूजीलैंड के हाथो स्पीन ट्रेक पर जुत्तम कुटाई के बाद भी होश नही आया इनको... और मैच भी महज ढाई दिन मे खत्म... ए...
16/11/2025

2024 में न्यूजीलैंड के हाथो स्पीन ट्रेक पर जुत्तम कुटाई के बाद भी होश नही आया इनको...
और मैच भी महज ढाई दिन मे खत्म... एकदम घटिया हरकत

जहाँ ये पेड़ होते हैं, वहाँ हवा भी मुस्कुराती है
15/11/2025

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