08/07/2025
*बलिया के बाबू साहब : चंद्रशेखर सिंह – एक विचारधारा, एक आंदोलन, एक इतिहास*
बलिया की धरती ने भारत को कई क्रांतिकारी दिए, लेकिन उनमें से एक नाम विशेष रूप से स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है – *चंद्रशेखर सिंह*, जिन्हें देश *"युवा तुर्क"* और *"बलिया के बाबू साहब"* के नाम से जानता है। वे न केवल एक प्रखर वक्ता और ओजस्वी नेता थे, बल्कि भारतीय राजनीति में सिद्धांतों और नैतिकता की मिसाल बनकर उभरे।
*राजनीतिक सफर और विचारधारा:*
चंद्रशेखर जी का राजनीतिक सफर छात्र राजनीति से शुरू हुआ, लेकिन जल्दी ही वे राष्ट्रीय पटल पर छा गए। वे उन विरले नेताओं में से थे, जिन्होंने सत्ता की राजनीति से ऊपर उठकर देशहित को प्राथमिकता दी। वे एक ऐसे नेता थे जो न केवल सरकार का समर्थन करते थे जब ज़रूरत हो, बल्कि जब सिद्धांतों पर आंच आई तो वही व्यक्ति सबसे पहले विरोध में खड़ा दिखाई दिया।
*प्रधानमंत्री के रूप में:*
उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के रूप में 10 नवंबर 1990 से 20 जून 1991 तक सेवा दी। यद्यपि उनका कार्यकाल महज़ आठ महीने का रहा, लेकिन इन कुछ महीनों में उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि नेतृत्व अनुभव नहीं, दृष्टिकोण और संकल्प से परिभाषित होता है। आर्थिक संकट के समय उनके नेतृत्व ने देश को नई दिशा देने की भूमिका निभाई।
*लोकप्रियता और छवि:*
चंद्रशेखर जी आम जनता के नेता थे। उनके विचार स्पष्ट, भाषण प्रभावशाली और नीयत ईमानदार थी। वे निडरता से सच बोलते थे, चाहे सामने कोई भी सत्ता हो। जनता के मुद्दे हो या राष्ट्र की सुरक्षा, उन्होंने कभी समझौता नहीं किया।
*लेखक और चिंतक के रूप में:*
राजनीति के अलावा वे एक गंभीर चिंतक और लेखक भी थे। उनके लेखन में भारतीय समाज की गहराई, व्यवस्था की पड़ताल और समाधान की दिशा देखने को मिलती थी।
*अंतिम विदाई:*
8 जुलाई 2007 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनके विचार, उनकी दृढ़ता और जनता के लिए समर्पण आज भी ज़िंदा हैं। हर वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर देश उन्हें श्रद्धा से याद करता है।
*नमन उस सच्चे जननेता को,*
*जिसने सादगी से सत्ता को, और सिद्धांतों से व्यवस्था को राह दिखाई।*
✍️ *आलोक रंजन जी की कलम से*
(सौजन्य – बनारसी ख़बर)