Furkan S Khan Feels

Furkan S Khan Feels शायरी से प्यार है तो फॉलो करें।

26/07/2025

रोशनी ने चाँद से पूछा तो हया आ गई,
रात की रूह में इक नई अदा आ गई।

वफ़ा के किस्से लिखे थे रेत पर मैंने,
तेरे आने की खबर थी तो हवा आ गई।

हिज्र की राह में ठहरी थी मेरी साँसें,
तेरा नाम लिया तो नई सदा आ गई।

मौत से डर के जो जीते थे सदीयों तक,
फुरक़ान को हँसते देखा तो दुआ आ गई।

हमने तन्हाई से बातें कीं मगर क्या कहें,
तेरी यादों में भी शायरी खुद-ब-खुद आ गई।

— Furkan S Khan Feels

26/07/2025

उसके के शहर में कुछ बातें अजीब थीं,
सन्नाटे में भी आवाज़ें करीब थीं।

गुज़रे दिनों की महक से गलियाँ महक उठीं,
जैसे पुराने ख़तों में छुपी तरकीब थीं।

वक़्त ने कितने चेहरे बदल दिए एक पल में,
हम सोचते रहे, शायद वही तदबीर थीं।

रात की ओट में चुपके से बातें हुईं,
ख़्वाहिशें भी जैसे दिल की रक़ीब थीं।

फ़ुरक़ान ने जब लफ़्ज़ों को सजाना शुरू किया,
महफ़िल में ग़ज़लें नहीं, कहानियाँ नसीब थीं।

— Furkan S Khan Feels

26/07/2025

हवा में अब भी तेरी ख़ुशबू टहलती है,
तेरे बिना भी ये दुनिया सँभलती है।

वफ़ाओं की क़ीमत यहाँ कौन जाने,
यहाँ तो याद भी किस्मत से मिलती है।

हिज्र में बीती हर एक रात ने सिखाया,
कि रूह दर्द में कैसे मचलती है।

मौत आई तो अहसास हुआ एक लम्हे को,
ज़िंदगी भी किसी ख्वाब सी निकलती है।

हमने अश्कों से सजाई है ये महफ़िल,
तभी तो ग़ज़ल भी दिल से निकलती है।

— Furkan S Khan Feels

26/07/2025

वक़्त के आईने में चेहरा बदलता देखा,
हर घड़ी को किसी ख़्वाब सा ढलता देखा।

वफ़ा की राह पे चलते रहे उम्र भर,
मगर हर मोड़ पे वादा भी टलता देखा।

हिज्र की रात ने नींद छीन ली आँखों से,
सवेरा आया तो दिल और भी जलता देखा।

मौत की आहट पे सन्नाटा उतर आया,
ज़िंदगी को चुपके से फिसलता देखा।

हमने तन्हाई से बातें कीं बहुत रातों तक,
और हर लफ़्ज़ में अपना ही हल चलता देखा।

— Furkan S Khan Feels

24/07/2025

"हिज्र की रात"

हिज्र की रात थी, चाँद भी बेहाल था,
दिल मेरे पास था, जिस्म कहीं और था।

नींद की राह में तेरा ही ख़्वाब था,
जैसे हर एक लम्हा तुझसे सवाल था।

तेरी यादें सहर तक जलाती रहीं,
मैं बुझा भी नहीं, और मैं राख भी था।

तेरे क़दमों की आहट न आई कभी,
घर तो अब भी वही है मगर ख़ामोश था।

हम जो बिछड़े तो यूँ टूटी हर इक चीज़,
आईना तक भी अब मुझसे ख़फ़ा था।

— Furkan S Khan Feels

24/07/2025

"वक़्त के साथ..."

वक़्त के साथ सब कुछ बदलता गया,
जो मेरा था, वो भी फिसलता गया।

वफ़ा के लिये दिल तरसता रहा,
और वो बेवफ़ाई में ढलता गया।

हिज्र की रातें तवील थीं बहुत,
चाँद भी पर्दे में छुपता गया।

मौत जब आई तो हँस कर मिली,
ज़िंदगी का बोझ हल्का हुआ।

किससे कहें हम दर्द-ए-दिल अपना,
हर कोई बस वक़्त पर टलता गया।

— Furkan S Khan Feels

24/07/2025

"ख़ुद से एक बात हुई थी"

ख़ुद से एक बात हुई थी रात के सन्नाटे में,
तेरा ज़िक्र आ गया था दर्द की आवाज़ में।

चाँद भी ख़ामोश था, तारों की महफ़िल बुझ गई,
क्या मिला है तुझको मुझसे दूरी के अंदाज़ में?

आईने से कह दिया, अब तुझे देखा न जाए,
अपना ही अक्स दुश्मन लगे इन अल्फ़ाज़ में।

लोग तो दुनिया निभाते हैं फ़क़त चेहरों से,
हमने ढूँढा तुझको हर इक दिल के अंदाज़ में।

तेरी ख़ुशबू आज भी आती है सजदों के बाद,
जैसे तू शामिल हो हर एक नमाज़ में।

— Furkan S Khan

15/07/2025

ख़यालों में हम तेरे उम्र भर चल दिए थे,
न जाने कहाँ तक ये पाँव थक गए थे।

वो मौसम, वो बादल, वो पहली सी बारिश,
तेरे साथ लम्हे भी कैसे सज गए थे।

न कोई शिकायत, न शिकवा रहा अब,
हम तन्हा बहुत अपने दिल से कह गए थे।

कभी फूल थे हम भी बाग़-ए-वफ़ा में,
तेरे रूठ जाने से कांटे बन गए थे।

ये किस मोड़ पर आज लाई है क़िस्मत,
जहाँ हम कभी साथ चलते गए थे।

— Furkan S Khan

15/07/2025

वो शख़्स क्या गया जो दिल उजाड़ कर गया,
हर एक ख़ुशी से जैसे इनकार कर गया।

हमने तो चाँद माँगा था रात की रौशनी,
वो तीर बनके आया था, पार कर गया।

सजदे में हर दुआ उसी नाम की रही,
वो था कि भूल कर भी न इकरार कर गया।

दिल की ज़ुबाँ से कोई वाक़िफ़ न हो सका,
हर बात को वो तो बस ख़ुदार कर गया।

हमने वफ़ा का फूल सजाया था देर तक,
वो आके साँस-साँस को ख़ार कर गया।

— Furkan S Khan

15/07/2025

हर एक मोड़ पर तुझसे मुलाक़ातें नहीं हैं,
मगर ये सच है के तुझ जैसी ज़ातें नहीं हैं।

उदासी ओढ़ के चलती हैं दिल की गलियाँ,
तेरे बिना इन में अब वो चमक बाकी नहीं हैं।

वो जिनसे चाँद भी शरमा के छुप गया था कभी,
तेरी हँसी सी कहीं और सौग़ातें नहीं हैं।

जो वक़्त साथ बिताया था इक ख़याल बना,
अब उस तरह की कोई और जज़्बातें नहीं हैं।

हम अपने दिल को समझा के थक से जाते हैं,
मगर तेरी याद से बचने की राहातें नहीं हैं।

— Furkan S Khan

15/07/2025

हर सांस में बसी है तेरे नाम की चुप,
लब सिल गए हैं अब तो पैग़ाम की चुप।

रातें गुज़रती हैं तेरे ख़्वाब के सहारे,
चाँद भी सुनता है इस अरमान की चुप।

हमने तो दिल दिया था बेझिझक तुझको,
मिल गई हमें ज़माने से इल्ज़ाम की चुप।

काग़ज़ों पर बिखरे हैं तेरे यादों के फूल,
हर शेर में छुपी है इक मुक़ाम की चुप।

तू लौट आएगा ये यक़ीन अब भी है,
इसी उम्मीद में जीती है इस जाम की चुप।

— Furkan S Khan

14/07/2025

"हम भी अब खुद को समझने लगे हैं"

हम भी अब खुद को समझने लगे हैं,
तेरे बिन जीने का हुनर बनने लगे हैं।

जो कभी तुझसे शिकायत भी न करते थे,
अब उसी दर्द को गीत कहने लगे हैं।

तेरी बेनज़री अब ग़म नहीं देती,
हम भी हालात से लड़ने लगे हैं।

मोहब्बत की किताब बंद कर दी है हमने,
अब तजुर्बे दिल पर लिखने लगे हैं।

तेरे बिना जो अधूरा सा था ये वजूद,
अब उसी अधूरेपन को अपनाने लगे हैं।

— Furkan S Khan

Address

Yasmeen
Riyadh

Telephone

+966509422932

Website

https://www.fakharpur.com/

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Furkan S Khan Feels posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share