13/10/2025
वीरभद्र सिंह सिर्फ एक नेता नहीं, हिमाचल प्रदेश की आत्मा थे। वे जन्म से राजा थे, लेकिन उनका असली राज था लोगों के दिलों पर। उनकी गर्मजोशी, सादगी और हर किसी से जुड़ाव आज भी हर गांव, हर घाटी में जीवित है। किन्नौर से काजा तक, स्कूल से पंचायत तक, वे हर जगह अपने लोगों के साथ दिखे; हर बुजुर्ग और बच्चे की आँखों में उनका अपनापन झलकता था।
रामपुर के पदम पैलेस में उनका चतुर्वार्षिक श्राद्ध जब हुआ, तो राज्य के कोने-कोने से लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। कई बुजुर्ग महिलाएं, जिनकी बस्तियाँ कभी वीरभद्र सिंह की पहल से सड़क से जुड़ी थीं, उनके बारे में भावुक होकर कहती हैं—आज ऐसा नेता प्रदेश में कम मिलता है, जो बिना दिखावे के रात-दिन लोगों की समस्याएं सुनने गाँव-गाँव जाता था।
उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह ने भावुक शब्दों में कहा, “बाबा सिर्फ मेरे पिता नहीं, हिमाचल की आत्मा थे। उनकी विरासत हर स्कूल, हर सड़क और हर दिल में ज़िंदा है। उन्होंने हिमाचल के लिए सिर्फ योजनाएं नहीं बनाईं—उन्होंने हमारी उम्मीदों को पंख दिए।”
राजनीति में होते हुए भी, वीरभद्र सिंह का व्यवहार एक परिवार के सदस्य जैसा था। वे अक्सर गांवों में बिना घोषणा के पहुँच जाते, चाय पर बैठकर परिवारों की बातें सुनते, बच्चों के बीच बैठ हँसी-मजाक करते। उनका वही अपनापन है जो लोगों को आज भी उनकी याद में भावुक कर जाता है।
राजनीतिक विरोधी भी उन्हें आदर की नज़र से देखते थे। एक वरिष्ठ नेता ने खुद कहा, “हम उनसे हमेशा सहमत नहीं रहे, लेकिन उन्हें नज़रअंदाज कभी नहीं कर सके।” उनकी सरलता, गरिमा और जन-सेवा का भाव, बदलते समय में मूल्य और सिद्धांतों की मिसाल बन गया है।
आज वीरभद्र सिंह भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हर गाँव की सड़क, हर स्कूल की घंटी, और हर हिमाचली की मुस्कान में उनकी एक उजली छाया हमेशा बनी रहेगी—एक ऐसे राजा की छाया जो वाकई लोगों का था।
जय श्री राम 🚩🚩🚩