Film-baaz

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कहते हैं, जहाँ किशोर दा हैं, वहाँ मस्ती अपने आप चली आती है!और इसका सबसे ज़िंदा सबूत है —1974 की सुपरहिट फिल्म आप की कसम ...
20/10/2025

कहते हैं, जहाँ किशोर दा हैं, वहाँ मस्ती अपने आप चली आती है!
और इसका सबसे ज़िंदा सबूत है —
1974 की सुपरहिट फिल्म आप की कसम का जोशीला गीत “जय जय शिव शंकर” 🎶

राजेश खन्ना और मुमताज़ की जोड़ी पर फिल्माया यह रंग-बिरंगा गाना रिकॉर्डिंग के वक्त ही इतिहास बन गया था।
दरअसल, इस गाने पर उस जमाने में पूरे पचास हज़ार रुपये खर्च हो गए थे —
जो 1970 के दशक में किसी छोटे फिल्म के बजट के बराबर रकम थी! 💸

प्रोड्यूसर J. Om Prakash परेशान थे —

> “इतना खर्च कर दिया, अब गाना क्या सोना उगलेगा?”

अब किशोर कुमार को कौन समझाए!
उन्होंने स्टूडियो का माहौल देखा — सब टेंशन में, सबके चेहरे पर शिकन...
बस फिर क्या था!
रिकॉर्डिंग के दौरान, जोश में आकर किशोर दा ने एक लाइन तुरंत जोड़ दी —

🎶
“बजाओ रे बजाओ, ईमानदारी से बजाओ…
पूरे पचास हज़ार खर्च किए हैं!”
🎶

पूरा ऑर्केस्ट्रा, आर. डी. बर्मन, मुमताज़, सब ठहाके मारकर हँस पड़े! 😂
आर. डी. बर्मन बोले —

> “यार किशोर, यही तो तेरी असली पहचान है…
इसे गाने में ही रहने दे!”

और यही लाइन गाने का ट्रेडमार्क ट्विस्ट बन गई।
आज भी जब यह गीत बजता है,
लोग थिरकते हुए मुस्कुराते हैं —
क्योंकि उन्हें याद आता है वो “ईमानदारी से बजाओ” वाला मस्तीभरा पल।

कहते हैं,

> “जहाँ राजेश खन्ना का करिश्मा,
मुमताज़ की मुस्कान और किशोर दा की शरारत मिल जाए,
वहाँ गाना नहीं, जादू बनता है!” 🎉🪔🎵

J***y Lever — एक लीवर, एक हँसी और एक नया आकाशगाँव की धूल, फैक्ट्री की भट्टी और बचपन की मुश्किलें J***y की एक-एक साँस में...
18/10/2025

J***y Lever — एक लीवर, एक हँसी और एक नया आकाश

गाँव की धूल, फैक्ट्री की भट्टी और बचपन की मुश्किलें J***y की एक-एक साँस में समाई हुई थीं। पिता के अचानक चले जाने के बाद घर की जिम्मेदारियाँ उसकी कंधों पर आ गईं। रोज़-रोज़ की रोटी के लिए वह पास की फैक्ट्री में ट्रकों से कोयला उतारता — छोटे-छोटे लीवर हाथ में थामकर, घुटनों पर मटमैली मिट्टी और आंखों में थकान लिए। पर जिस चीज़ ने उसकी आत्मा को हल्का रखा, वह थी लोगों की नक़ल और चेहरों पर मुस्कान लाने की उसकी आदत। अफ़सरों की नकल, गाँव की बोली — J***y सबको कुछ ही शब्दों में नकल करके हँसा देता।

दिन-प्रतिदिन की मुश्किलों ने उसे टूटते-टूटते एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया जहाँ उसने सोचा — अब और सहन नहीं। एक सुबह उसने ठान लिया कि अब ज़िन्दगी का भार वह और सहन नहीं करेगा; उसने रेल पटरी की ओर कदम बढ़ाए। वहां, जैसे ही ट्रेन की पटरियाँ उसकी आँखों के सामने फैलीं, उसने एक पल के लिए अपने जीवन की स्लाइड दौड़ती देखी — और सबसे तेज़, सबसे छोटे, सबसे दर्द भरे पल में उसकी बहनों का रोता हुआ चेहरा उसकी आँखों के सामने आ खड़ा हुआ। उन आँखों की मासूम गुहार ने कोई शोर मचा दिया। उसी दरम्यान एक तस्वीर और उसके साथ जुड़ी एक लफ़्ज़ उसकी याद में जग गई — वो दिन जब वह फैक्ट्री में कोयला उतार रहा था और लोग चिढ़ाकर कहते थे, "अरे J***y… Lever!" क्योंकि वह लीवर से जोर लगाकर कोयला नीचे करता था। उस हँसी-फुहार भरे मज़ाक ने उसका नाम बदल दिया — J***y + Lever = J***y Lever — पर तब वह नाम उसकी रोज़ी-रोटी का निशान था, ना कि शोहरत का।

ट्रैक पर लेटे हुए, जब उसने खुद को खोलने का आख़िरी निर्णय लिया, उसी घड़ी एक बूढ़े ने पास आकर उसे रोका। बूढ़े की सादगी भरी आवाज़ ने कहा, "तू जो लोगों को हँसाता है, उसी को अपना रास्ता बना।" उस छोटी-सी टिप्पणी में J***y ने अपनी पूरी ज़िन्दगी, वो लीवर, वो कोयला, और अपनी बहनों की आँखों की चमक सब कुछ एक साथ महसूस किया। उसने महसूस किया कि उसकी हँसी, उसका हर नक़लता अंदाज़ — यही उसकी असली ताकत है; और अगर वह चला जाएगा तो कौन उन बहनों का साथ देगा, और कौन उन लोगों को हँसाने आएगा जिनका दिल उसकी हँसी के लिए तरसता है।

वहां से उठकर उसने ज़िन्दगी का एक और मोड़ चुन लिया। उसने अपनी कला को पेशा बनाया — रातों में छोटे-छोटे मंचों पर हँसाना शुरू किया। धीरे-धीरे किरदार बने, अंदाज़ पके, और एक दिन एक कार्यक्रम में Sunil Dutt जी ने उसकी प्रतिभा देखी। किसी से उनका नंबर लिया; फोन आया; 1980 में 'Dard Ka Rishta' जैसी फिल्मों में काम मिला — और पीछे मुड़कर नज़र तक न डाली।

और यह भी याद रखा जाता है कि उसका नाम कैसे पड़ा — "J***y Lever"। वह नाम जो कभी लीवर पकड़कर कोयला उतारने की आदत से जुड़ा था, आज हँसी और मनोरंजन की पहचान बन चुका था। गरीबी की मशक्कत ने उसे तोड़ा नहीं — उसने अपने दर्द को हँसी में बदलकर दुनिया के सामने रख दिया।

राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया की शादी – वो दिन जब पूरे देश के दिल टूटे थे27 मार्च 1973 — यह वो तारीख थी जब भारत के लाखों...
17/10/2025

राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया की शादी – वो दिन जब पूरे देश के दिल टूटे थे

27 मार्च 1973 — यह वो तारीख थी जब भारत के लाखों दिल एक साथ टूट गए थे। उस दिन बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने फिल्म “बॉबी” से मशहूर हुई खूबसूरत अदाकारा डिंपल कपाड़िया से शादी की थी।

वो दौर ही कुछ और था। राजेश खन्ना की दीवानगी का आलम ये था कि लड़कियाँ उनकी तस्वीर से शादी कर लेती थीं। कोई उनकी फोटो को दूल्हा मानकर सिंदूर लगाती, तो कोई उनके नाम की मेहंदी रचाती। जब उनकी शादी की खबर फैली, तो जैसे पूरे देश में सनसनी फैल गई।

शादी के दिन एक शानदार पार्टी रखी गई थी। बाहर हजारों लड़कियाँ इकट्ठा थीं — किसी के हाथ में फूल थे, किसी के हाथ में राजेश खन्ना की तस्वीर, और आँखों में सिर्फ आँसू। कोई अंदर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, पर सबकी निगाहें उस दरवाज़े पर टिकी थीं जहाँ से उनके ‘सपनों के राजकुमार’ की झलक मिलने वाली थी।

भीतर संगीत, हँसी और शुभकामनाओं का माहौल था — पर बाहर दर्द और टूटे हुए सपनों की खामोशी।

कहा जाता है कि उस दिन एक और दिल टूटा था — ऋषि कपूर का। उस समय वे बेहद युवा थे और उनकी पहली फिल्म “बॉबी” की नायिका डिंपल कपाड़िया थीं। वे दोनों एक-दूसरे के काफ़ी करीब आ गए थे। पर नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था।

राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया की शादी में ऋषि कपूर भी पहुँचे, चेहरे पर मुस्कान लिए हुए। लेकिन जो लोग उन्हें जानते थे, वे कह सकते थे कि उस मुस्कान के पीछे दर्द की एक परत छिपी थी।

वो दिन सिर्फ एक शादी का दिन नहीं था — वो दिन था जब भारत के करोड़ों दिलों ने एक साथ आहें भरी थीं, और बॉलीवुड ने अपने सबसे चर्चित प्रेम प्रसंगों में से एक को जन्म लेते देखा था।

🌹 "वो जो दिल की बात कह गया..." 🌹वो सत्तर का दशक था —जब हर गली, हर पोस्टर, हर दिल पर बस एक ही नाम लिखा था —राजेश खन्ना!उन...
13/10/2025

🌹 "वो जो दिल की बात कह गया..." 🌹

वो सत्तर का दशक था —
जब हर गली, हर पोस्टर, हर दिल पर बस एक ही नाम लिखा था —
राजेश खन्ना!
उनकी मुस्कान देख लड़कियाँ होश खो बैठती थीं,
और जब उनकी सफ़ेद कार सड़कों पर निकलती,
तो हवा में इत्र नहीं, इश्क़ तैरने लगता था।

कहते हैं, उनकी कार जब सिग्नल पर रुकती,
तो लड़कियाँ अपने होंठों की लिपस्टिक से
उस पर लाल निशान छोड़ जातीं —
जैसे कह रही हों, "काका, आप हमारे दिल में बसते हैं!"

उसी दौर में एक नई सुबह उग रही थी —
एक मासूम सी लड़की, जिसने दुनिया को अपने भोलेपन से दीवाना कर दिया —
डिंपल कपाड़िया।
फिल्म बॉबी रिलीज़ हुई, और हर तरफ़ बस वही नाम गूंजा —
“मुझसे दोस्ती करोगे?”

राजेश खन्ना ने जब पहली बार पर्दे पर डिंपल को देखा,
तो शायद वक्त वहीं ठहर गया।
हजारों प्रशंसकों के बीच वो भी बस एक बन गए —
जो उस मुस्कान के जादू में खो गया था।
पर ये कोई आम दीवानगी नहीं थी —
ये वो पहली नज़र का प्यार था
जिसे खुद किस्मत ने लिखा था।

कुछ दिनों बाद, एक दिन आसमान में,
Air India की फ्लाइट में —
काका ने देखा, ठीक उनकी सीट के पीछे बैठी है वही लड़की —
वही मासूम चेहरा, वही चमकती आँखें।
दिल ने कहा, “यह मौका है या किस्मत की चाल?”
और काका ने अपनी सीट ‘थोड़ी जुगाड़’ लगाकर
उसके बगल में करवा ली।

फ्लाइट के सफ़र में शब्द कम बोले गए,
पर निगाहों ने जो कहा, वो किसी इकरार से कम नहीं था।
डिंपल मुस्कुराई, काका ने कहा —
“अगर मैं तुमसे कुछ कहूँ, तो मना तो नहीं करोगी?”
वो बोली, “कहिए।”
काका मुस्कुराए —
“क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”

वो हँसी... पहले सोचा मज़ाक है,
पर उनकी आँखों में एक सच्चाई थी —
जो किसी फ़िल्मी डायलॉग से गहरी थी।
और फिर जो होना था, हो गया —
राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया
ने दुनिया के सामने अपने प्यार की मिसाल पेश की।

जब उन्होंने शादी की,
पूरी इंडस्ट्री हैरान रह गई —
क्योंकि वो एक सुपरस्टार थे, और वो एक किशोरी,
पर प्यार, उम्र नहीं देखता,
वो तो बस दिल की आवाज़ सुनता है।

और उस दिन,
सिनेमा के पर्दे से उतरकर,
एक हकीक़त ने जन्म लिया —
जिसे कहा गया:
“वो जो दिल की बात कह गया…”

शोले के टंकी वाले सीन के पीछे की रोचक कहानीबात उस समय की है जब फ़िल्म शोले की शूटिंग जोरों पर चल रही थी। रामगढ़ का सेट त...
11/10/2025

शोले के टंकी वाले सीन के पीछे की रोचक कहानी

बात उस समय की है जब फ़िल्म शोले की शूटिंग जोरों पर चल रही थी। रामगढ़ का सेट तैयार था और उस दिन शूट होना था फ़िल्म का मशहूर “टंकी वाला सीन” — जिसमें वीरू नशे में धुत होकर टंकी पर चढ़ जाता है और नीचे सबको धमकाने लगता है।

सीन की तैयारी पूरी हो चुकी थी। कैमरा, लाइट, और यूनिट के सभी लोग अपनी जगह पर थे। तभी एंट्री हुई वीरू की भूमिका निभा रहे धर्मेंद्र जी की। जैसे ही उन्होंने टंकी पर चढ़ना शुरू किया, सबकी निगाहें ऊपर टिक गईं। लेकिन असली नज़ारा तो तब शुरू हुआ जब धर्मेंद्र जी कुछ ज़्यादा ही “नशे में वीरू” बन गए!

दरअसल, नीचे सेट पर हेमा मालिनी जी भी मौजूद थीं। धर्मेंद्र जी का दिल तो पहले ही उनके नाम हो चुका था, और अब मौक़ा था अपनी बहादुरी और “एक्शन हीरो” अंदाज़ से उन्हें प्रभावित करने का। बस, फिर क्या था — धर्मेंद्र जी ने टंकी पर चढ़कर ऐसा अभिनय शुरू किया कि सबकी सांसें थम गईं।

सेट पर खड़े लोग एक-दूसरे को देख रहे थे — कहीं कोई हादसा न हो जाए! निर्देशक रमेश सिप्पी के माथे पर पसीना था, कैमरा क्रू परेशान थी, और सेट डिज़ाइनर तो बुरी तरह घबरा गया था। उसने तो टंकी मज़बूत बनाई थी, पर धर्मेंद्र जी की “एक्स्ट्रा एनर्जी” के आगे कौन टिकता!

थोड़ी देर तक तो सबने इंतज़ार किया, पर जब हालात काबू से बाहर जाते दिखे, तब अमिताभ बच्चन ने आगे बढ़कर धर्मेंद्र जी को समझाया-बुझाया। बड़ी मुश्किल से, हँसी-मज़ाक के बीच, धर्मेंद्र जी नीचे उतरे — और तभी जाकर सबकी जान में जान आई।

शूटिंग दोबारा शुरू हुई, सीन पूरा हुआ, और वही सीन बाद में शोले का एक यादगार पल बन गया।

कहते हैं, उस दिन न सिर्फ़ “वीरू” ने टंकी जीती थी — बल्कि धर्मेंद्र जी ने हेमा जी का दिल भी जीत लिया था! ❤️

“जनता का असली हीरो – राजेश खन्ना”यह बात उन दिनों की है जब फिल्म “रोटी” की शूटिंग चल रही थी। दोपहर का समय था, गर्मी अपने ...
10/10/2025

“जनता का असली हीरो – राजेश खन्ना”

यह बात उन दिनों की है जब फिल्म “रोटी” की शूटिंग चल रही थी। दोपहर का समय था, गर्मी अपने चरम पर थी, और कैमरा-लाइट्स की तपिश के बीच राजेश खन्ना अपने दृश्य की शूटिंग में व्यस्त थे। उसी समय, एक प्रसिद्ध फिल्म पत्रिका का रिपोर्टर भी वहाँ मौजूद था — राजेश खन्ना का साक्षात्कार लेने आया था।

शूटिंग खत्म हुई तो सब लोग लंच के लिए चले गए। सेट पर हलचल मच गई — कोई अपने बॉय से खाना मँगवा रहा था, कोई होटल के टिफिन खोल रहा था। राजेश खन्ना का बॉय भी जल्दी-जल्दी उनका लंच लेकर भागा चला आया।

इसी बीच, कोने में एक साधारण-सा किसान खड़ा था। उसके हाथ में स्टील की थाली थी, जिसमें साधारण-सा खाना रखा था — दाल, रोटी, प्याज और लहसुन की चटनी। किसान चुपचाप इंतजार कर रहा था, चेहरे पर विनम्रता और आंखों में श्रद्धा थी।

किसी ने उत्सुकता से पूछा,
“भाई, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

किसान मुस्कुराया और बोला,
“मैं गाँव से आया हूँ। सुना कि राजेश खन्ना साहब फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं। मैं उनके लिए अपने घर का बना खाना लाया हूँ। यही हमारी मिट्टी की खुशबू है — सोचा, वो भी चखें।”

यह सुनकर सब हँस पड़े।
किसी ने कहा, “अरे भई! स्टार लोग ऐसा सादा खाना थोड़े खाते हैं। ये तो होटल का बढ़िया खाना खाते हैं।”

इतने में राजेश खन्ना वहाँ पहुँच गए। उन्होंने पूछा,
“क्या बात है? इतनी हँसी क्यों हो रही है?”

जब उन्हें सारी बात बताई गई तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
उन्होंने कहा,
“होटल का खाना तो मैं रोज खाता हूँ। पर जब हम अपनी फिल्म ‘भारत के किसान’ पर बना रहे हैं, तो क्यों न एक बार असली किसान का खाना भी चखा जाए?”

यह कहकर उन्होंने थाली उठाई, पास की चारपाई पर बैठ गए और बड़े प्रेम से वह सादा खाना खाने लगे। दाल, रोटी, प्याज और चटनी — सब कुछ बड़े स्वाद से खाया।

वहाँ मौजूद सब लोग स्तब्ध रह गए। उस दिन सबने माना कि राजेश खन्ना सिर्फ परदे पर नहीं, असल जिंदगी में भी जनता के हीरो हैं।

रिपोर्टर ने उस पल को अपने कैमरे में कैद कर लिया — एक ऐसा यादगार क्षण, जो आज भी लोगों को याद दिलाता है कि असली महानता सादगी में होती है।

“वो सिर्फ सितारे नहीं थे, वो दिलों के राजा थे — हमारे ‘काका’, सच्चे अर्थों में जनता के हीरो।” 🌟

सन् 1979 की बात है। मुंबई की सड़कों पर हल्की-हल्की फुहारें गिर रही थीं। उसी दौरान निर्देशक बासु चटर्जी अपनी फिल्म “मंजिल...
09/10/2025

सन् 1979 की बात है। मुंबई की सड़कों पर हल्की-हल्की फुहारें गिर रही थीं। उसी दौरान निर्देशक बासु चटर्जी अपनी फिल्म “मंजिल” की शूटिंग की तैयारी कर रहे थे। फिल्म का एक बेहद खूबसूरत गीत था — “रिमझिम गिरे सावन”। बासु चटर्जी चाहते थे कि यह गाना असली मुंबई की बारिश में फिल्माया जाए ताकि उसमें सच्ची भावना और यथार्थ झलके।

लेकिन जब यूनिट को यह बात बताई गई तो सबके होश उड़ गए। सभी को लगा कि मुंबई की बारिश में शूट करना लगभग असंभव है — न जाने कब तेज़ बरसात हो जाए, कब कैमरा और लाइटिंग खराब हो जाए। मगर बासु चटर्जी का इरादा पक्का था। उन्होंने कहा, “अगर यह गाना असली बारिश में नहीं फिल्माया गया, तो इसकी आत्मा अधूरी रह जाएगी।”

आख़िरकार, अमिताभ बच्चन और मौसमी चटर्जी को लेकर यूनिट ने फैसला किया कि शूटिंग बिना किसी बड़ी तैयारी के सड़क पर दूर से की जाएगी ताकि लोग इकट्ठे न हों। किस्मत भी जैसे फिल्म की टीम के साथ थी — उसी दिन मुंबई की फुहारें शुरू हो गईं।

कैमरा चालू हुआ — अमिताभ बच्चन अपने काले सूट में मुस्कुराते हुए चल रहे थे और मौसमी चटर्जी नीली साड़ी में उनके साथ भीगती हुई जा रही थीं। दोनों के चेहरों पर बारिश की बूँदें ऐसे चमक रही थीं मानो गाने की हर पंक्ति को जीवंत कर रही हों। सड़क पर गाड़ियाँ चल रही थीं, लेकिन उस पल में बस संगीत, बारिश और वो दो मुस्कुराते चेहरे थे।

जब शूटिंग खत्म हुई तो सबके कपड़े पानी से तरबतर थे। सब कपड़े बदलने चले गए। कुछ देर बाद जब मौसमी चटर्जी नई साड़ी में वापस आईं, तो सब ज़ोर-ज़ोर से हँस पड़े — असल में उनकी नीली साड़ी पर बने फूल पानी में भीगने से उनके शरीर पर छप गए थे! पहले तो वह समझ नहीं पाईं, फिर आईने में देखकर खुद भी खिलखिला उठीं।

उस दिन की थकान, भीगती सड़कों की ठंडक, और वह सच्ची मुस्कान — सबके दिलों में हमेशा के लिए बस गई।
उस असली बारिश में जन्मा यह गीत “रिमझिम गिरे सावन” आज भी उतना ही ताज़ा और रोमांटिक लगता है, जितना उस दिन मुंबई की बारिश की महक। 🌧️🎬💙

साल 1982 था। फ़िल्म नमक हलाल की रिकॉर्डिंग चल रही थी। मशहूर संगीतकार बप्पी लाहिड़ी ने एक बहुत ही मज़ेदार और चुलबुला गाना...
06/10/2025

साल 1982 था। फ़िल्म नमक हलाल की रिकॉर्डिंग चल रही थी। मशहूर संगीतकार बप्पी लाहिड़ी ने एक बहुत ही मज़ेदार और चुलबुला गाना बनाया था — “आज रपट जाएँ तो हमें न उठइयो, हाँ हमें न उठइयो…”।
इस गाने को गाने के लिए बुलाए गए थे दो महान गायक — किशोर कुमार और आशा भोसले।

रिकॉर्डिंग शुरू होते ही माहौल हँसी-मज़ाक से भर गया। किशोर दा, जो हमेशा मस्ती के मूड में रहते थे, ने अपनी आदत के मुताबिक बीच-बीच में मज़ेदार हरकतें और चुटकुले सुनाने शुरू कर दिए। कभी वो माइक के सामने मुँह बनाते, तो कभी किसी मज़ाकिया अंदाज़ में “रपट जाने” की एक्टिंग करने लगते।

आशा जी गाना गाने की कोशिश करतीं, लेकिन हर बार हँसी रोकना मुश्किल हो जाता। उनकी आवाज़ निकलते ही किशोर दा कुछ न कुछ ऐसा कर देते कि रिकॉर्डिंग रुक जाती। पूरी यूनिट हँसी से लोटपोट हो जाती — बप्पी दा भी खुद हँसते-हँसते दोहरे हो गए।

आख़िरकार आशा भोसले जी को कहना पड़ा —
“किशोर दा! बस करिए अब, मुझे गाना पूरा करने दीजिए!”

किशोर दा ने बच्चे की तरह सिर झुका लिया, लेकिन उनकी आँखों में वही शरारती चमक थी। फिर दोनों ने मुस्कुराते हुए गाना पूरा किया — और नतीजा वो evergreen हिट गाना बना जिसे आज भी सुनकर हर कोई मुस्कुरा उठता है।

कहते हैं, उस दिन की रिकॉर्डिंग में जितनी हँसी रिकॉर्डिंग रूम के बाहर गूँजी, उतनी शायद किसी और गाने में कभी नहीं हुई!🎶😂🎵

रफी साहब और इम्पाला कार का वादाएक बार की बात है। दिलीप कुमार साहब के घर में एक शानदार फ़िल्मी पार्टी रखी गई थी। उस शाम प...
04/10/2025

रफी साहब और इम्पाला कार का वादा

एक बार की बात है। दिलीप कुमार साहब के घर में एक शानदार फ़िल्मी पार्टी रखी गई थी। उस शाम पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े-बड़े सितारे वहाँ मौजूद थे। चाँदनी रात में समुद्र की ठंडी हवाएँ बह रही थीं और हर ओर रौनक ही रौनक थी।

मोहम्मद रफ़ी साहब भी अपनी पत्नी के साथ इस पार्टी में पहुँचे। पार्टी के बाहर खड़ी चमचमाती गाड़ियों की कतार देखते ही सबकी नज़रें ठहर-सी जाती थीं। इन्हीं गाड़ियों में एक शाही कार खड़ी थी – शेवरलेट इम्पाला।

रफ़ी साहब की पत्नी उस कार के सामने कुछ देर के लिए ठिठक गईं। उनकी आँखों में चमक थी और मन में छिपी एक मासूम ख्वाहिश भी। रफ़ी साहब ने हँसते हुए उनसे पूछा –
“क्या बात है? ऐसे क्यों देख रही हो?”

पत्नी ने धीरे से कहा –
“क्या हम ज़िंदगी भर बस परदे के पीछे गाते रहेंगे? क्या हमारे नसीब में कभी ऐसी कार होगी?”

उनकी आवाज़ में एक मासूम-सी तड़प थी। रफ़ी साहब उस पल चुप हो गए, लेकिन उनके दिल में पत्नी की बात गहराई से उतर गई। उन्होंने मुस्कुराते हुए उनका हाथ थामा और दृढ़ स्वर में बोले –
“तुम देखना, एक दिन यही कार मैं तुम्हें दिलाऊँगा। और मुंबई के जुहू बीच के किनारे तुम्हें तोहफ़े में दूँगा।”

दिन बीतते गए। रफ़ी साहब अपनी आवाज़ के जादू से गानों की दुनिया में राज करने लगे। उनके गीत हर दिल की धड़कन बन गए। और फिर वह दिन आया जब रफ़ी साहब ने अपनी पत्नी को सचमुच शानदार शेवरलेट इम्पाला भेंट की।

वादा निभाने के लिए वे उन्हें जुहू बीच ले गए। समुद्र की लहरें गवाह बनीं, जब रफ़ी साहब ने हँसते हुए कहा –
“लो, यह रही तुम्हारी इम्पाला। आज तुम्हारा ख्वाब पूरा हुआ।”

पत्नी की आँखें खुशी से नम हो गईं। वह पल उनके लिए सिर्फ़ एक कार पाने का नहीं था, बल्कि यह एहसास था कि उनके पति ने हर छोटी-बड़ी ख्वाहिश को अपने दिल पर लिया और उसे पूरा करके दिखाया।

समुद्र किनारे खड़ी वह इम्पाला सिर्फ़ लोहे और मशीन की बनी कार नहीं थी, बल्कि रफ़ी साहब और उनकी पत्नी के प्रेम, विश्वास और पूरे किए गए वादे की पहचान थी।
✨ यह किस्सा आज भी हमें यह सिखाता है कि रिश्तों की असली खूबसूरती वादे निभाने में है।

एक बार की बात है। राज कपूर साहब का जन्मदिन था और उनके करीबी दोस्तों व फिल्मी साथियों ने एक शानदार पार्टी का आयोजन किया। ...
03/10/2025

एक बार की बात है। राज कपूर साहब का जन्मदिन था और उनके करीबी दोस्तों व फिल्मी साथियों ने एक शानदार पार्टी का आयोजन किया। माहौल खुशियों से भरा हुआ था—हंसी, ठहाके, गाने और मुस्कुराहटें चारों ओर गूंज रही थीं।

इसी बीच जब केक लाने का समय आया, तो सबकी नज़रें उस ट्रे पर टिक गईं जिस पर केक रखा था। यह कोई साधारण केक नहीं था, बल्कि बिल्कुल जूते के आकार का था! और यह केक खासतौर से राज कपूर की उस मशहूर फिल्म “श्री 420” के गीत “मेरा जूता है जापानी” से प्रेरित था।

जैसे ही राज कपूर ने केक देखा, वह चौंक गए और माथे पर हाथ रखकर बोले—
“अरे! ये तो मेरे जूतों को भी मिठाई बना लाए हो!”

सारी महफ़िल ठहाकों से गूंज उठी। राज कपूर थोड़े शर्माए, थोड़े हैरान। तभी उनके पास खड़ी नर्गिस जी ने बड़ी सधी हुई मुस्कान के साथ कहा—
“राज, जब आपके गाने ने दुनिया को हंसी और उम्मीद दी है, तो इस जूते के केक से पार्टी की मिठास क्यों न बढ़ाई जाए?”

उन्होंने चाकू उठाया और पूरे सलीके से केक काटने लगीं। सभी लोग हंसते-हंसते ताली बजाने लगे और एक-एक टुकड़ा लेकर इस अनोखे अंदाज़ का आनंद लेने लगे।

उस शाम न केवल राज कपूर का जन्मदिन यादगार बन गया, बल्कि यह भी साबित हो गया कि असली कलाकार वही है, जो हर स्थिति को मुस्कान और सहजता से संभाल ले।

मोहम्मद रफ़ी साहब अपने गाने, अपनी आवाज़ और सादगी के लिए जाने जाते थे। एक दिन उनके घर में नया ब्लैक एंड व्हाइट टीवी आया। ...
02/10/2025

मोहम्मद रफ़ी साहब अपने गाने, अपनी आवाज़ और सादगी के लिए जाने जाते थे। एक दिन उनके घर में नया ब्लैक एंड व्हाइट टीवी आया। उस दौर में टीवी होना किसी चमत्कार से कम नहीं था।

रफ़ी साहब ने जैसे ही पहली बार टीवी चालू किया, स्क्रीन पर नाचते-गाते चित्र उभर आए। उनकी आँखें चमक उठीं, जैसे कोई बच्चा पहली बार जादू देख रहा हो। वे मुस्कुराते हुए बोले – “वाह! ये तो गाना बजाने वाले रेडियो से भी आगे की चीज़ है… अब तो गाना सुनते-सुनते देख भी सकते हैं!”

घर के बच्चे, रिश्तेदार और पड़ोसी भी इकट्ठा हो गए। सब लोग छोटे से ड्रॉइंग रूम में ठसाठस भर गए और हँसी-खुशी का माहौल बन गया। रफ़ी साहब खुद भी भीड़ में एक साधारण इंसान की तरह बैठे, और बच्चों के साथ ताली बजाते हुए टीवी का आनंद लेने लगे।

उस दिन मोहम्मद रफ़ी साहब ने कहा – “ज़िंदगी की असली खुशी इन्हीं छोटे-छोटे पलों में छिपी होती है।” और सबके दिलों में उनकी यह बात हमेशा के लिए बस गई।

👉 यह छोटी-सी घटना बताती है कि एक महान कलाकार भी छोटी खुशियों में कितना सच्चा आनंद पाता है।

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