23/04/2025
क्या हिंदू होना गुनाह है? क्या किसी का धर्म पूछकर, उसका नाम सुनकर, उसकी पैंट उतारकर उसकी ज़िंदगी छीन लेना इंसानियत है?
क्या गुनाह था उनका? क्या अपराध था उस नौसेना अधिकारी का, जिसने 19 अप्रैल को अपनी दुल्हन के साथ नई जिंदगी की शुरुआत की थी, और 22 अप्रैल को पहलगाम की गोली ने उसे हमेशा के लिए छीन लिया? क्या गलती थी उस खुफ़िया अधिकारी की, जिसके बच्चे और पत्नी आँखों के सामने बिलखते रहे, चीखते रहे, “पापा को बचा लो!”? क्या कसूर था उन पर्यटकों का, जिनसे उनका नाम और धर्म पूछकर, उनके सीने में गोलियाँ उतार दी गईं?
कभी पहलगाम की वादियाँ हंसी-खुशी की गूंज से भरी थीं। लिद्दर नदी का साफ पानी, बेताब वैली की हरियाली, और बर्फीले पहाड़ों की गोद में सैलानी अपने सपनों को जीते थे। लेकिन आज… आज वही वादियाँ खून से लथपथ हैं। आतंक की काली छाया ने मासूमों की सांसें छीन लीं। 26 जिंदगियाँ, जो अपने परिवारों के साथ खुशियाँ बटोरने आई थीं, अब सिर्फ़ यादों में सिमट गईं।
मेरे दिल में गुस्सा है, रोष है, उन कायरों के ख़िलाफ़ जिन्होंने इंसानियत को तार-तार किया। ये आतंकी, जो धर्म का नकाब पहनकर मासूमों का खून बहाते हैं, क्या इन्हें नहीं पता कि हर मज़हब इंसानियत सिखाता है? ये नफ़रत की आग, ये हिंसा का ज़हर, आख़िर कब तक हमारे देश की शांति को ललकारेगा?
मैं सोचता हूँ उस पत्नी की आँखों का दर्द, जो अपने पति की लाश के पास बैठकर रो रही थी, “मेरे सामने गोली मारी, मैं कुछ न कर सका!” मैं कल्पना करता हूँ उन बच्चों का डर, जो अपने माता-पिता को खोकर अनाथ हो गए। हर तस्वीर, हर वीडियो, जो सामने आ रहा है, मेरे सीने में चाकू की तरह चुभता है। एक महिला की चीख, “मेरे पति को बचा लो!” मेरे कानों में गूँज रही है।
पहलगाम का वो ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’, जहाँ लोग प्यार और सुकून की तलाश में जाते थे, आज लाशों का मेला बन गया। 26 परिवारों की दुनिया उजड़ गई। यूपी, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु, और दो विदेशी सैलानी—सबके सपने बैसरन की घाटी में दफ़न हो गए।
मैं निंदा करता हूँ इस कायराना हमले की। मैं गुस्से से चीखना चाहता हूँ कि इन आतंकियों को, इनके आकाओं को, इस नफ़रत को जड़ से उखाड़ फेंकें। लेकिन साथ ही, मेरा दिल उन माँओं, पत्नियों, बच्चों, भाइयों-बहनों के लिए रो रहा है, जिनके अपने अब कभी नहीं लौटेंगे।
हे भगवान, उन आत्माओं को शांति दे, जो इस क्रूरता का शिकार बनीं। उन परिवारों को हिम्मत दे, जो इस दर्द से गुज़र रहे हैं। और हमें वो ताकत दे, कि हम इस आतंक के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ें, ताकि कोई और पहलगाम खून के आँसुओं में न डूबे।
और जो लोग ये कह रहे हैं कि पर्यटकों को आतंकियों ने मारा , वो जान लें वो पर्यटक नहीं थे , वो हिंदू थे इसलिए उनको निशाना बनाया गया।
आप सब से अपील है, इन पीड़ितों के लिए दुआ करें। उनके दर्द को महसूस करें। और इस नफ़रत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ। क्योंकि अगर आज हम चुप रहे, तो कल शायद हमारी बारी हो। क्योंकि हम हिंदू हैं ।