30/01/2024
*हर हर महादेव*
*सभी सनातनी भाई ध्यान दें फॉर्म को पढ़कर ही भरें और अपने साथियों को पढ़वा कर ही भरवाएं।*
जैसा की हम सब जानते हैं कि आज से 2500 वर्ष पूर्व जब भारत से सनातन वैदिक हिंदूधर्म लगभग समाप्त हों चुका था। सारे हिन्दू राजा बौद्ध, जैन, कापालिक आदि नास्तिक, विधर्मी मतों को स्वीकार कर चुके थें जिसके कारण सारे मंदिर, गुरुकुल, वैदिक मठ आश्रम आदि नष्ट कर दिए गए थें। इस कारण से हिंदू प्रजा भी 1300 से अधिक मतों पंथों में विभाजित होकर संघर्षरत हो गई थी ऐसे में भगवान् शिव धरती पर आदि शंकराचार्य के रूप में अवतरित होकर संपूर्ण भारत से कुछ वर्षों में ही धर्म विरोधी नास्तिक मतों, पंथों, संप्रदायों को शास्त्रार्थ के माध्यम से पराजित करके पुनः सभी राजाओं का शोधन करके उन्हे वैदिक राजधर्म एवं भारतीय प्रजा को सनातन वैदिक वर्णाश्रमधर्म में प्रतिष्ठित कर दिए साथ ही देश के सभी तीर्थों, धामों, मंदिरों, मठों, गुरुकुलों आदि को भी सुव्यवस्थित करके पुनः प्रतिष्ठित कर दिए थें।
आदि शंकराचार्य जी ने चार दिशाओं में चार पीठों की स्थापना करके प्रत्येक पीठ पर अपने शिष्यों को विराजमान करके 10 प्रकार के संन्यासियों की परंपरा स्थापित करके यह घोषणा कर दिए थें कि हे संतमधर्मी भारत की प्रजा हमारे चारों पीठों पर बैठे आचार्यों को मेरा ही स्वरूप समझकर इनके अनुसार अपना जीवन चलाना और सदा अपने लौकिक एवं पारलौकिक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें।
शंकराचार्य जी के शिष्य युधिष्ठिर के वंशज चक्रवर्ती सम्राट महाराज सुधन्वा ने भारत की हिंदू प्रजा के नाम ताम्रपत्र शासनादेश जारी किया था जो आजतक मान्य है यह एक ईश्वरीय आदेश है जिसे हम सब हिंदुओं को सदा मानना चाहिए।
इतिहास से यह सिद्ध है कि यदि आज से 2500 वर्ष पूर्व शंकराचार्य जी न होते तो आज भारत में न तो सनातनधर्म होता न ही कोई सनातनी हिंदू ही होता। शंकराचार्य जी के पूर्व ही लगभग सभी हिंदू बौद्ध, जैन सहित अनेक प्रकार के विधर्मी बन गए थें जो आज कायरतापूर्ण अहिंसा के चक्कर में मुसलमानों के द्वारा मारकाट कर मुसलमान बना दिए गए होते। यह शंकराचार्य जी एवं उनकी परंपरा ही है जिसके कारण हम आजतक हिंदू बने हुए हैं।
भारत के इतिहास में एकमात्र शंकराचार्य जी ही हैं जो शास्त्रार्थ के माध्यम से समस्त विधर्मी मतों को हराकर दिग्विजयी हुएं हैं इसलिए शंकराचार्य जी ही सर्वोच्च धर्मगुरु जगद्गुरु सिद्ध होते हैं अन्य कोई संप्रदायाचार्य दिग्विजयी नहीं है अतः कोई भी जगद्गुरु नहीं है पर शंकराचार्य परंपरा को नष्ट करने के लिए सभी संप्रदायाचार्य अपने को जगद्गुरु कहने लगे हैं।
सनातन हिंदूधर्म के अनुसार राजसत्ता सदा धर्मसत्ता के अधीन ही होनी चाहिए क्योंकि यदि राजसत्ता धर्माचार्यों के ऊपर हो जायेगी तो वो धर्म के नाम पर अधर्म करेगी जिसे कोई नहीं रोक पायेगा जैसा कि आज हो रहा है।
शंकराचार्य जी के जाने के बाद पुनः अनेक मत पंथ उगने लगे जो कि आज के समय हजारों की संख्या में होकर धर्म विरुद्ध कार्य करने में लग गए हैं। कुछ विधर्मी मतों ने तो धर्म का आवरण ओढ़ कर राजनीति के माध्यम से सत्ता पर कब्जा जमा कर धर्म कार्य में हस्तक्षेप कर रहे हैं और सनातनधर्म सहित, 2500 वर्ष की गुरु परंपरा शंकराचार्य परंपरा को समाप्त करने का षड़यंत्र रच रहे हैं। अतः आज सनातनधर्म, शंकराचार्य परम्परा, भारत की मूल संस्कृति को बचाने के लिए यह आवश्यक हो गया है कि हम सभी सनातनी अब कमर कस लें अन्यथा बहुत देर हो जायेगी।
आज भारत के समस्त शंकराचार्य अनुयाइयों को संगठित होने की आवश्यकता है अतः आप सब इस घोषणा पत्र को स्वयं भरकर अपने अपने सभी सच्चे सनातनी शंकराचार्य प्रेमी मित्रों से अधिक से अधिक भरवाएं जिससे कि हम लोग सभी सच्चे सनातनियों को एकजुट कर के धरातल पर धर्मकार्य कर सकें।
https://forms.gle/twU9MBXrzTB7ABsc8
धन्यवाद
दीपक भाई केसरी
जगद्गुरु शंकराचार्य संवाद मंच
8218227285