Vashudev Krishna

Vashudev Krishna कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणतः क्लेशनाशाय
गोविंदाय नमो नमः ।। कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।

एक राजा के दरबार मे एक अजनबी इंसान नौकरी माँगने के लिए आया।उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई,तो वो बोला,मैं आदमी हो चाहे जानवर, ...
28/09/2025

एक राजा के दरबार मे एक अजनबी इंसान नौकरी माँगने के लिए आया।उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई,
तो वो बोला,मैं आदमी हो चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ।राजा ने उसे अपने खास घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज बना दिया।चंद दिनों बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा,उसने कहा, नस्ली नही हैं।राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा..
उसने बताया, घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसकी पैदायश पर इसकी माँ मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है।राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?
उसने कहा जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं।राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और अंडे बतौर इनाम भिजवा दिए।और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया।चंद दिनो बाद , राजा ने उस से रानी के बारे में राय माँगी, उसने कहा, तौर तरीके तो रानी जैसे हैं लेकिन पैदाइशी नहीं हैं।राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, उसने अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा हक़ीक़त ये हैं, कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता माँग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।
राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा तुम को कैसे पता चला ?उसने कहा, रानी साहिबा का नौकरो के साथ सुलूक गंवारों से भी बुरा हैं। एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता हैं, जो रानी साहिबा में बिल्कुल नही।🌹जय श्री कृष्णा🌹📿🙏

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर क...
28/09/2025

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे।दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा! तुम्हारी राजधानी के बीचों बीच जो पुराना सूखा कुंआ है, अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक-एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है।अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था। उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे, अगर मैं अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया।अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुई थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।जब भी कोई ऐसा समाज का धर्म का गौसंरक्षण का काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि अब तो बहुत से लोग जुड़ गए हैं कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो समाज में ऐसा बदलाव ला सकते हैं।
🌹जय श्री कृष्णा 🌹📿🙏

भेष बदलने से स्वभाव नहीं बदलता बात द्वापरयुग की है, अज्ञातवास में पांडव रूप बदलकर ब्रह्मणों के वेश में रह रहे थे। एक दिन...
27/09/2025

भेष बदलने से स्वभाव नहीं बदलता बात द्वापरयुग की है, अज्ञातवास में पांडव रूप बदलकर ब्रह्मणों के वेश में रह रहे थे। एक दिन उन्हें कुछ ब्राह्मण मिले। वे राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर में जा रहे थे। पांडव भी उनके साथ चल दिए।स्वयंवर में पानी में देखकर ऊपर घूम रही मछली पर निशाना लगाना था। वहां मौजूद सभी ने प्रयास किया। लेकिन निशाना सिर्फ अर्जुन ही लगा पाए। शर्त के अनुसार द्रौपदी का स्वयंवर और इसके बाद शादी अर्जुन के साथ हुई। इसके बाद पांडव द्रौपदी को लेकर अपनी कुटिया में ले आए।एक ब्राह्मण द्वारा स्वंयवर में विजयी होने पर राजा द्रुपद को बड़ी हैरानी हुई। वह अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन जैसे वीर युवक के साथ करना चाहते थे। अतः राजा द्रुपद ब्रह्मणों की वास्तविकता का पता लगाने के लिए राजमहल में भोज का कार्यक्रम रखा और उन ब्रह्मणों को भी बुलाया। राजमहल को कई वस्तुओं से सजाया गया।एक कक्ष में फल फूल तो दूसरे कक्ष में अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया गया। भोजन करने के बाद सभी अपनी मनपसंद चीजें देखने लगे। लेकिन ब्राह्मण वेशधारी अस्त्र-शस्त्र वाले कमरे में पहुंचे। यह सब कुछ राजा द्रुपद देख रहे थे। वे समझ गए यह ब्राह्मण नहीं, बल्कि क्षत्रिए हैं।मौका मिलते हैं उन्होंने ब्राह्मण वेशधारी युधिष्ठिर से पूछा, सच बताइए आप ब्रह्मण हैं या क्षत्रिए। युधिष्ठिर हमेशा सच बोलते थे। उन्होंन स्वीकार कर लिया कि वे सचमुच क्षत्रिए हैं। और स्वयंवर जीतने वाले अर्जुन है। यह जानकर राजा द्रुपद बहुत प्रसन्न हुए, और सोचने लगे कि अपने भेष भले ही बदल ले लेकिन विचार आसानी से नहीं बदलते हैं।
🌹जय श्री कृष्णा🌹📿🙏

एक राजा था। उसने एक सपना देखा। सपने में उससे एक परोपकारी साधु कह रहा था कि, बेटा! कल रात को तुम्हें एक विषैला सांप काटेग...
27/09/2025

एक राजा था। उसने एक सपना देखा। सपने में उससे एक परोपकारी साधु कह रहा था कि, बेटा! कल रात को तुम्हें एक विषैला सांप काटेगा और उसके काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुसम पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है।सुबह हुई। राजा सोकर उठा। और सपने की बात अपनी आत्मरक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए? इसे लेकर विचार करने लगा।सोचते- सोचते राजा इस निर्णय पर पहुंचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया।शाम होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुंचाने की कोशिश न करें।रात को सांप अपनी बांबी में से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। वह जैसे आगे बढ़ता गया, अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, जगह-जगह पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता था।इस तरह क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव उसमें बढ़ने लगे। जैसे-जैसे वह आगे चलता गया, वैसे ही वैसे उसका क्रोध कम होता गया। राजमहल में जब वह प्रवेश करने लगा तो देखा कि प्रहरी और द्वारपाल सशस्त्र खड़े हैं, परन्तु उसे जरा भी हानि पहुंचाने की चेष्टा नहीं करते।यह असाधारण सी लगने वाले दृश्य देखकर सांप के मन में स्नेह उमड़ आया। सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के जादू ने उसे मंत्रमुग्ध कर लिया था। कहां वह राजा को काटने चला था, परन्तु अब उसके लिए अपना कार्य असंभव हो गया। हानि पहुंचाने के लिए आने वाले शत्रु के साथ जिसका ऐसा मधुर व्यवहार है, उस धर्मात्मा राजा को काटूं तो किस प्रकार काटूं? यह प्रश्न के चलते वह दुविधा में पढ़ गया।
राजा के पलंग तक जाने तक सांप का निश्चय पूरी तरह से बदल दिया। उधर समय से कुछ देर बाद सांप राजा के शयन कक्ष में पहुंचा। सांप ने राजा से कहा, राजन! मैं तुम्हें काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था, परन्तु तुम्हारे सौजन्य और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया।अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूं। मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूं। लो इसे अपने पास रखो। इतना कहकर और मणि राजा के सामने रखकर सांप चला गया। अतः व्यक्ति व्यवहार कुशल है तो वो सब कुछ पा सकता है जो पाने की वो हार्दिक इच्छा रखता है।🌹जय श्री कृष्णा🌹📿🙏

एक किसान के घर एक दिन उसका कोई परिचित मिलने आया। उस समय वह घर पर नहीं था।उसकी पत्नी ने कहा: वह खेत पर गए हैं। मैं बच्चे ...
26/09/2025

एक किसान के घर एक दिन उसका कोई परिचित मिलने आया। उस समय वह घर पर नहीं था।उसकी पत्नी ने कहा: वह खेत पर गए हैं। मैं बच्चे को बुलाने के लिए भेजती हूं। तब तक आप इंतजार करें।
कुछ ही देर में किसान खेत से अपने घर आ पहुंचा। उसके साथ-साथ उसका पालतू कुत्ता भी आया। कुत्ता जोरों से हांफ रहा था। उसकी यह हालत देख, मिलने आए व्यक्ति ने..किसान से पूछा: क्या तुम्हारा खेत बहुत दूर है ?
किसान ने कहा: नहीं, पास ही है। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?उस व्यक्ति ने कहा: मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि तुम और तुम्हारा कुत्ता दोनों साथ-साथ आए, लेकिन तुम्हारे चेहरे पर रंच मात्र थकान नहीं जबकि कुत्ता बुरी तरह से हांफ रहा है।किसान ने कहा: मैं और कुत्ता एक ही रास्ते से घर आए हैं। मेरा खेत भी कोई खास दूर नहीं है। मैं थका नहीं हूं। मेरा कुत्ता थक गया है। इसका कारण यह है कि मैं सीधे रास्ते से चलकर घर आया हूं, मगर कुत्ता अपनी आदत से मजबूर है। वह आसपास दूसरे कुत्ते देखकर उनको भगाने के लिए उसके पीछे दौड़ता था और भौंकता हुआ वापस मेरे पास आ जाता था। फिर जैसे ही उसे और कोई कुत्ता नजर आता, वह उसके पीछे दौड़ने लगता। अपनी आदत के अनुसार उसका यह क्रम रास्ते भर जारी रहा। इसलिए वह थक गया है।देखा जाए तो यही स्थिति आज के इंसान की भी है। जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना यूं तो कठिन नहीं है, लेकिन राह में मिलने वाले कुत्ते व्यक्ति को उसके जीवन की सीधी और सरल राह से भटका रहे हैं। इंसान अपने लक्ष्य से भटक रहा है और यह भटकाव ही इंसान को थका रहा है। यह लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। आपकी ऊर्जा को रास्ते में मिलने वाले कुत्ते बर्बाद करते है।भौंकने दो इन कुत्तो को और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सीधे बढ़ते रहो फिर एक दिन ना एक दिन मंजिल मिल ही जाएगी। लेकिन इनके चक्कर में पड़ोगे तो थक ही जाओगे। अब ये आपको सोचना है कि किसान की तरह सीधी राह चलना है या उसके कुत्ते की तरह।
🌹जय श्री कृष्ण🌹📿🙏

Happy follow-versary to my awesome followers. Thanks for all your support! मेरे सभी बेमिसाल फ़ॉलोअर्स को हमारी फ़ॉलो-वर्...
26/09/2025

Happy follow-versary to my awesome followers. Thanks for all your support! मेरे सभी बेमिसाल फ़ॉलोअर्स को हमारी फ़ॉलो-वर्सरी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ. मेरा साथ देने के लिए धन्यवाद! Raju Mishra

पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर दोनों पड़ोसी थे। गरीब ब्राम्हण की क्षपत्...
24/09/2025

पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर दोनों पड़ोसी थे। गरीब ब्राम्हण की क्षपत्नी, उसे प्रतिदिन ताने देती, झगड़ती।एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आ जंगल की ओर चल पड़ता है। ये सोचकर, कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मार कर खा जायेगा। उस जीव का पेट भर जायेगा और मरने से वो रोज की झिक-झिक से मुक्त हो जायेगा।जंगल में जाते उसे एक गुफा नजर आती है, वो गुफा की तरफ़ जाता है। गुफा में एक शेर सोया होता है और शेर की नींद में बाधा न पड़े इसके लिये हंस का पहरा होता है।हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़ सोचता है। ये ब्राह्मण आयेगा, शेर जगेगा और इसे मार कर खा जायेगा ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा, इसे बचायें कैसे?उसे उपाय सूझता है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता हैओ जंगल के राजा उठो, जागोआज आपके भाग खुले हैं, ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हे दक्षिणा देकर रवाना करेंआपका मोक्ष हो जायेगा ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में शायद ही आये, आपको पशु योनी से छुटकारा मिल जायेगा।शेर दहाड़ कर उठता है, हंस की बात उसे सही लगती है और पूर्व में शिकार मनुष्यों के गहने वो ब्राह्मण के पैरों में रख, शीश नवाता है, जीभ से उनके पैर चाटता है।हंस ब्राह्मण को इशारा करता है विप्रदेव ये सब गहने उठाओ और जितना जल्द हो सके वापस अपने घर जाओ, ये सिंह है कब मन बदल जाय। ब्राह्मण बात समझता है और घर लौट जाता है। पडौसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब सब पता चलता है तो वो भी अपने पति को जबरदस्ती अगली ग्यारस को जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है।
अब शेर का पहरेदार बदल जाता है, नया पहरेदार होता है कौवा। जैसे कौवे की प्रवृति होती है वो सोचता है, बढिया है ब्राह्मण आया शेर को जगाऊं। शेर की नींद में बाधा पड़ेगी, गुस्साएगा, ब्राह्मण को मारेगा, तो कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा पेट भर जायेगा।ये सोच वो कांव-कांव-कांव चिल्लाता है, शेर गुस्सा हो जागता है, दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नजर पड़ती है। उसे हंस की बात याद आ जाती है वो समझ जाता है, कौवा क्यूं कांव-कांव कर रहा है।
वो अपने, पूर्व में हंस के कहने पर किये गये धर्म को खत्म नहीं करना चाहता। फिर भी शेर, शेर होता है जंगल का राजा! वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है: हंस उड़ सरवर गये, और अब काग भये प्रधान, तो विप्र थांरे घरे जाओ, मैं किनाइनी जिजमान।अर्थात हंस जो अच्छी सोच वाले अच्छी मनोवृत्ति वाले थे, उड़के सरोवर यानि तालाब को चले गये है और अब कौवा प्रधान पहरेदार है। जो मुझे तुम्हें मारने के लिये उकसा रहा है। मेरी बुध्दि घूमें उससे पहले ही, हे ब्राह्मण! यहां से चले जाओ, शेर किसी का जजमान नहीं हुआ है। वो तो हंस था जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया।दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है, और डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है। कहने का मतलब है, हंस और कौवा कोई और नहीं, हमारे ही चरित्र है।
कोई किसी का दु:ख देख दु:खी होता है और उसका भला सोचता है, वो हंस है।और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है, किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता, वो कौवा है।जो आपस में मिलजुल, भाईचारे से रहना चाहते हैं, वे हंस प्रवृत्ति के हैं। जो झगड़े कर एक दूजे को मारने लूटने की प्रवृत्ति रखते हैं वे कौवे की प्रवृति के है। अपने आस पास छुपे बैठे कौवौं को पहचानों, उनसे दूर रहो और जो हंस प्रवृत्ति के हैं, उनका साथ करो इसी में सब का कल्याण छुपा है।

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! मेरे नए फ़ॉलोअर्स का स्वागत है! आपसे जुड़ना मेरे लिए खुशी...
24/09/2025

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! मेरे नए फ़ॉलोअर्स का स्वागत है! आपसे जुड़ना मेरे लिए खुशी की बात है! Maria Rai, Manoj Sharma, Abdhesh Mishra, Pramod Pathak, Jagdish Katriya, Roshan Sharma, Surendra Singh, दैवज्ञ दिनेश नारायण मिश्र, Saroj Bind Saroj Bind, Bikram Nayak, Amar Lal Ahuja, Rambabu Simhadri, Raju Nayek, Shonchoy Kayet, Tiwari K T Kailash, Kamlesh Kamlesh Kamlesh, Perm Kumar Mishra, Komal Agarwal, Monu Singh, Baburam Ram, Nayan Sarker, संतश्री अशोक बाबा जी

एक बार, बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का राजा था। वह नित्य अपने इष्ट देव की बडी श्रद्धा से पूजा-पा...
23/09/2025

एक बार, बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का राजा था। वह नित्य अपने इष्ट देव की बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ और याद करता था।एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा: राजन् मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। बोलो तुम्हारी कोई इच्छा है?प्रजा को चाहने वाला राजा बोला: भगवन् मेरे पास आपका दिया सब कुछ है।आपकी कृपा से राज्य मे सब प्रकार सुख-शान्ति हॆ। फिर भी मेरी एक ईच्छा हॆ कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी दर्शन दीजिये।यह तो सम्भव नहीं है: भगवान ने राजा को समझाया। परन्तु प्रजा को चाहने वाला राजा भगवान् से जिद्द् करने लगा। आखिर भगवान को अपने साधक के सामने झुकना पडा ओर वे बोले,-ठीक है, कल अपनी सारी प्रजा को उस पहाडी के पास लाना। मैं पहाडी के ऊपर से दर्शन दूँगा।राजा अत्यन्त प्रसन्न. हुअा और भगवान को धन्यवाद दिया। अगले दिन सारे नगर मे ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी पहाड के नीचे मेरे साथ पहुँचे, वहाँ भगवान् आप सबको दर्शन देगें।दूसरे दिन राजा अपने समस्त प्रजा और स्वजनों को साथ लेकर पहाडी की ओर चलने लगा। चलते-चलते रास्ते मे एक स्थान पर तांबे कि सिक्कों का पहाड देखा। प्रजा में से कुछ एक उस ओर भागने लगे।तभी ज्ञानी राजा ने सबको सर्तक किया कि कोई उस ओर ध्यान न दे,क्योकि तुम सब भगवान से मिलने जा रहे हो,इन तांबे के सिक्कों के पीछे अपने भाग्य को लात मत मारो।परन्तु लोभ-लालच मे वशीभूत कुछ एक प्रजा तांबे कि सिक्कों वाली पहाडी की ओर भाग गयी और सिक्कों कि गठरी बनाकर अपने घर कि ओर चलने लगे। वे मन ही मन सोच रहे थे,पहले ये सिक्कों को समेट ले, भगवान से तो फिर कभी मिल लेगे।
राजा खिन्न मन से आगे बढे। कुछ दूर चलने पर चांदी कि सिक्कों का चमचमाता पहाड दिखाई दिया।इस वार भी बचे हुये प्रजा में से कुछ लोग, उस ओर भागने लगे ओर चांदी के सिक्कों को गठरी बनाकर अपनी घर की ओर चलने लगे।उनके मन मे विचार चल रहा था कि,ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता है । चांदी के इतने सारे सिक्के फिर मिले न मिले, भगवान तो फिर कभी मिल जायेगें।
इसी प्रकार कुछ दूर और चलने पर सोने के सिक्कों का पहाड नजर आया।अब तो प्रजाजनो में बचे हुये सारे लोग तथा राजा के स्वजन भी उस ओर भागने लगे। वे भी दूसरों की तरह सिक्कों कि गठरी लाद कर अपने-अपने घरों की ओर चल दिये।अब केवल राजा ओर रानी ही शेष रह गये थे।राजा रानी से कहने लगे: देखो कितने लोभी ये लोग। भगवान से मिलने का महत्व ही नहीं जानते हैं। भगवान के सामने सारी दुनिया कि दौलत क्या चीज है? सही बात है- रानी ने राजा कि बात का समर्थन किया और वह आगे बढने लगे।कुछ दुर चलने पर राजा ओर रानी ने देखा कि सप्तरंगि आभा बिखरता हीरों का पहाड है। अब तो रानी से रहा नहीं गया,हीरों के आर्कषण से वह भी दौड पडी, और हीरों कि गठरी बनाने लगी। फिर भी उसका मन नहीं भरा तो साड़ी के पल्लू मेँ भी बांधने लगी । वजन के कारण रानी के वस्त्र देह से अलग हो गये,परंतु हीरों का तृष्णा अभी भी नहीं मिटी। यह देख राजा को अत्यन्त ग्लानि ओर विरक्ति हुई। बड़े दुःखद मन से राजा अकेले ही आगे बढते गये।वहाँ सचमुच भगवान खडे उसका इन्तजार कर रहे थे।राजा को देखते ही भगवान मुसकुराये ओर पुछा: कहाँ है तुम्हारी प्रजा और तुम्हारे प्रियजन। मैं तो कब से उनसे मिलने के लिये बेकरारी से उनका इन्तजार कर रहा हूॅ।राजा ने शर्म और आत्म-ग्लानि से अपना सर झुका दिया।तब भगवान ने राजा को समझाया: राजन जो लोग भौतिक सांसारिक प्राप्ति को मुझसे अधिक मानते हॆ, उन्हें कदाचित मेरी प्राप्ति नहीं होती ओर वह मेरे स्नेह तथा आर्शिवाद से भी वंचित रह जाते हॆ।
जो आत्मायें अपनी मन ओर बुद्धि से भगवान पर समर्पित रहिते हैं, और सर्व सम्बधों से प्यार करते है, वह भगवान के प्रिय बनते हैं।

अनंत ब्रह्मांडो का रचयिताजब तुम्हें संवारने पे आएगा तोतुम्हारा अंत भी तुम्हारा प्रारंभबन जाएगा..!🌹📿🙏
21/09/2025

अनंत ब्रह्मांडो का रचयिता
जब तुम्हें संवारने पे आएगा तो
तुम्हारा अंत भी तुम्हारा प्रारंभ
बन जाएगा..!🌹📿🙏

!! श्री कृष्ण कहते हैं !!कुछ वक्त शांत रहकर गुजार लो पार्थ तुम्हारा वक्त नहीं तुम्हारा दौर आएगा, क्योंकि तुम्हारी कहानी ...
21/09/2025

!! श्री कृष्ण कहते हैं !!
कुछ वक्त शांत रहकर गुजार लो पार्थ तुम्हारा वक्त नहीं तुम्हारा दौर आएगा, क्योंकि तुम्हारी कहानी का लेखक मै ख़ुद हूं..!!```

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