03/12/2025
जब भूमिहार भाइयों ने इंसानियत को ही दुल्हन बना दिया”
"कहा बारात आयेगी परन्तु शोर मत करना"
29 नवंबर की रात…की कहानी Asif Khan जी की जुबानी
तरया सुजान का हमारा पठानी टोला ग़म में डूबा था।
मेरे गांव के ही एक शख़्स, मेराज खान, अचानक बीमारी से चल बसे।
घर के बाहर सन्नाटा था… पर दिलों के भीतर तूफ़ान।
हर आंख नम थी, माहौल भारी था।
इसी ग़म के बीच, हमारे पड़ोसी टोले—तरया पश्चिम (भूमिहार टोला)—में अमर मिश्रा जी की बेटी की शादी थी।
घर रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रहा था।
महुला–महुला रिश्तेदारों की भीड़, गीत, हंसी और हजारों उम्मीदें…
लेकिन किस्मत ने दो बिल्कुल उलटे रंग एक ही दिन सामने रख दिए—
एक तरफ मातम, दूसरी तरफ शादी का जश्न।
और यहीं से उस रात की सबसे खूबसूरत कहानी शुरू होती है…
एक ऐसी कहानी, जिसने मुझे इंसानियत पर और भी यकीन दिला दिया।
“शोर मत करना, हमारे भाई के घर में ग़म है” — भूमिहार भाइयों का निर्णय
जैसे ही हिन्दू भाइयों को खबर मिली कि मेराज भाई का इंतक़ाल हुआ है,
एक आवाज़ उठी—
“बारात इसी रास्ते से आएगी… शोर-गुल से घरवालों को तकलीफ़ होगी। चलो, खुशी मनाते हैं… पर इंसानियत के दायरे में।”
और उस आवाज़ को किसी ने नहीं रोका।
हर किसी ने दिल से सुना।
घर से करीब 1 किलोमीटर पहले ही पटाखे बंद कर दिए गए।
डीजे की आवाज़ थम गई।
बाराती धीरे-धीरे, सिर झुकाए, पूरी इज्जत और खामोशी के साथ हमारे टोले से गुज़रे।
मैंने अपनी आंखों से देखा —
खुशी चलते-चलते रुक गई और इंसानियत आगे बढ़ गई।
“टिकाना बदल दो… नहीं तो दुखियों को चुभेगा” — एक और मिसाल
असल में बारात का टिकाना भी हमारे टोले में और मेराज खान के घर पास था।
इससे रात में शोर हो सकता था, जो परिवार को परेशान कर देता।
भूमिहार भाइयों ने यह बात सुनी… और बिना एक मिनट सोचे कहा—
“नहीं! बारात 2 किलोमीटर दूर तरया बाजार में टिकेगी। अगर किसी का दिल दुखे, तो ऐसी खुशी का क्या मतलब!”
और वो तुरंत 2 किलोमीटर दूर तरया बाजार चले गए।
किसी ने बहाना नहीं बनाया।
किसी ने नाराज़गी नहीं दिखाई।
उस पल मैंने महसूस किया—
आज के जमाने में भी ऐसा दिल रखने वाले लोग मौजूद हैं।
“हम हमेशा भाई थे… और आज और भी करीब हो गए”
पठानी टोला और तरया पश्चिम हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं।
लेकिन 29 नवंबर की रात ने इस रिश्ते पर और भी सुर्ख चादर चढ़ा दी।
लोग कह रहे थे—
“आज के नफ़रत वाले दौर में ऐसे लोग होना, किसी वरदान से कम नहीं।”
और मैं भी यही कहना चाहता हूँ…
भूमिहार भाइयों ने सिर्फ एक बारात नहीं रोकी,
सिर्फ पटाखे नहीं बंद किए,
सिर्फ टिकाना नहीं बदला…
उन्होंने इंसानियत को जिंदा रखा।
उन्होंने मोहब्बत को सबसे ऊपर रखा।
उन्होंने हमारे दिल जीत लिए।
उस रात मुझे समझ आया कि रिश्ते खून से नहीं,
दिलों से बनते हैं।
और मेरे गांव के भूमिहार भाइयों के दिल…
वाकई बहुत बड़े हैं।
धन्यवाद
दिल की कलम से
आसिफ खान
तरया पठानी टोला का एक वासी.