10/14/2021
06 मई, 2009 को श्रीनगर की सीट पर मतदान होना है। राजनीतिक गतिविधियां तेज थीं। जबकि हम झेलम के गुलमोहर हाउस-बोट पर रात काटते और दिन में शहर का चक्कर लगाते थे। इस चुनाव में फारूख़ अब्दुल्ला के सामने उनकी ही बहन थी। यह चुनाव दिखावा अधिक था।
खैर, ऐसे ही सियासी वातावरण में पहली बार कश्मीर को देखना हुआ। बीते 10-11 सालों में कई बार कश्मीर जाना हुआ। और यही अनुभव आया कि कश्मीर इतनी भी खुली किताब नहीं है कि कोई उसे पढ़ ले। हां, दो बात जरूर समझ में आई। पहली यह कि ठंड में जाएंगे तो यात्रा सस्ती जरूर हो जाएगी। दूसरी यह कि कश्मीर का खुद से परिचय होना अभी बाकी है।
बहरहाल, यह तस्वीर अपने ही कैमरे की है।