Vashudev Krishna

Vashudev Krishna कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणतः क्लेशनाशाय
गोविंदाय नमो नमः ।। कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।

Big shout out to my newest top fans! 💎 मेरे नए टॉप फ़ैन का बहुत-बहुत आभार! 💎 Raghu Nath Panka, Mahi Jangra, Rupa Singh, ...
01/09/2025

Big shout out to my newest top fans! 💎 मेरे नए टॉप फ़ैन का बहुत-बहुत आभार! 💎 Raghu Nath Panka, Mahi Jangra, Rupa Singh, Rahul Mishra, Ashok Thakur , Apka Kitchen, Ajay Mishra, Rishabh Dev Pathak, Nishant Pandey, Jay Pathak, Chetan Shukla, Babul Kumar

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जब साधक आध्यात्मिक मार्ग पर चलता है तो वह खुद के भीतर के परिवर्तन को देखता है अपनी सोच में परिवर्तन होते हुए दिखता है जब...
01/09/2025

जब साधक आध्यात्मिक मार्ग पर चलता है तो वह खुद के भीतर के परिवर्तन को देखता है अपनी सोच में परिवर्तन

होते हुए दिखता है जब वह पहले छोटी-छोटी बातों में क्रोध उत्पन्न करके खुद को ऊलझा देता था अब वह,

धीरे-धीरे खुद को यही छोटी-छोटी बातों को बेहतर तरीके के साथ अपनी बात को रखना सीख लेता है जहां खुद के

ही काम के प्रति निराशा व्यक्त करता था वही काम में उसे करने में आनंद की अनुभूति करता है जहां लोगों से खुद

को बेहतर समझता था वहीं लोगों को अपने समान समझता है क्योंकि उसकी ही गलतियां सबके भीतर की

गलतियों को एक समान रूप में देखकर माफ करना सीख लेता है औरजहां व्यक्ति माफ करना ही सीख जाता

है तो वह खुद के भीतर से कभी भी अंशांत नहीं रह सकता अब उसके भीतर के शांति का मार्ग का पता चल

जाता है तब वह वही मार्ग पर चलकर वह अपने आध्यात्मिक मार्ग पर अंतिम चरण तक पोहचंने का मार्ग

खुद ही ढूंढ लेता है.... अब उसे अपने भीतर के ही शांति में खुद के जीवन के हर व्यवहार के साथ अपने

आध्यात्मिक मार्ग पर चलते आनंद के साथ जीना अच्छे से सीख लेता है ।🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹📿🙏

क्या राधा ब्रह्माण्ड मैं सबसे सुंदर हैं!यह श्री राधा सहस्रनाम से है जिसे मूल रूप से भगवान शिव ने पार्वती देवी राधारानी स...
01/09/2025

क्या राधा ब्रह्माण्ड मैं सबसे सुंदर हैं!

यह श्री राधा सहस्रनाम से है जिसे मूल रूप से भगवान शिव ने पार्वती देवी राधारानी से कहा था, भगवान शिव ने इसमें उनकी सुंदरता का वर्णन किया है:

उनका निवास भगवान कृष्ण के अंगों (कृष्णांगवासिनी) पर है। वे मनोहर (हृदया) हैं। वे भगवान हरि की प्रियतमा (हरिकांता और हरिप्रिया), प्रधान गोपी (प्रधान गोपिका)

और तीनों लोकों की सबसे सुंदरी (त्रैलोक्य सुंदरी) हैं।
वह वृन्दावन (वृंदावन-विहारी) में लीलाओं का आनंद लेती है, उसका चेहरा एक खिलता हुआ कमल

(विकासिता-मुखम्बुजा) है, और वह गोकुल (गोकुलानंद-कर्तरी और गोकुलानंद-दायिनी) में खुशी लाती है।वैदिक अध्ययन (वेद-गम्य) द्वारा उनकी प्राप्ति

होती है। वे वेदों (वेद-परा) में वर्णित परम लक्ष्य हैं। वे अद्भुत स्वर्ण आभूषणों (विचित्र-कनकोज्ज्वला), यशस्वी (उज्ज्वला-प्रद) और नित्य (नित्य) से शोभायमान हैं, और

उनके अंग महिमा (उज्ज्वला-गात्रिका) से परिपूर्ण हैं।
जैसा कि स्वयं भगवान शिव ने कहा है राधारानी त्रैलोक्य सुंदरी हैं।श्रीराधारानी के नेत्रों का सौन्दर्य नव-विकसित

नीले कमल पुष्पों के सौन्दर्य को भी अपने में समाहित कर लेता है, और उनके मुख का सौन्दर्य पूर्णतः खिले हुए कमलों के सम्पूर्ण वन से भी बढ़कर है। 😍 उनकी

शारीरिक कांति सोने को भी कष्टदायक स्थिति में डाल देती है। इस प्रकार वृन्दावन में श्री राधारानी का अद्भुत, अभूतपूर्व सौन्दर्य जागृत हो रहा है।

उसकी आंखें काकोरी पक्षी की आंखों की आकर्षक विशेषताओं को पराजित करती हैं।राधारानी का मुखमंडल देखते ही उसे तुरंत चंद्रमा के सौंदर्य से घृणा हो

जाती है। उनका शारीरिक रंग स्वर्ण के सौंदर्य को भी परास्त कर देता है। अतः आइए हम सब श्री राधारानी के दिव्य सौंदर्य का दर्शन करें।"

विदग्धा-माधव, द्वितीय अंक, श्लोक 31 में , कृष्ण अपने मित्र से कहते हैं, मेरे प्रिय मित्र, यह कितनी अद्भुत बात है कि जब से मैंने श्री राधारानी के सुन्दर कमल-नेत्र देखेहैं,

तब से मुझमें चन्द्रमा और कमल-पुष्प पर थूकने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गई है!राधारानी के सौंदर्य और उनके दिव्य शरीर की आभा की कोई तुलना नहीं है।श्रीराधारानी

के सौंदर्य के सम्मुख चन्द्रमा का तथाकथित सौंदर्य भी फीके पड़ गए हैं।श्रीराधारानी का स्नेह, उनका उत्तम सौंदर्य और अच्छा व्यवहार, उनका कलात्मक नृत्य और

कीर्तन तथा उनकी काव्य रचनाएँ सभी इतनी आकर्षक हैं कि वे कृष्ण के मन को आकर्षित करती हैं, जो ब्रह्मांड में सभी के मन को आकर्षित करते हैं।

कृष्ण को मदन-मोहन कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे इतने आकर्षक हैं कि वे हज़ारों कामदेवों के आकर्षण को परास्त कर सकते हैं। लेकिन राधारानी तो और भी

अधिक आकर्षक हैं, क्योंकि वे कृष्ण को भी आकर्षित कर सकती हैं। इसलिए भक्त उन्हें मदन-मोहन-मोहिनी कहते हैं - कामदेवों के आकर्षण की भी आकर्षण।

जब कृष्ण राधारानी के सामने आते हैं, तो वह कृष्ण की सुंदरता को देखकर इतनी प्रसन्न हो जाती हैं कि वह और अधिक सुंदर हो जाती हैं। 🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🙏

हे श्री कृष्ण! तुम सर्वज्ञ हो अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है।एक वृद्ध महिला एक सब्जी की दुकान पर जाती है, उसके पास सब्जी ...
31/08/2025

हे श्री कृष्ण! तुम सर्वज्ञ हो अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है।एक वृद्ध महिला एक सब्जी की दुकान पर जाती है,

उसके पास सब्जी खरीदने के पैसे नहीं होते है। वो
दुकानदार से प्रार्थना करती है कि उसे सब्जी उधार दे दे

पर दुकानदार मना कर देता है। उसके बार-बार आग्रह
करने पर दुकानदार खीज कर कहता है, तुम्हारे पास कुछ

ऐसा है , जिसकी कोई कीमत हो, तो उसे इस तराजू पर रख दो, मैं उसके वजन के बराबर सब्जी तुम्हे दे दूंगा।

वृद्ध महिला कुछ देर सोच में पड़ जाती है। क्योंकि उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं था। कुछ देर सोचने के बाद वह,

एक मुड़ा-तुड़ा कागज का टुकड़ा निकलती है और उस पर कुछ लिख कर तराजू पर रख देती है।

दुकानदार ये देख कर हंसने लगता है। फिर भी वह थोड़ी सब्जी उठाकर तराजू पर रखता है।आश्चर्य..!!!

कागज वाला पलड़ा नीचे रहता है और सब्जी वाला ऊपर उठ जाता है। इस तरह वो और सब्जी रखता जाता है पर

कागज वाला पलड़ा नीचे नहीं होता। तंग आकर दुकानदार उस कागज को उठा कर पढता है और हैरान

रह जाता है। कागज पर लिखा था, हे श्री कृष्ण! तुम सर्वज्ञ हो, अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है।

दुकानदार को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वो उतनी सब्जी वृद्ध महिला को दे देता है। पास खड़ा एक

अन्य ग्राहक दुकानदार को समझाता है, कि दोस्त,आश्चर्य मत करो। केवल श्री कृष्ण ही जानते हैं की प्रार्थना का क्या मोल होता है।

वास्तव में प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है। चाहे वो एक घंटे की हो या एक मिनट की। यदि सच्चे मन से की जाये, तो

ईश्वर अवश्य सहायता करते हैं।अक्सर लोगों के पास ये बहाना होता है, की हमारे पास वक्त नहीं। मगर सच तो ये

है कि ईश्वर को याद करने का कोई समय नहीं होता।
🌹Jai shree radhe Krishna 🌹📿🪷🙏

श्री राधा रानी के एक बार नाम लेने की कीमत?एक बार एक व्यक्ति था। वह एक संत जी के पास गया। और कहता है कि संत जी, मेरा एक ब...
31/08/2025

श्री राधा रानी के एक बार नाम लेने की कीमत?

एक बार एक व्यक्ति था। वह एक संत जी के पास गया। और कहता है कि संत जी, मेरा एक बेटा है। वो न तो पूजा

पाठ करता है और न ही भगवान का नाम लेता है। आप कुछ ऐसा कीजिये कि उसका मन भगवान में लग जाये।

संत जी कहते है: ठीक है बेटा, एक दिन तू उसे मेरे पास लेकर आ जा। अगले दिन वो व्यक्ति अपने बेटे को लेकर

संत जी के पास गया। अब संत जी उसके बेटे से कहते है- बेटा, बोल राधे राधे!बेटा कहता है: मैं क्यू कहूँ?

संत जी कहते है: बेटा बोल राधे राधे!वो इसी तरह से मना करता रहा और अंत तक उसने यही कहा कि: मैं क्यू कहूँ राधे राधे!

संत जी ने कहा: जब तुम मर जाओगे और यमराज के पास जाओगे तब यमराज तुमसे पूछगे कि कभी भगवान

का नाम लिया। कोई अच्छा काम किया। तब तुम कह देना की मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को

बोला है। बस एक बार। इतना बताकर वह चले गए।
समय व्यतीत हुआ और एक दिन वो मर गया। यमराज के

पास पहुंचा। यमराज ने पूछा: कभी कोई अच्छा काम किया है।उसने कहा: हाँ महाराज, मैंने जीवन में एक बार

श्री राधा रानी के नाम को बोला है। आप उसकी महिमा बताइये।यमराज सोचने लगे कि एक बार नाम की महिमा

क्या होगी? इसका तो मुझे भी नहीं पता है।यम बोले: चलो इंद्र के पास वो ही बतायेगे। तो वो व्यक्ति बोला मैं

ऐसे नही जाऊंगा पहले पालकी लेकर आओ उसमे बैठ कर जाऊंगा।यमराज ने सोचा ये बड़ी मुसीबत है। फिर भी

पालकी मंगवाई गई और उसे बिठाया। 4 कहार लग गए। वो बोला यमराज जी सबसे आगे वाले कहार को हटा कर

उसकी जगह आप लग जाइये। यमराज जी ने ऐसा ही किया।फिर सब मिलकर इंद के पास पहुंचे और बोले कि

एक बार श्री राधा रानी के नाम लेने की महिमा क्या है?
इंद्र बोले: महिमा तो बहुत है। पर क्या है ये मुझे भी नहीं

मालूम। बोले की चलो ब्रह्मा जी को पता होगा वो ही बतायेगे।वो व्यक्ति बोला इंद्र जी ऐसा है दूसरे कहार को

हटा कर आप यमराज जी के साथ मेरी पालकी उठाइये। अब एक ओर यमराज पालकी उठा रहे है और दूसरी

तरफ इंद्र लगे हुए है। पहुंचे ब्रह्मा जी के पास।ब्रह्मा ने सोचा कि ऐसा कौन सा प्राणी ब्रह्मलोक में आ रहा है जो

स्वयं इंद्र और यमराज पालकी उठा कर ला रहे है। ब्रह्मा के पास पहुंचे। सभी ने पूछा कि एक बार श्री राधा रानी के

नाम लेने की महिमा क्या है?ब्रह्मा जी बोले: महिमा तो बहुत है पर वास्तविकता क्या है कि ये मुझे भी नहीं पता।

लेकिन हाँ भगवान शिव जी को जरूर पता होगा।
वो व्यक्ति बोला कि तीसरे कहार को हटाइये और उसकी

जगह ब्रह्मा जी आप लग जाइये। अब क्या करते महिमा तो जाननी थी। अब पालकी के एक ओर यमराज है,

दूसरी तरफ इंद्र और पीछे ब्रह्मा जी है।सब मिलकर भगवान शिव जी के पास गए और भगवान शिव से पूछा

कि प्रभु श्री राधा रानी के नाम की महिमा क्या है? केवल एक बार नाम लेने की महिमा आप कृपा करके बताइये।

भगवान शिव बोले कि मुझे भी नहीं पता। लेकिन भगवान विष्णु जी को जरूर पता होगी। वो व्यक्ति शिव जी से

बोला कि अब आप भी पालकी उठाने में लग जाइये। इस प्रकार ब्रह्मा, शिव, यमराज और इंद्र चारों उस व्यक्ति की

पालकी उठाने में लग गए और विष्णु जी के लोक पहुंचे।
विष्णु से जी पूछा कि एक बार श्री राधा रानी के नाम लेने

की महिमा क्या है?विष्णु जी बोले: अरे! जिसकी पालकी को स्वयं मृत्य का राजा यमराज, स्वर्ग का राजा इंद्र, ब्रह्म

लोक के राजा ब्रह्मा और साक्षात भगवान शिव उठा रहे हो इससे बड़ी महिमा क्या होगी। जब सिर्फ एक बार श्री

राधा रानी नाम लेने के कारण, आपने इसको पालकी में उठा ही लिया है। तो अब ये मेरी गोद में बैठनेकाअधिकारी

हो गया है।भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि जो केवल रा बोलते है तो मैं सब काम छोड़ कर खड़ा हो

जाता हूँ। और जैसे ही कोई धा शब्द का उच्चारण करता है तो मैं उसकी ओर दौड़ लगा कर उसे अपनी गोद में भर लेता हूँ। Jai shree radhe 🌹🪷🙏

कृष्ण की भौहें यमुना के समान हैं और राधारानी की मुस्कान चांदनी के समान है।जब यमुना और चांदनी नदी के तट पर मिलते हैं, तो ...
31/08/2025

कृष्ण की भौहें यमुना के समान हैं और राधारानी की मुस्कान चांदनी के समान है।

जब यमुना और चांदनी नदी के तट पर मिलते हैं, तो पानी अमृत के समान स्वाद वाला होता है, और उसे पीने से

अपार संतुष्टि मिलती है। यह बर्फ के ढेर के समान शीतलता प्रदान करता है।

भगवान कृष्ण मदनमोहन हैं, वे मदनदाह बन जाते हैं, अर्थात राधारानी की सुंदरता से मोहित हो जाते हैं।

वैकुंठ लोक में भगवान के भक्त भगवान को सबसे सुन्दर देखना चाहते हैं, किन्तु गोकुल या कृष्णलोक में भक्त

राधारानी को कृष्ण से भी अधिक सुन्दर देखना चाहते हैं।
कृष्ण सबसे सुंदर हैं, राधारानी सबसे सुंदर हैं। युगल, युवा

युगल।जब हम देखते हैं कि राधा कितनी सुंदर हैं, कृष्ण कितने सुंदर हैं, तो हमारी पूजा का विषय क्या है? हाँ। इस

भौतिक संसार में सौंदर्य की पूजा कहाँ से आई, जब तक कि मूल रूप, कृष्ण और राधा में सौंदर्य न हो?

तो ईश्वर निराकार नहीं हो सकता । वरना यह सौंदर्य-पूजा क्यों होती? और वह हमेशा इतनी अच्छी तरह से तैयार

होती है कि दामोदर, कृष्ण, उसकी सुंदरता से आकर्षित हो जाते हैं।और वह कृष्ण की एकमात्र प्रिय वस्तु है, और

वह वृंदावन की रानी है। वृंदावन की महारानी
🌹जय श्री राधे कृष्ण📿🌹🙏

यह श्री राधा सहस्रनाम से है जिसे मूल रूप से भगवान शिव ने पार्वती देवी राधारानी से कहा था, भगवान शिव ने इसमें उनकी सुंदरत...
31/08/2025

यह श्री राधा सहस्रनाम से है जिसे मूल रूप से भगवान शिव ने पार्वती देवी राधारानी से कहा था, भगवान शिव ने इसमें उनकी सुंदरता का वर्णन किया है:

उनका निवास भगवान कृष्ण के अंगों (कृष्णांगवासिनी) पर है। वे मनोहर (हृदया) हैं। वे भगवान हरि की प्रियतमा (हरिकांता और हरिप्रिया), प्रधान गोपी (प्रधान गोपिका)

और तीनों लोकों की सबसे सुंदरी (त्रैलोक्य सुंदरी) हैं।
वह वृन्दावन (वृंदावन-विहारी) में लीलाओं का आनंद लेती है, उसका चेहरा एक खिलता हुआ कमल

(विकासिता-मुखम्बुजा) है, और वह गोकुल (गोकुलानंद-कर्तरी और गोकुलानंद-दायिनी) में खुशी लाती है।वैदिक अध्ययन (वेद-गम्य) द्वारा उनकी प्राप्ति

होती है। वे वेदों (वेद-परा) में वर्णित परम लक्ष्य हैं। वे अद्भुत स्वर्ण आभूषणों (विचित्र-कनकोज्ज्वला), यशस्वी (उज्ज्वला-प्रद) और नित्य (नित्य) से शोभायमान हैं, और

उनके अंग महिमा (उज्ज्वला-गात्रिका) से परिपूर्ण हैं।
जैसा कि स्वयं भगवान शिव ने कहा है राधारानी त्रैलोक्य सुंदरी हैं।श्री राधारानी के नेत्रों का सौन्दर्य नव-विकसित

नीले कमल पुष्पों के सौन्दर्य को भी अपने में समाहित कर लेता है, और उनके मुख का सौन्दर्य पूर्णतः खिले हुए कमलों के सम्पूर्ण वन से भी बढ़कर है। 😍 उनकी

शारीरिक कांति सोने को भी कष्टदायक स्थिति में डाल देती है। इस प्रकार वृन्दावन में श्रीमती राधारानी का अद्भुत, अभूतपूर्व सौन्दर्य जागृत हो रहा है।

उसकी आंखें काकोरी पक्षी की आंखों की आकर्षक विशेषताओं को पराजित करती हैं।राधारानी का मुखमंडल देखते ही उसे तुरंत चंद्रमा के सौंदर्य से घृणा हो

जाती है। उनका शारीरिक रंग स्वर्ण के सौंदर्य को भी परास्त कर देता है। अतः आइए हम सब श्रीमती राधारानी के दिव्य सौंदर्य का दर्शन करें।" विदग्धा-माधव, द्वितीय

अंक, श्लोक 31 में , कृष्ण अपने मित्र से कहते हैं, '
मेरे प्रिय मित्र, यह कितनी अद्भुत बात है कि जब से मैंने श्रीमती राधारानी के सुन्दर कमल-नेत्र देखे हैं, तब से

मुझमें चन्द्रमा और कमल-पुष्प पर थूकने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गई है!'"राधारानी के सौंदर्य और उनके दिव्य शरीर की आभा की कोई तुलना नहीं है। राधारानी के

सौंदर्य के सम्मुख चन्द्रमा का तथाकथित सौंदर्य भी फीके पड़ गए हैं।श्रीमती राधारानी का स्नेह, उनका उत्तम सौंदर्य और अच्छा व्यवहार, उनका कलात्मक नृत्य और कीर्तन

तथा उनकी काव्य रचनाएँ सभी इतनी आकर्षक हैं कि वे कृष्ण के मन को आकर्षित करती हैं, जो ब्रह्मांड में सभी के मन को आकर्षित करते हैं।कृष्ण को मदन-मोहन कहा

जाता है, जिसका अर्थ है कि वे इतने आकर्षक हैं कि वे हज़ारों कामदेवों के आकर्षण को परास्त कर सकते हैं। लेकिन राधारानी तो और भी अधिक आकर्षक हैं, क्योंकि

वे कृष्ण को भी आकर्षित कर सकती हैं। इसलिए भक्त उन्हें मदन-मोहन-मोहिनी कहते हैं - कामदेवों के आकर्षण की भी आकर्षण।जब कृष्ण राधारानी के सामने

आते हैं, तो वह कृष्ण की सुंदरता को देखकर इतनी प्रसन्न हो जाती हैं कि वह और अधिक सुंदर हो जाती हैं।
🪷जय श्री राधे🪷♥️🎊🎉🙏

पौराणिक कथा के अनुसार, द्वारका नगरी के राजा भगवान श्रीकृष्ण को एक बार खबर मिली कि उनके भक्त सुदामा जीवन में बहुत ही गरीब...
30/08/2025

पौराणिक कथा के अनुसार, द्वारका नगरी के राजा भगवान श्रीकृष्ण को एक बार खबर मिली कि उनके भक्त

सुदामा जीवन में बहुत ही गरीबी का सामना कर रहे हैं। इस बात को सुनने के बाद प्रभु अपने परम भक्त से मिलने

के लिए उनके घर पहुंचे। घर पर श्रीकृष्ण को देख सुदामा बेहद प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रभु को कुछ खिलाने की सोची,

लेकिन उनके घर पर कुछ भी नहीं था। ऐसे में सुदामा की पत्नी सुशीला ने चावल को पीसकर श्रीकृष्ण को खिलाए।

प्रभु उन दोनों की भक्तों को देख अधिक खुश हुए और उन्हें धन में वृद्धि का आशीर्वाद दिया। इसके पश्चात कृष्ण

जी द्वारका नगरी के लिए वापस लौटे। इस दौरान उन्होंने बचपन के मित्र सुदामा की गरीबी के बारे में सोचकर

अपनी आंखें बंद कर ली। इसी वजह से प्रभु को इस तरह की स्थिति में रहना पड़ा। सुदामा की गरीबी के कारण

श्रीकृष्ण ने निर्णय लिया कि वह जीवन में कभी भी किसी की गरीबी नहीं देखेंगे। इसी वजह से प्रभु ने हमेशा के

लिए अपनी आंखें बंद कर ली।जय हो द्वारिकाधीश🙏🙏

राधा कृष्ण के प्रेम का साक्षी समस्त संसार रहा है। ब्रज की स्वामिनी श्री राधा रानी और ब्रज के लाला श्री कृष्ण की प्रेम ली...
29/08/2025

राधा कृष्ण के प्रेम का साक्षी समस्त संसार रहा है। ब्रज की स्वामिनी श्री राधा रानी और ब्रज के लाला श्री कृष्ण

की प्रेम लीलाओं का आज भी ब्रज के कोने-कोने में सबूत मिलता है। धर्म-ग्रंथों और शास्त्रों में भी राधा-कृष्ण

की लीलाओं का वर्णन है। इन्हीं लीलाओं में से एक लीला यह भी है जब श्री कृष्ण ने राधा रानी की तरह श्रृंगार कर

उनका रूप धरा था। आइये जानते हैं क्यों राधा रानी बन गए थे श्री कृष्ण?एक कथा के अनुसार, राधा के प्रति

अपने प्रेम को दर्शाने के लिए कृष्ण ने एक बार राधा रानी का रूप धारण किया था। यह कथा भागवत पुराण में

वर्णित है जहां एक बार राधा और कृष्ण प्रेम में लीन थे और राधा के मन में यह जानने की इच्छा हुई कि कृष्ण

राधा से कितना प्रेम करते हैं।राधा के इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कृष्ण ने राधा का रूप धारण कर लिया और

रासलीला में भाग लिया। इस रूप में उन्होंने श्री राधा रानी को यह दिखाया कि वह भी राधा से उतना ही प्रेम

करते हैं जितना राधा उनसे करती हैं। इसके अलावा, एक और कथा भी इसके पीछे मौजूद है।राधा-कृष्ण के प्रेम

को संसार को समझाने हेतु कृष्ण ने राधा का रूप लिया था। यह कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित है जहां एक बार

कृष्ण ने अपनी योगमाया से राधा का रूप धारण किया और गोपियों के साथ रासलीला में भाग लिया। इस रूप में

उन्होंने गोपियों संग संसार को एक बात बताई।वो बात ये थी कि राधा कृष्ण एक ही हैं और उनके प्रेम को कोई

अलग नहीं कर सकता। वह यह भी दर्शाना चाहते थे कि प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं है और राधा का प्रेम स्वार्थ से

परे था जो सिर्फ कृष्ण के लिए था। कृष्ण ने राधा का रूप धारण करके राधा रानी के चरण भी दबाए थे।श्री राधा

रानी के चरणों को दबाने का अर्थ यह था कि जिससे हम प्रेम करते हैं पुरुष को उस स्त्री के चरण दबाने से कभी भी

हिचकिचाना नहीं चाहिए। श्री कृष्ण ने राधा रानी का अपने हाथों से श्रृंगार भी किया था और उनके केशों यानी

कि बालों को भी अपने हाथों से संवारा था।अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें

कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और अपना फीडबैक भी शेयर कर सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने

का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी

पढ़ने के लिएजुड़े रहे वासुदेव कृष्ण से
राधे राधे जय श्री राधे🙏🙏

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।सरल-सा अर्...
29/08/2025

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।

सरल-सा अर्थ है- ‘हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य,

तुम्हीं सब कुछ हो। तुम ही मेरे देवता हो।’
बचपन से प्रायः यह प्रार्थना सबने पढ़ी है।

द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति। द्रव्य जो तरल

है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं
रहता। आखिर ‘लक्ष्मी’ भी कहीं टिकती है क्या!

कितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका ‘वरीयता क्रम’। ज़रा देखिए तो! समझिए तो!

सबसे पहले माता क्योंकि वह है तो फिर संसार में किसी की जरूरत ही नहीं। इसलिए हे प्रभु! तुम माता हो!

फिर पिता, अतः हे ईश्वर! तुम पिता हो! दोनों नहीं हैं तो फिर भाई ही काम आएंगे। इसलिए तीसरे क्रम पर भगवान से भाई का रिश्ता जोड़ा है।

जिसकी न माता रही, न पिता, न भाई तब सखा काम आ सकते हैं, अतः सखा त्वमेवं!

वे भी नहीं तो आपकी विद्या ही काम आना है। यदि जीवन के संघर्ष में नियति ने आपको निपट अकेला छोड़ दिया है

तब आपका ज्ञान ही आपका भगवान बन सकेगा। यही इसका संकेत है।

और सबसे अंत में ‘द्रविणं’ अर्थात धन। जब कोई पास न हो तब हे देवता तुम्हीं धन हो।

रह-रहकर सोचता हूं कि प्रार्थनाकार ने वरीयता क्रम में जो धन-द्रविणं को सबसे पीछे अर्थात सबसे नीचे रखा है ,

आजकल हमारे आचरण में वह सबसे ऊपर क्यों आ जाता है ? 😧😧इतना कि उसे ऊपर लाने के लिए माता

से पिता तक, बंधु से सखा तक सब नीचे चले जाते हैं, पीछे छूट जाते हैं।

वह कीमती है, पर उससे ज्यादा कीमती और भी बहुत कुछ हैं। “उससे बहुत ऊँचे आपके अपने” है ।

बार-बार ख्याल आता है, द्रविणं सबसे पीछे बाकी रिश्ते ऊपर। बाकी लगातार ऊपर से ऊपर, धन क्रमश: नीचे से नीचे!
याद रखिये दुनिया में झगड़ा रोटी का नहीं थाली का है! वरना वह रोटी तो सबको देता ही है!

चांदी की थाली यदि कभी आपके वरीयता क्रम को पलटने लगे, तो इस प्रार्थना को जरूर याद कर लीजिये

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