15/08/2025                                                                            
                                    
                                                                            
                                            इससे शर्मनाक घटिया और क्या हो सकता है। लानत है ऐसे सत्ताधीशों पर                                        
                                    
                                                                        
                                        वीआईपी सुरक्षा बनाम आम नागरिक की जान:  #जोधपुर हादसे पर एक चिंतन
  अगस्त की सुबह, जब पूरा जोधपुर तिरंगे के रंग में डूबा था, जब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा राष्ट्रीय पर्व के मुख्य समारोह में ध्वजारोहण कर रहे थे, वायुसेना पुष्पवर्षा कर रही थी, और हज़ारों लोग राष्ट्रीय गीत की गूंज में डूबे हुए थे—उसी समय, उसी शहर की एक सड़क पर आम नागरिक की जिंदगी वीआईपी संस्कृति की बलि चढ़ रही थी।
स्वतंत्रता दिवस के परेड में भाग लेने जा रहे चार स्टूडेंट्स को एक डंपर ने कुचल दिया। दुर्घटना के बाद घायल छात्र एंबुलेंस में तड़पते रहे, लेकिन वीआईपी मूवमेंट के चलते ट्रैफिक को वन-वे कर दिया गया था। एंबुलेंस जाम में फंस गई, कोई रास्ता नहीं मिला। एक छात्रा सड़क किनारे रोती रही, पुलिस से रास्ता देने की गुहार लगाती रही, लेकिन सुरक्षा घेरे में बंद वीआईपी रास्ता आम लोगों के लिए बंद था।
और वहीं, एंबुलेंस में लोकेंद्र ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। दूसरा छात्र महावीर अस्पताल में जीवन और मृत्यु की जंग लड़ रहा है।
क्या यही है आज़ादी का जश्न? क्या किसी मुख्यमंत्री, मंत्री या वीआईपी की सुरक्षा आम नागरिक की जान से ज़्यादा अहम है?
यह घटना न केवल प्रशासनिक असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करती है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं? आज़ादी का मतलब अगर आम नागरिक की आवाज़ और जान सुरक्षित नहीं, तो फिर यह किसकी आज़ादी है?