शून्य

शून्य शून्य, कुछ भी नहीं या कुछ नहीं होने की अवधारणा का प्रतीक

In Hindi zero is called "shunya" meaning a void, the supreme state of awareness where everything comes to nothingness...It is said that everything returns to zero or nothingness before being created a new. 🙏🕉️🔱🧘

पंचमकार तंत्र से सम्बन्धित शब्द है जिसका अर्थ 'म से आरम्भ होने वाली पाँच वस्तुएँ' है, ये पाँच वस्तुएँ तांत्रिक साधना में...
07/29/2025

पंचमकार तंत्र से सम्बन्धित शब्द है जिसका अर्थ 'म से आरम्भ होने वाली पाँच वस्तुएँ' है, ये पाँच वस्तुएँ तांत्रिक साधना में उपयोग में लायी जाती हैं-
मद्य
मांस
मत्स्य
मुद्रा
मैथुन
तंत्र क्रिया सदेव ही प्रकृति के नियमों के अनुरूप चलती है। यह पूरा संसार ही एक तांत्रिक क्रिया है। तांत्रिक क्रिया पञ्च मकार से मिल कर ही पूरी होती है। पञ्च मकार यानि तंत्र क्रिया के पाँच स्तम्भ। मॉस, मतस्य, मुद्रा, मदिरा और मैथुन तांत्रिक क्रिया के पञ्च मकार हैं। तथा बिना इन पञ्च मकार के सम्मिलन से श्रृष्टि में जीवन का सञ्चालन असंभव है। मॉस: इस श्रृष्टि में प्राणी का जनम ही मॉस के लोथडे के रूप में हुआ है। ऐसा कोई भी प्राणी नही है जो पञ्च मकर के प्रथम " म" मॉस से वंचित रह कर जीवन यापन कर सके। मॉस के रूप में ही मनुष्य एवं जीवों की अपने माँ के गर्भ से उत्पत्ति हुई है। हर प्राणी किसी न किसी प्रकार मॉस का उपयोग अपने दैनिक क्रिया में करता है। चाहे वह भोजन में मॉस का लेना हो या फ़िर किसी को छूना, देखना या महसूस करना सभी में मॉस की प्राथमिकता है। जब माँ के गर्भ में जीवन का विकास होता है तब उसका सबसे पहला वजूद मॉस के रूप में ही होता है। इस से सिद्ध होता है की जीवन की शुरुवात ही पञ्च मकार के प्रथम " म " से होती है।

मतस्य: मतस्य का शाब्दिक अर्थ मछली से होता है। परन्तु तंत्र क्रिया में अथवा पञ्च मकार में मतस्य का मतलब चंचलता या गति से होता है। जिस प्रकार मछली अपने जीवनपर्यंत गतिमान रहती है और पानी के विपरीत दिशा में तैरते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है उसी प्रकार तंत्र साधना के अनुसार बिना गति के कोई भी जीव इस संसार में रह नही सकता। पञ्च मकार के मॉस गुण के प्राणी में आने के बाद मतस्य गुण का होना एक मॉस को गति प्रदान करता है। पञ्च मकार के दुसरे मकार " मतस्य" से ही संसार में जीवो को हमेशा आगे बढ़ने की इक्षा मिलती हैं । मतस्य गुण ही व्यक्ति को नए कार्यो के प्रति प्रगतिशील बनता है।

मुद्रा: तंत्र में मुद्रा के दो रूप हैं। १> मुद्रा यानी किसी प्रकार की क्रिया जो व्यक्त की जा सके। जैसे योनी मुद्रा, लिंग मुद्रा, ज्ञान मुद्रा। २> मुद्रा का मतलब खाद्य पदार्थ से भी है। जैसे चावल के पिण्ड पञ्च मकार के मॉस, मतस्य गुण धारण करने के बाद जीव में सही मुद्रा (क्रिया) के ज्ञान का होना अति आवश्यक है। और सही क्रिया को करने के लिए सही मुद्रा ( खाद्द्य पदार्थ ) की भी आवश्यकता है। जब गर्भ में जीव गति प्राप्त कर लेता है तब वह अपने हाथ और पैर को अपने गर्दन के चारो और बाँध कर एक मुद्रा धारण करता है। जैसे ही वह अपनी माता द्वारा ग्रहण किया गया भोजन को अपना आहार बनाता है, उसके हाथ पैर में गति आ जाती है। यह पञ्च मकार के तीसरे " म " का श्रेष्ठ उदहारण है।

मदिरा : तंत्र में मदिरा का अर्थ "नशा" है। आम मनुष्य मदिरा पीने वाले नशे को ही तंत्र से जोड़ते हैं। परन्तु सही मायने में पञ्च मकार में मदिरा रुपी नशे को किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए होने वाली लगन को कहते हैं। इश्वर की भक्ति को प्राप्त करने का नशा ही तांत्रिक को कठिन से कठिन साधना पूरा करने के लिए प्रेरित करता है। जीव को आगे बढ़ने के लिए स्वयं में मदिरा गुण को लाना अति आवश्यक है। पञ्च मकार के यह चारों गुन जब साथ मिलते हैं तो वह जीव मॉस (शरीर ), मतस्य (गति),मुद्रा (क्रिया,आहार )और मदिरा (नशा) के आने के बाद अपने जीवन में कोई भी लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। जब बालक अपने माँ के गर्भ में बड़ा हो रहा होता है तो वह समय उसके लिए बहुत कष्टकारी होता है। माँ के द्वारा ग्रहण किया गया भोजन उसकी कोमल त्वचा को चोट पहुचाता है। गति आने के बाद और माँ से आहार मिलने के बाद वह जीव स्वयं को इस कष्ट से निकलने के लिए इश्वर से प्राथना करता है। उसके अन्दर मदिरा गुण का प्रवेश होते ही वह अपने कष्ट को दूर करने के लिए इश्वर की प्रार्थना में ली

मैथुन:मैथुन का अर्थ है "मथना " तंत्र में मैथुन का बहुत महत्त्व है। परन्तु इसे किस प्रकार अपने जीवन में अपनाना है वह जानना बहुत जरुरी है। अधिकतर लोगों को तंत्र के बारे में यह भ्रान्ति है की यहाँ तांत्रिक को मैथुन करने की छुट है। मैं यहाँ पञ्च मकार के इस पांचवे और बहुत ही महत्व्य्पूर्ण " म " के बारे में बताना चाहता हूँ। तंत्र में यह कहा गया है की इस संसार में पाई जाने वाली हर वस्तु को यदि सही प्रकार से मथा जाए तो एक नई वस्तु का जनम होता है। जिसका उदहारण हमारे शाश्त्रो में समुन्द्र मंथन से दिया गया है। समुन्द्र मंथन के समय सागर के मंथन से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की जनम हुआ था जिसमे विष और अमृत की उल्लेख प्रमुख्य है। गृहस्त जीवन में भी जब एक पुरूष अपनी स्त्री के साथ मैथुन करता है, अपने वीर्य को स्त्री के बीज के साथ मंथन करता है तो एक बालक के रूप में नए जीवन की निर्माण होता है। इसलिए मैथुन करने से तंत्र में कुछ नया निर्माण करने की बात कही गई है। जब एक तांत्रिक मैथुन करता है तब वह स्वयं अपने शरीर (ब्र्ह्म/ शिव ) तथा अपनी आत्मा ( शक्ति / शिवा) का मंथन करता है। तथा उस मंथन को सही ढंग से करने के उपरांत ही इश्वर को पाने के नए नए रास्तो की निर्माण करता है।
#शिव_पुराण

बिल्ववृक्ष🌺🙏🕉🔱1. बिल्व_वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते l2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका ...
07/25/2025

बिल्ववृक्ष🌺🙏🕉🔱
1. बिल्व_वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते l

2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है l

3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है l

4. चार, पांच, छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्र पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है l

5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है एवं बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।

6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है।

7. बेल वृक्ष को सींचने से पित्र तृप्त होते है।

8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।

10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिव लिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी जीव सभी पापों से मुक्त हो जाते है l

11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।
कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । बिल्व पत्र के लिए पेड़ को क्षति न पहुचाएं l

#शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात l

#शिव_पुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से मिलता है क्या फल -

किसी भी देवी-देवता का पूजन करते समय उनको अनेक चीज़ें अर्पित की जाती है। प्रायः भगवान को अर्पित की जाने वाली हर चीज़ का फल अलग होता है। शिव पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है की भगवान शिव को अर्पित करने वाली अलग-अलग चीज़ों का क्या फल होता है। शिवपुराण के अनुसार जानिए कौन सा अनाज भगवान शिव को चढ़ाने से क्या फल मिलता है:

1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।

2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।

3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।

4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में वितरीत कर देना चाहिए।

शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है -

1. ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।

2. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।

3. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।

4. सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।

5. शिवलिंग पर ईख (गन्ना) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।

6. शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

7. मधु (शहद) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा (टीबी) रोग में आराम मिलता है।

शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन का फूल चढ़ाया जाए तो उसका क्या फल मिलता है -

1. लाल व सफेद #आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2. #चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।

3. #अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

4. #शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

5. #बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।

6. जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

7. #कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।

8. #हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

9. #धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर
सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।

10. #लाल_डंठलवाला_धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।

11. #दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।

ध्यान की कला भी चोरी जैसी है।🌺🔱📿🕉🙏झेन कथा है, एक बहुत बड़ा चोर था। जब वह बूढ़ा हुआ तो उसके बेटे ने कहा कि अब मुझे भी अपनी ...
07/12/2025

ध्यान की कला भी चोरी जैसी है।🌺🔱📿🕉🙏

झेन कथा है, एक बहुत बड़ा चोर था। जब वह बूढ़ा हुआ तो उसके बेटे ने कहा कि अब मुझे भी अपनी कला सिखा दें। क्योंकि अब क्या भरोसा?

वह चोर इतना बड़ा चोर था कि कभी पकड़ा नहीं गया। और सारी दुनिया जानती थी कि वह चोर है। उसकी खबर सम्राट तक को थी। सम्राट ने उसे एक बार बुला कर सम्मानित भी किया था कि तू अदभुत आदमी है। दुनिया जानती है, हम भी जानते हैं, कि तू चोर है। तूने कभी इसे छिपाया भी नहीं, लेकिन तू कभी पकड़ाया भी नहीं। तेरी कला अदभुत है।

तो बूढ़े बाप ने कहा कि यह कला तू जानना चाहता है, तो सिखा दूंगा। कल रात तू मेरे साथ चल। वह कल अपने लड़के को ले कर गया। उसने सेंध लगायी। लड़का खड़ा देखता रहा।

वह इस तरह सेंध लगा रहा है, इतनी तन्मयता से, कि कोई चित्रकार जैसे चित्र बनाता हो, कि कोई मूर्तिकार मूर्ति बनाता हो, कि कोई भक्त मंदिर में पूजा करता हो, ऐसी तन्मयता, ऐसा लीन। इससे कम में काम भी नहीं चलेगा। वह मास्टर थीफ था। वह कोई साधारण चोर नहीं था। सैकड़ों चोरों का गुरु था।

लड़का कंप रहा है खड़ा हुआ। रात ठंडी नहीं है, लेकिन कंपकंपी छूट रही है। उसकी रीढ़ में बार-बार घबड़ाहट पकड़ रही है। वह चारों तरफ चौंक-चौंक कर देखता है। लेकिन बाप अपने काम में लीन है। उसने एक बार भी आंख उठा कर यहां-वहां नहीं देखा। चोरी की सेंध तैयार हो गयी, बाप बेटे को ले कर अंदर गया। बेटे के तो हाथ-पैर कंप रहे हैं। जिंदगी में ऐसी घबड़ाहट उसने कभी नहीं जानी। और बाप ऐसे चल रहा है, जैसे अपना घर हो। वह बेटे को अंदर ले गया, उसने दरवाजे के ताले तोड़े। फिर एक बहुत बड़ी अलमारी में, वस्त्रों की अलमारी में, उसका ताला खोला और बेटे को कहा कि तू अंदर जा। बेटा अलमारी में अंदर गया। बहुमूल्य वस्त्र हैं, हीरे-जवाहरात जड़े वस्त्र हैं।

और जैसे ही वह अंदर गया, बाप ने ताला लगा कर चाबी अपने खीसे में डाली। लड़का अंदर! चाबी खीसे में डाली, बाहर गया, दीवाल के पास जा कर जोर से शोरगुल मचाया, चोर! चोर! और सेंध से निकल कर अपने घर चला गया।

सारा घर जाग गया, पड़ोसी जाग गए। लड़के ने तो अपना सिर पीट लिया अंदर कि यह क्या सिखाना हुआ? मारे गए! कोई उपाय भी नहीं छोड़ गया बाप निकलने का। चाबी भी साथ ले गया। ताला भी लगा गया। घर भर में लोग घूम रहे हैं। सेंध लग गयी है और लोग देख रहे हैं, पैर के चिह्न हैं। नौकरानी उस जगह तक आयी जहां अलमारी में चोर बंद है।

उसे कुछ नहीं सूझ रहा, क्या करें। बुद्धि काम नहीं देती। बुद्धि तो वहीं काम देती है अगर जाना-माना हो, किया हुआ हो। बुद्धि तो हमेशा बासी है। ताजे से बुद्धि का कोई संबंध नहीं। यह घटना ऐसी है, इतनी नयी है, कि न तो कभी की, न कभी सुनी, न कभी पढ़ी, न कभी किसी चोर ने पहले कभी की है कि शास्त्रों में उल्लेख हो। कुछ सूझ नहीं रहा। बुद्धि बिलकुल बेकाम हो गयी। जहां बुद्धि बेकाम हो जाती है, वहां भीतर की अंतस-चेतना जागती है।

अचानक जैसे किसी ऊर्जा ने उसे पकड़ लिया। और उसने इस तरह आवाज की जैसे चूहा कपड़े को कुतरता हो। यह उसने कभी की भी नहीं थी जिंदगी में, वह खुद भी हैरान हुआ अपने पर। नौकरानी चाबियां खोज कर लायी, उसने दरवाजा खोला, और दीया ले कर उसने भीतर झांका कि चूहा है शायद!

जैसे उसने दीया ले कर झांका, उसने दीए को फूंक मार कर बुझाया, धक्का दे कर भागा। सेंध से निकला। दस-बीस आदमी उसके पीछे हो लिए। बड़ा शोरगुल मच गया। सारा पड़ोस जग गया। वह जान छोड़ कर भागा। ऐसा वह कभी भागा नहीं था। उसे यह समझ में नहीं आया कि भागने वाला मैं हूं। जैसे कोई और ही भाग रहा है। एक कुएं के पास पहुंचा, एक चट्टान को उठा कर उसने कुएं में पटका। उसे यह भी पता नहीं कि यह मैं कर रहा हूं। जैसे कोई और करवा रहा है। चट्टान कुएं में गिरी, सारी भीड़ कुएं के पास इकट्ठी हो गयी। समझा कि चोर कुएं में कूद गया।

वह झाड़ के पीछे खड़े हो कर सुस्ताया। फिर घर गया। दरवाजे पर दस्तक दी। उसने कहा, आज इस बाप को ठीक करना ही पड़ेगा। यह सिखाना हुआ? अंदर गया। बाप कंबल ओढ़े आराम से सो रहा है। उसने कंबल खींचा और कहा कि क्या कर रहे हो? वह तो घुर्राटे ले रहा था। उसने जगाया। उसने कहा कि यह क्या है? मुझे मार डालना चाहते हैं? बाप ने कहा, तू आ गया, बाकी कहानी सुबह सुन लेंगे। मगर तू सीख गया। अब सिखाने की कोई जरूरत नहीं। बेटे ने कहा, कुछ तो कहो। कुछ तो पूछो मेरा हाल। क्योंकि मैं सो न पाऊंगा। तो बेटे ने सब हाल बताया कि ऐसा-ऐसा हुआ।

बाप ने कहा, बस! तुझे कला आ गयी। तुझे आ गयी कला, यह सिखायी नहीं जा सकती। लेकिन तू आखिर मेरा ही बेटा है। मेरा खून तेरे शरीर में दौड़ता है। बस, हो गया। तुझे राज मिल गया। क्योंकि चोर अगर बुद्धि से चले तो फंसेगा। वहां तो बुद्धि छोड़ देनी पड़ती है। क्योंकि हर घड़ी नयी है। हर बार नए लोगों की चोरी है। हर मकान नए ढंग का है। पुराना अनुभव कुछ काम नहीं आता। वहां तो बुद्धि से चले कि उपद्रव में पड़ जाओगे। वहां तो अंतस-चेतना से चलना पड़ता है।

झेन फकीर इस कहानी का उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं, ध्यान की कला भी चोरी जैसी है। वहां इतना ही होश चाहिए। बुद्धि अलग हो जाए, सजगता हो जाए। जहां भय होगा, वहां सजगता हो सकती है। जहां खतरा होता है, वहां तुम जाग जाते हो। जहां खतरा होता है, वहां विचार अपने-आप बंद हो जाते हैं।

सनातन धर्म की शक्ति उसकी शाश्वतता में है, जो हर युग में सत्य, धर्म और कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है. यह धर्म ...
06/20/2025

सनातन धर्म की शक्ति उसकी शाश्वतता में है, जो हर युग में सत्य, धर्म और कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है. यह धर्म ईश्वर, आत्मा और मोक्ष का ज्ञान प्रदान करता है और जीवन के लिए एक सर्वव्यापी मार्गदर्शक है.
सनातन धर्म की शक्ति के बारे में कुछ मुख्य बातें:
शाश्वतता:
यह धर्म अनादि से है और मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है, जो इसे विश्व का सबसे प्राचीन धर्म बनाता है.
सत्य, धर्म और कर्म:
यह धर्म सत्य, धर्म और कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, जो जीवन के लिए आवश्यक हैं.
ईश्वर, आत्मा और मोक्ष:
सनातन धर्म ईश्वर, आत्मा और मोक्ष का ज्ञान प्रदान करता है, जो जीवन के उद्देश्य और अर्थ को समझने में मदद करते हैं.
समग्र दृष्टिकोण:
यह धर्म जीवन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो आध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत सभी पहलुओं को शामिल करता है.
दैनिक जीवन में अभ्यास:
सनातन धर्म के अभ्यास दैनिक जीवन में शामिल हैं, जो लोगों को धार्मिक रूप से जीने, काम करने और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं.
अहिंसा और दया:
सनातन धर्म में अहिंसा, दया, क्षमा और यम-नियम जैसे मूल्यों को महत्व दिया जाता है, जो मानव कल्याण के लिए आवश्यक हैं.

🌺ॐ श्री महा कलिकायै नमः🌺
06/14/2025

🌺ॐ श्री महा कलिकायै नमः🌺

ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्यःसर्वेभ्यस् सर्व सर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्र रूपेभ्यः🌺
06/08/2025

ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्यः
सर्वेभ्यस् सर्व सर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्र रूपेभ्यः🌺

🌺महादेव🌺
05/24/2025

🌺महादेव🌺

🌺मा गांगा🌺
05/21/2025

🌺मा गांगा🌺

🌺शून्य🌺
05/14/2025

🌺शून्य🌺

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