Indrajeet

Indrajeet Its a page or a collection of poetry based on day today decisions. Must ready all the poetry for foc

---   :::   मित्रता   :::   ---बंधु ,  सखा ,  सहेली  और   सहपाठी का   सामंजस्य   बैठाती   है ' मित्रता ' ।विद्यालय  की  ...
29/07/2025

--- ::: मित्रता ::: ---

बंधु , सखा , सहेली और सहपाठी
का सामंजस्य बैठाती है ' मित्रता ' ।

विद्यालय की खट्टी मिठी यादों को
नोट बुक में छिपा लेती है ' मित्रता ' ।

अल्हड़पन , लड़कपन कभी जाता नही
बड़प्पन को बचपन बनाती है ' मित्रता ' ।

भागता हुआ समय भी थम जाता है
जब बे वजह मुस्कराती है ' मित्रता ' ।

हर दुख को सुख मे बदलने की
योजनाए बना लेती है ' मित्रता ' ।

न उपेक्षा , न किसी से ज्यादा अपेक्षा
बस थोड़ा संग चाहती है ' मित्रता ' ।

जाने अनजाने रिश्ते घाव दे जाते
उस पर मरहम लगाती है ' मित्रता ' ।

जीवन साथी भी है एक अनोखा मित्र
जिसे समानता पर लाती है ' मित्रता ' ।

ईश्वर से भी कर लीजिए ' मित्रता ' ,
सुदामा को कृष्ण से मिलाती है ' मित्रता ' ।

विचार व्यवहार मे आती है पवित्रता ,
जब स्वयं से हो जाती है ' मित्रता ' ।

*********************************

--:::: गर्मियों  की  छुट्टियां :::: --नानी   हुई   है   उत्सुक ,      नाना   हुए   है   बेचैन  ,गर्मियों   की   छुट्टियो...
16/05/2025

--:::: गर्मियों की छुट्टियां :::: --

नानी हुई है उत्सुक ,
नाना हुए है बेचैन ,
गर्मियों की छुट्टियों में,
अब कहाँ किसी को चैन ।

खूब धमाचौकड़ी मची है,
नानी के घर जाने की पड़ी है,
माँ से ज्यादा आतुर है बच्चे,
अपना सामान बांधने की पड़ी है ।

नानी के घर जाते ही मानो,
मस्ती की आजादी मिल गई है ,
अब माँ की डॉट का डर नही है,
क्योकिं माँ की माँ मिल गई है ।

नाना घुरेंगे कभी तो ,
नानी आंचल में छिपा लेगी ,
अब नही चलेगी रोटी सब्जी ,
आम लीची से पेट भर लेंगे ।

शाम होते ही मामा को मनाएंगे ,
बाहर जाकर आइसक्रीम खाएंगे ,
सुबह गंगा में नहाने जाएँगे ,
तो साबुन लेकर नही जाएँगे ।

पशु पक्षियों की कहानियाँ ,
कहाँ से लाती है नानी ,
अच्छा व्यवहार करना ,
सिखलाती है हमें नानी ।

*****************************

---   :::   ज्येष्ठ  महिना  :::   ---समुन्द्र  कहे  नदियों  से  ,   जरा  घूंघट  निकालकर  चल ,      ज्येष्ठ  महिना  आने  ...
24/04/2025

--- ::: ज्येष्ठ महिना ::: ---

समुन्द्र कहे नदियों से ,
जरा घूंघट निकालकर चल ,
ज्येष्ठ महिना आने वाला है ।

मटकों मे जाकर बैठ जा ,
या भूतल मे जाकर छिप जा ,
ज्येष्ठ महिना आने वाला है ।

सरोवर ने पहनी है काई ,
कुएं ने छिपकर जान बचाई ,
ज्येष्ठ महिना आने वाला है ।

नल भर रहा घर - घर पानी ,
सागर भर रहा नारियल मे पानी ,
ज्येष्ठ महिना आने वाला है ।

गर्म हवा तीखी धूप के साथ है ,
और बादल खाली हाथ है ,
ज्येष्ठ महिना आने वाला है ।

वृक्षों के फल पक गए है ,
और लताओं से लटक गए है ,
ज्येष्ठ महिना आने वाला है ।

एक लोटा सूरज को साधा ,
एक कलस शिवलिंग पर बांधा ,
ज्येष्ठ महिना आने वाला है ।

******************************

---   :::   चारपाई  और  आराम  :::   ---आंगन  मे  हो  एक  चारपाई ,जहाँ  लेती  हर  सांझ  अंगराई ,सांझ  थककर  चूर   हो   गई...
12/04/2025

--- ::: चारपाई और आराम ::: ---

आंगन मे हो एक चारपाई ,
जहाँ लेती हर सांझ अंगराई ,

सांझ थककर चूर हो गई ,
हर मेहनत से दूर हो गई ,

दिन प्रकाश अब सिमट रहा ,
धीरे - धीरे अंधियारा गहरा रहा ,

दिन का कोलाहल खत्म हुआ ,
रात ने अपना पैर पसार लिया ,

चूल्हे की आग ने भूख मिटाई ,
शीतल जल ने प्यास बुझाई ,

वृक्षो के पत्ते पंखा कर रहे ,
तन के पसीने को सुखा रहे ,

कल की फिक्र नींद खा गई ,
निंदियारानी पलको मे समा गई ,

चारपाई का उद्देश्य पूरा हो गया ,
थके तन को आराम मिल गया ।

*****************************

--- ::: चांदी  का  तार  ::: ---माथे पर चढ़कर एक चांदी का तार बोला     अब  तुम्हारी  उम्र  हो  गई  है ,हमने  भी  उसे  पटक...
07/04/2025

--- ::: चांदी का तार ::: ---

माथे पर चढ़कर एक चांदी का तार बोला
अब तुम्हारी उम्र हो गई है ,

हमने भी उसे पटककर मारा
और कालिख में डुबो दिया ,

झुर्रियों को मेकप से छिपा दिया
और आधुनिक परिधान पहन लिया ,

मानो बीस साल पीछे चले गए
और कुछ अंग्रेजी शब्द अपना लिया ,

हमारे कद से भी ऊपर हो गए
अपने बच्चों का क्या करें ,

जो हमारी उम्र को बिना बताए ही
सबके सामने प्रकट कर देते है ,

परिवार के कुछ छोटे बच्चों ने
हमे नानी , दादी से संबोधित कर दिया ,

बढती उम्र ने हमें सिखा दिया
व्यंग्य नहीं सम्मान का पात्र बना दिया ,

इसलिए हमने भी चांदी के तारों को
अब आजाद छोड़ दिया ।
*****************************************************************

----  ::::  मेरे  कलम  ::::  ----ओ  मेरे   कलम   जरा   रुक -रुक   कर   चल ,श्वेत  पटल  खोज  रही  हूँ  जरा  थमकर  चल ।स्य...
05/04/2025

---- :::: मेरे कलम :::: ----

ओ मेरे कलम जरा रुक -रुक कर चल ,
श्वेत पटल खोज रही हूँ जरा थमकर चल ।

स्याह रंग किस पर बिखेरू जरा सोचकर चल ,
आलोचनाओं की धूल को जरा पोंछ कर चल ।

कुछ मैले , कुछ फटे हुए , कुछ बिखरे पटल ,
जो तूझे सही लगे उसे साथ लेकर चल ।

आधुनिकता की दौड़ में संस्कृति न जाए फिसल ,
ऐतिहासिक घटनाओं को मापदंड बनाकर चल ।

अपभ्रन्श हुई कथा की कड़ियों को जोड़कर चल ,
ढुंड ले कब , क्यों और कैसे प्रश्नोत्तरो का हल ।

हर दिशाओं से विचारों का मंथन करके चल ,
नकारात्मक व सकारात्मक पहलू देखकर चल ।

अनेकार्थी व पर्यायवाची ने तोड़ा अलंकारों का बल,
पाएगा हर पद में स्याह और कागज का छल ।

"'रामायण कांड " पढ़कर जाना कितना मजबूर है मानव ,
"महाभारत पर्व " पढ़कर जाना कितना उग्र है मानव ।

समय की गति से मानव बदल रहा हर पल ,
"ओ मेरे कलम " जरा संभल - संभल कर चल ।

📗 📘 📙 📚 📔 📒 📑 📓 📕 📖 📰

---   :::   अनोखा  सत्य  :::   ---दर्पण  हमेशा  सत्य  दिखाता  है , ( किन्तु )यदि  मुख  पर  आवरण  हो  तो ,दर्पण  भी  पूर्...
31/03/2025

--- ::: अनोखा सत्य ::: ---

दर्पण हमेशा सत्य दिखाता है , ( किन्तु )
यदि मुख पर आवरण हो तो ,
दर्पण भी पूर्ण सत्य नही दिखाता ।

परछाई कभी साथ नही छोड़ती , ( किन्तु )
चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा हो तो ,
परछाई भी साथ छोड़ देती है ।

जैसी करनी - वैसी भरनी , ( किन्तु )
जीवन मे सतर्कता न हो तो ,
करें कोई - भरें कोई ।

विकलांग , सहानुभूति का पात्र होता है , ( किन्तु )
कुरूप , व्यंग्य का पात्र होता है ,
जबकि दोनो ही शारीरिक अवस्था है ।

तारें कभी अस्त नही होते , ( किन्तु )
सूरज के उदय होने पर ,
तारें हमे दिखाई नही देते ।

धरती और आकाश का मिलन , ( किन्तु )
क्षितिज एक भ्रम मात्र है ,
धरती तो आकाशगंगा मे ही है ।

********************************

---   :::      पिंजरा      :::   ---पिंजरे  से  आजाद  पंछी ,पिंजरे  पर  आ  बैठा ,        पिंजरे  की  इतनी  आदत  थी ,    ...
19/03/2025

--- ::: पिंजरा ::: ---

पिंजरे से आजाद पंछी ,
पिंजरे पर आ बैठा ,

पिंजरे की इतनी आदत थी ,
पिंजरे से न दूर रह सका ,

भोजन पानी सब पिंजरे मे ,
क्यूं , दाना चुगने दूर जाए ,

आसमान का मौसम ,
अब पंछी को न भाए ,

न किसी से रगड़ा - झगड़ा ,
न किसी से दाना छिन्ना ,

अपने ही दायरे मे सीमित ,
मौज - मस्ती से रहना ,

घोसले की न मुझे चाहत ,
न उसकी सुरक्षा की ,

नही देखा खुला आसमान ,
अब आदत है पिंजरे की ,

पिंजरा चाहे जैसा भी हो ,
पंख फड़फड़ा लेता हूँ ,

स्वयं की खुशी के लिए ,
परिवार जन से खेल लेता हूँ ।

चीं - चीं की आवाज से ,
घर मे कौतूहल मचा देता हूँ ,

नही किसी से बैर मुझको ,
सबसे बाते करता हूँ ।

आत्मा , शरीर रूपी पिंजरे मे है ,
परमात्मा , उसका दावेदार ।

ये दुनिया भी एक पिंजरा है ,
नही कोई इसका हकदार ।

*******************************

---   :::  तुम  मेरे  दर्पण  हो  :::   ---तुम  मेरे  दर्पण  हो ,मैं  स्वयं  को  तुम  में  देखती  हूँ ।तुम्हारे  मुख  के ...
09/03/2025

--- ::: तुम मेरे दर्पण हो ::: ---

तुम मेरे दर्पण हो ,
मैं स्वयं को तुम में देखती हूँ ।

तुम्हारे मुख के भाव
और तुम्हारे नैन सत्य है ,
इस सत्य को मैं तुम में देखती हूँ ।

तुम मेरे दर्पण हो ,
मैं स्वयं को तुम में देखती हूँ ।

मेरा यौवन , मेरा सौन्दर्य
या हो मेरा समर्पण ,
इस अर्पण को मैं तुम में देखती हूँ ।

तुम मेरे दर्पण हो ,
मैं स्वयं को तुम में देखती हूँ ।

विरह हो या मिलन
या हो मन की तरंगे ,
इस प्रेम को मैं तुम में देखती हूँ ।

तुम मेरे दर्पण हो ,
मैं स्वयं को तुम में देखती हूँ ।

इस देह की यात्रा हो ,
या हो सुख-दुख के भाव ,
इन भावों को मैं तुम में देखती हूँ ।

तुम मेरे दर्पण हो ,
मैं स्वयं को तुम में देखती हूँ ।

तुम विभिन्न रूप धरों ,
या धरों मुख पर आवरण ,
इस आवरण को हटा मैं सत्य देख लेती हूँ ।

तुम मेरे दर्पण हो ,
मैं स्वयं को तुम में देखती हूँ ।

*****************************

----    :::   वृक्षों  का  घर  :::   ---काश , वृक्षों  का  कोई   घर  होता ,दिन  हो  या  रात , निडर  होता  ।सर्दी  की  ठि...
25/02/2025

---- ::: वृक्षों का घर ::: ---

काश , वृक्षों का कोई घर होता ,
दिन हो या रात , निडर होता ।

सर्दी की ठिठुरन , गर्मी की तपन ,
बरसात मे कभी पतझड़ न होता ।

काश , वृक्षों का कोई घर होता ,
हर ऋतु मे , हरा भरा बसंत होता ।

खुली खिड़किया , छत पर रोशनदान ,
धरा पर घास , पास मे सरोवर होता ।

काश , वृक्षो का कोई घर होता ,
जहाँ फल और फूल सुरक्षित होता ।

अनेको घोसलो का सम्राज्य होता ,
विभिन्न जीवों का आवास होता ।

काश , वृक्षो का कोई घर होता ,
तितली व भवरों का गुंजन होता ।

अडिग धरा पर , नन्हे पौधे सिंचता,
मिट्टी को और उपजाऊ करता ।

काश , वृक्षो का कोई घर होता ,
सूखे व बाढ़ को भी चुनौती देता ।

काठ का घर , काठ की गाड़ी ,
काठ की नैया , काठ की कुल्हाड़ी ।

काश , वृक्षो का कोई घर होता ,
मृत लकड़ियो का अभाव होता ।

*******************************

---   :::    महाकुंभ   :::   ---दिव्य ,भव्य महाकुंभ  की अमृत बेला  है ,साधु , संत  और  भक्तगण  का  मेला  है ।      गंगा ...
16/01/2025

--- ::: महाकुंभ ::: ---

दिव्य ,भव्य महाकुंभ की अमृत बेला है ,
साधु , संत और भक्तगण का मेला है ।

गंगा , यमुना और सरस्वती का संगम है ,
त्रिवेणी मे " सूर्यनारायण" का परचम है ।

माघ महिना ,भोर का स्नान चमत्कारी है ,
आस्था की डुबकी , शीतल जल पर भारी है ।

संस्कृति सभ्यता का संगम प्रयागराज है ,
शास्त्रों में वैश्विक तीर्थ , तीर्थराज है ।

स्नान, दान और ध्यान की महिमा है ,
सनातन और अध्यात्म की गरिमा है ।

अमृत कुम्भ , अमृत से भरा गागर है ,
अमृत प्रदान कराने वाला सागर है ।

अनेको जातियो व पंथो का आगम है ,
वैश्विक जन समूहों का समागम है ।

सात्विक विचारो का मंथन कल्पवास है ,
ईश्वर को समर्पित , अस्थायी आवास है ।

**************************************

---   :::  आकाश  और  आभा  :::  ---सूर्योदय  के  पहले  जो  श्वेत  है ,वो  आकाश  की  आभा  है ।सूर्योदय  के  समय  जो  लालिम...
27/11/2024

--- ::: आकाश और आभा ::: ---

सूर्योदय के पहले जो श्वेत है ,
वो आकाश की आभा है ।

सूर्योदय के समय जो लालिमा है ,
वो आकाश की आभा है ।

सूर्योदय के बाद जो सतरंगी है ,
वो आकाश की आभा है ।

सुर्यास्त के समय जो केसरिया है ,
वो आकाश की आभा है ।

सुर्यास्त के बाद जो श्यामल है ,
वो आकाश की आभा है ।

चाँद और तारों से सजी हुई है ,
वो आकाश की आभा है ।

*****************************

Address

Gola Dinanath
Varanasi
221001

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Indrajeet posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Indrajeet:

Share

Category