06/07/2025
भीड़ का सच: जब जुनून बनता है खतरा – एक भारत, एक ज़िम्मेदारी
ये रिपोर्ट इंडिया में लार्ज पब्लिक गैदरिंग्स पर होने वाले स्टैम्पीड्स और क्राउड मिसमैनेजमेंट के क्रिटिकल इश्यू को एनालाइज़ करती है। इसमें रूट कॉज़ेज़, रीसेंट ट्रेजेडीज़, और सिटीजन्स और एडमिनिस्ट्रेटर्स दोनों के लिए एक्शनेबल सॉल्यूशंस डिस्कस किए जाएंगे।
1. इंट्रोडक्शन: आरसीबी से महाकुंभ तक – भीड़ का नया चेहरा
रीसेंट इंसिडेंट्स ने हम सबको एक सीरियस रियलिटी चेक दिया है। हमने देखा कि कैसे रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) की इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) टाइटल विन का जुनून, जो एक सेलिब्रेशन का मौका था, बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर एक ट्रेजेडी में बदल गया। इस हादसे में 11 लोगों की जान चली गई और 30 से ज़्यादा लोग इंजर्ड हुए । कर्नाटक के चीफ मिनिस्टर ने भी इस पर दुख जताया और कहा कि, "नो वन एक्सपेक्टेड दिस क्राउड" । एक खुशी का पल, एक अनएक्सपेक्टेड क्राउड की वजह से इतना बड़ा हादसा बन गया।
और ये कोई आइसोलेटेड इंसिडेंट नहीं है। पिछले साल, न्यू दिल्ली रेलवे स्टेशन पर महा कुंभ मेला के लिए आई भीड़ में भी एक हादसा हुआ था, जिसमें 18 लोगों की जान गई । इसके अलावा, जनवरी में महा कुंभ मेला में भी 30 लोग स्टैम्पीड में मरे थे । ये इंसिडेंट्स एक पैटर्न दिखाते हैं, जहाँ "अनएक्सपेक्टेड क्राउड" एक रिकरिंग चैलेंज बन चुका है। ऑफिशियल्स का बार-बार ये कहना कि "नो वन एक्सपेक्टेड दिस क्राउड" एक गहरा एडमिनिस्ट्रेटिव फ्लॉ रिवील करता है। यह इस बात की तरफ इशारा करता है कि हमारे प्लानिंग मॉडल्स और क्राउड एस्टिमेशन मेथड्स कहीं न कहीं आउटडेटेड या इनसफिशिएंट हैं। जब इतनी बड़ी पॉपुलेशन, चाहे वह महाकुंभ स्नान जैसा सीजनल फेस्टिवल हो या क्रिकेट मैच सेलिब्रेशन जैसा मैसिव इवेंट, "नो एस्टिमेट" नंबर्स में इकट्ठी होती है, तो हमारे सिस्टम्स कोलैप्स हो जाते हैं और स्टैम्पीड्स का रीज़न बनते हैं। यह एक वेक-अप कॉल है, एक अपील है हम सब से, कि इस प्रॉब्लम की रूट्स को समझें और मिलकर इससे ठीक करें। क्योंकि, एक सेफ भारत, हम सब की कलेक्टिव ज़िम्मेदारी है।
2. भारत की बड़ी तस्वीर: पॉपुलेशन और लैंडमास का इंपैक्ट
इंडिया, जो दुनिया के टोटल लैंडमास का सिर्फ 2.4% हिस्सा है , वह अब दुनिया का सबसे ज़्यादा पॉपुलेटेड कंट्री बन गया है। वर्ल्ड की 17% से ज़्यादा पॉपुलेशन, यानी लगभग 1.46 बिलियन लोग , हमारे देश में रहते हैं । इसका मतलब है कि इंडिया में पॉपुलेशन डेंसिटी ग्लोबल एवरेज से सिग्निफिकेंटली ज़्यादा है । जब इतनी बड़ी पॉपुलेशन एक साथ मूव करती है, चाहे वह महाकुंभ स्नान जैसा सीजनल फेस्टिवल हो या क्रिकेट मैच सेलिब्रेशन जैसा मैसिव इवेंट, तो लोगों की क्वांटिटी "नो एस्टिमेट" हो जाती है ।
एडमिनिस्ट्रेटर्स ऑफन फेल टू एंटीसिपेट दिस शीयर वॉल्यूम, लीडिंग टू सिचुएशंस जहाँ एक स्टेडियम की कैपेसिटी 35,000 लोगों की है, बट वहाँ 2-3 लाख (200,000-300,000) लोग बाहर इकट्ठे हो जाते हैं । यह मैसिव मिसमैच बिटवीन एक्सपेक्टेड एंड एक्चुअल क्राउड साइज़ ही प्रॉब्लम की शुरुआत है, जो सिस्टम कोलैप्स और स्टैम्पीड्स की वजह बनती है। इसमें एक बड़ा फैक्टर "फ्री पास" या "अनरेगुलेटेड एंट्री" मॉडल है। आरसीबी इवेंट में फ्री पासेस ऑनलाइन डिस्ट्रीब्यूट किए गए थे, लेकिन लास्ट-मिनट परेड अनाउंसमेंट्स और स्टेडियम पर फ्री पास डिस्ट्रीब्यूशन की वजह से, हज़ारों लोग "होपिंग टू गेट अ पास" वहाँ पहुँच गए । यह अप्रोच एक अनकंट्रोल्ड मैग्नेट की तरह काम करता है, जो "नो एस्टिमेट" क्राउड्स को वेन्यू की तरफ खींचता है, जो कैपेसिटी से कहीं ज़्यादा होती है। "फ्री" होने का फैक्टर, और इवेंट की हाई डिज़ायरेबिलिटी (जैसे आईपीएल विक्टरी सेलिब्रेशन या सेक्रेट रिलीजियस डिप) सेफ्टी गाइडलाइंस को ओवरराइड कर देती है। लोग फ्री एक्सेस या पार्टिसिपेशन के मौके को सेफ्टी से ज़्यादा इम्पोर्टेंट समझते हैं। यह एक एडमिनिस्ट्रेटिव फेलियर है जहाँ ऑफिशियल्स इंडियन क्राउड्स की साइकोलॉजी को समझने में फेल हो जाते हैं। इससे यह पता चलता है कि ऐसे इवेंट्स को मैनेज करने के तरीके में एक फंडामेंटल शिफ्ट की ज़रूरत है। इवन इफ एन इवेंट इज़ फ्री, एक कंट्रोल्ड, टोकन-बेस्ड, या प्री-रजिस्टर्ड एंट्री सिस्टम बहुत ज़रूरी है ताकि क्राउड नंबर्स को एक्यूरेटली एस्टिमेट और मैनेज किया जा सके, और डेंजरस कंडीशंस को रोका जा सके।
3. सिस्टम कोलैप्स और हादसे: क्यों होती हैं ये ट्रेजेडीज़?
इंडिया में स्टैम्पीड्स और क्राउड-रिलेटेड ट्रेजेडीज़ के पीछे कई रीज़न्स हैं, जो अक्सर एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इनमें से कुछ मेजर फैक्टर्स का डिटेल्ड एनालिसिस यहाँ दिया गया है:
पुअर क्राउड मैनेजमेंट & लैक ऑफ़ कोऑर्डिनेशन: यह सबसे बड़ा कल्प्रिट है। अथॉरिटीज अक्सर क्राउड साइज़ को एंटीसिपेट करने में फेल हो जाते हैं , जिससे अनकंट्रोल्ड मूवमेंट होता है । सिक्योरिटी पर्सनल, इवेंट ऑर्गेनाइज़र्स, और लोकल अथॉरिटीज के बीच रिस्पॉन्सिबिलिटीज क्लियर नहीं होती । महाकुंभ 2025 की केस स्टडी ने एक्सप्लिसिटली हाईलाइट किया कि "पुअर कोऑर्डिनेशन एंड एग्जीक्यूशन" ही मिसमैनेजमेंट का मेजर फैक्टर था । जब क्राउड डेंसिटी 4 पर्सन्स पर स्क्वायर मीटर से ज़्यादा हो जाती है, तो कोऑपरेटिव बिहेवियर ब्रेकडाउन हो जाता है, और लोग सेल्फ-प्रिजर्वेशन पर फोकस करते हैं, जिससे सिचुएशन और खराब हो जाती है ।
इनएडिक्वेट इंफ्रास्ट्रक्चर: इंडिया में कई वेन्यूज़, एस्पेशली एंशिएंट रिलीजियस साइट्स, मैसिव क्राउड्स को हैंडल करने के लिए इल-इक्विप्ड हैं। यहाँ नैरो पाथवेज़, लिमिटेड एग्ज़िट्स , और पुअरली बिल्ट टेंपरेरी स्ट्रक्चर्स होती हैं। बेंगलुरु स्टेडियम, जिसकी कैपेसिटी 35,000 लोगों की थी, 2-3 लाख लोगों को हैंडल नहीं कर पाया, और उसके नैरो गेट्स की वजह से लोग उन्हें तोड़ने लगे ।
पैनिक & ह्यूमन बिहेवियर: अफवाहों और मिसइन्फॉर्मेशन, जैसे फाल्स बॉम्ब थ्रेट, से सडन पैनिक फैल सकता है । अनरूली बिहेवियर, पुशिंग, और शविंग से रेस्ट्रिक्टेड एरियाज़ में घुसने की कोशिश करने से डेंजरस बॉटलनेक्स क्रिएट होते हैं ।
इनसफिशिएंट सिक्योरिटी & इमरजेंसी रिस्पॉन्स: अक्सर सिक्योरिटी स्टाफ की अंडर-डिप्लॉयमेंट होती है, और कई पर्सनल क्राउड कंट्रोल टेक्निक्स में अनट्रेन्ड होते हैं । पुअर सर्विलांस सिस्टम्स , इनएडिक्वेट इमरजेंसी एग्ज़िट्स , और स्लो, अनकोऑर्डिनेटेड रेस्क्यू ऑपरेशंस कॉमन हैं, जैसे महाकुंभ 2025 में देखा गया जहाँ इमरजेंसी टीम्स स्लो और अनकोऑर्डिनेटेड थी ।
वीआईपी कल्चर & प्रायोरिटाइजेशन: स्पेशल वीआईपी अरेंजमेंट्स अक्सर जनरल क्राउड फ्लो को डिसरप्ट करते हैं, क्रिटिकल सिक्योरिटी पर्सनल को डाइवर्ट करते हैं, और कॉमन पिलग्रिम्स को बेसिक सर्विसेज़ के लिए स्ट्रगल करने पर मजबूर करते हैं । महाकुंभ 2025 में यह एक मेजर इश्यू था, जहाँ मेडिकल फैसिलिटीज और ट्रांसपोर्ट "वीआईपीज़ के लिए रिज़र्व्ड थे, लीविंग कॉमनर्स हेल्पलेस" । यह सिर्फ प्रिविलेज का इश्यू नहीं है, बल्कि क्राउड मैनेजमेंट फेलियर्स में एक डायरेक्ट और सिग्निफिकेंट कंट्रीब्यूटर है। वीआईपी मूवमेंट को प्रायोरिटाइज करने से जनरल पब्लिक के लिए बॉटलनेक्स और डिलेज़ क्रिएट होते हैं, जो सेफ क्राउड फ्लो को डायरेक्टली इंपीड करते हैं और कंजेशन बढ़ाते हैं। और इससे भी ज़्यादा क्रिटिकल बात यह है कि यह एसेंशियल सिक्योरिटी, मेडिकल, और लॉजिस्टिकल रिसोर्सेज को वहाँ से डाइवर्ट करता है जहाँ उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है – यानी कॉमन सिटीजन्स को मैनेज करने के लिए। इससे क्राउड का सबसे वल्नरेबल सेगमेंट एक्सपोज़्ड और अनसपोर्टेड रह जाता है। जब सिटीजन्स ऐसी अनइक्वल ट्रीटमेंट और एलीट के फेवर में अपनी सेफ्टी की डिसरिगार्ड देखते हैं, तो कोऑपरेटिव क्राउड बिहेवियर कम हो जाता है और एडमिनिस्ट्रेटिव डायरेक्टिव्स को फॉलो करने की विलिंगनेस भी। इसलिए, वीआईपी कल्चर को एड्रेस करना सिर्फ फेयरनेस के लिए नहीं, बल्कि पब्लिक सेफ्टी और कलेक्टिव रिस्पॉन्सिबिलिटी को फॉस्टर करने के लिए भी ज़रूरी है।
केस स्टडीज़: द ह्यूमन कॉस्ट
आरसीबी सेलिब्रेशन स्टैम्पीड (जून 2025): बेंगलुरु में एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर 11 लोगों की मौत हुई और 33 इंजर्ड हुए । स्टेडियम की 35,000 की कैपेसिटी के लिए 2-3 लाख लोगों की भीड़ "अनकंट्रोलेबल" हो गई । फ्री पासेस और लास्ट-मिनट परेड अनाउंसमेंट्स को लेकर कन्फ्यूजन ने एक मैसिव सर्ज क्रिएट किया, जिसमें लोग गेट्स तोड़ने और बैरियर्स क्लाइम्ब करने की कोशिश कर रहे थे । पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा, और उन्होंने एडमिट किया कि क्राउड "बियॉन्ड आवर कंट्रोल" थी ।
महा कुंभ मेला 2025 मिसमैनेजमेंट: ₹7,500 करोड़ के बजट के बावजूद, यह इवेंट इंडिया के "वर्स्ट-मैनेज्ड रिलीजियस फेयर्स" में से एक बन गया, जिसमें 663 मिलियन पिलग्रिम्स आए थे । यह इवेंट सीवियर इंफ्रास्ट्रक्चर फेलियर्स (रोड्स, सैनिटेशन, टेंपरेरी शेल्टर्स की कमी), क्रिटिकल क्राउड कंट्रोल इश्यूज (अनरेगुलेटेड फ्लो, बैरिकेड्स की कमी, वीआईपी फोकस की वजह से सिक्योरिटी फेलियर), ट्रैफिक कोलैप्स (ओवरवेल्म्ड रेलवे स्टेशंस, हाईवेज), और पब्लिक हेल्थ क्राइसिस (ओपन डेफिकेशन, कॉन्टैमिनेटेड वॉटर, डिजीज आउटब्रेक्स, ओवरवेल्म्ड मेडिकल फैसिलिटीज) से प्लेग्ड था । इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुई स्टैम्पीड, जिसमें 36 लोगों की मौत हुई, ने लास्ट-माइल कनेक्टिविटी और क्राउड डिस्पर्सल स्ट्रैटेजीज़ में गैप्स हाईलाइट किए ।
न्यू दिल्ली रेलवे स्टेशन स्टैम्पीड (फरवरी 2025): इस हादसे में 18 लोग मरे और एक डज़न से ज़्यादा इंजर्ड हुए । यह इंसिडेंट महाकुंभ के लिए आई मैसिव रश से डायरेक्टली लिंक्ड था, जो ट्रांसपोर्ट हब्स पर लार्ज, अनमैनेज्ड क्राउड्स के इकट्ठे होने पर इनएडिक्वेट प्लानिंग और कंट्रोल की वजह से होने वाले सीवियर चैलेंजेस का एक और एग्जांपल है ।
इन स्टैम्पीड्स का ब्रॉडर सोसाइटल इंपैक्ट भी गहरा होता है। इमीडिएट कैज़ुअल्टीज़ (जो अक्सर ट्रॉमेटिक एस्फिक्सिया, ब्लंट फ़ोर्स इंजरीज़, हेड/नेक ट्रॉमा, या ड्राउनिंग से होती हैं ) के अलावा, इन हादसों से सिग्निफिकेंट इकोनॉमिक इंपैक्ट (कंपनसेशन पेआउट्स, बिज़नेस रेवेन्यू का लॉस ), हेल्थकेयर सर्विसेज़ पर सीवियर स्ट्रेन (हॉस्पिटल्स और एम्बुलेंस ओवरवेल्म्ड हो जाते हैं ), और गवर्नेंस और अथॉरिटीज में "लॉस ऑफ़ पब्लिक ट्रस्ट" होता है । जो पॉलिटिकल ब्लेम गेम अक्सर इन ट्रेजेडीज़ के बाद होता है, वह इस ट्रस्ट को और इरोड करता है ।
टेबल जैसे फॉर्मेट का डाटा हम यहाँ डिस्क्रिप्शन में नहीं डाल रहे, हमने आड्मिनिस्ट्रेशन के लिए कुछ solutions भी इस रिपोर्ट में बनाये हैं सभी रीसेंट हादसों और पुराने हादसों को तकरीबन 2000 से गौर से देखने के बाद। नेक्स्ट पोस्ट में मैं पूरी रिपोर्ट पेश करूंगा।