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भीमव्वा डोड्डबलप्पा शिल्लेकेयथारा: कर्नाटक की निडर स्वतंत्रता सेनानीभीमव्वा डोड्डबलप्पा शिल्लेकेयथारा भारत के स्वतंत्रता...
05/18/2025

भीमव्वा डोड्डबलप्पा शिल्लेकेयथारा: कर्नाटक की निडर स्वतंत्रता सेनानी

भीमव्वा डोड्डबलप्पा शिल्लेकेयथारा भारत के स्वतंत्रता संग्राम की उन वीर महिलाओं में से थीं, जिनका साहस, समर्पण और संघर्ष भले ही इतिहास के पन्नों में सीमित रह गया हो, लेकिन उनकी भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। कर्नाटक की इस बहादुर बेटी ने आज़ादी की लड़ाई में जो योगदान दिया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।

जीवन परिचय और संघर्ष की शुरुआत
भीमव्वा का जन्म कर्नाटक के एक साधारण लेकिन जागरूक परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनके अंदर अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत थी। जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में देशभर में स्वतंत्रता आंदोलन की लहर फैली, तब भीमव्वा ने भी पीछे हटने की बजाय उसमें भाग लिया। वे ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के विरुद्ध डटकर खड़ी हुईं।

ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी
भीमव्वा ने अपने साथियों के साथ मिलकर आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भागीदारी निभाई। उन्होंने निडर होकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया। उनकी गतिविधियाँ इतनी प्रभावशाली थीं कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार गिरफ्तार किया। लेकिन हर बार वह और अधिक दृढ़ निश्चय के साथ लौटती रहीं।

एक अमिट छाप
भीमव्वा उन चंद महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने यह साबित कर दिखाया कि भारत की बेटियां केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं — वे राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की बाज़ी भी लगा सकती हैं। उनका जीवन एक उदाहरण है कि सच्चा देशभक्त वह होता है जो डर से नहीं, बल्कि कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर संघर्ष करता है।

आज भी भीमव्वा डोड्डबलप्पा शिल्लेकेयथारा का नाम हर उस युवा के दिल में जोश भरता है, जो अपने देश से सच्चा प्रेम करता है। उनका जीवन और संघर्ष हमें सिखाता है कि आज़ादी की राह कभी आसान नहीं होती, लेकिन यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।

चंद्रो तोमर, जिन्हें 'शूटर दादी' के नाम से जाना जाता है, भारतीय महिला सशक्तिकरण की एक प्रेरणादायक मिसाल थीं। उनका जन्म 1...
05/18/2025

चंद्रो तोमर, जिन्हें 'शूटर दादी' के नाम से जाना जाता है, भारतीय महिला सशक्तिकरण की एक प्रेरणादायक मिसाल थीं। उनका जन्म 10 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के शामली जिले में हुआ था। अपने जीवन के कई वर्षों तक उन्होंने पारंपरिक घरेलू जिम्मेदारियाँ निभाईं, लेकिन 60 वर्ष की उम्र के बाद जो सफर उन्होंने शुरू किया, उसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

उनकी प्रेरणादायक यात्रा तब शुरू हुई जब उनकी पोती शैफाली जोहरी राइफल क्लब में निशानेबाजी सीखना चाहती थीं। अकेले जाने में झिझक रही शैफाली के साथ चंद्रो तोमर क्लब पहुंचीं। जब शैफाली बंदूक लोड नहीं कर सकी, तो चंद्रो ने मदद करते हुए खुद बंदूक थामी और पहला ही निशाना सीधा लक्ष्य पर लगा दिया। यह देख कोच फारूक पठान इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने चंद्रो को प्रशिक्षण लेने का सुझाव दिया, जिसे उन्होंने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।

इसके बाद उन्होंने नियमित अभ्यास शुरू किया और कई राज्य व राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। उन्होंने 25 से अधिक पदक जीते और चेन्नई में आयोजित वेटरन शूटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक भी हासिल किया। उनकी सफलता ने न केवल उन्हें, बल्कि उनके परिवार और गाँव की कई महिलाओं को भी आत्मविश्वास और नई दिशा दी। उनकी देवरानी प्रकाशी तोमर और पोती शैफाली भी बाद में निशानेबाज बनीं।

उनके जीवन पर आधारित फिल्म 'सांड की आंख' वर्ष 2019 में रिलीज हुई, जिसमें तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर ने उनके जीवन को बड़े पर्दे पर सजीव रूप से प्रस्तुत किया। यह फिल्म लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गई।

30 अप्रैल 2021 को कोविड-19 के कारण 89 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। पूरे देश ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की, और आज भी उनकी यादें लोगों के दिलों में जीवित हैं।

चंद्रो तोमर यह साबित करती हैं कि उम्र कभी भी किसी सपने की राह में बाधा नहीं बन सकती। उनका समर्पण, संघर्ष और आत्मविश्वास आज भी अनेक महिलाओं को अपनी पहचान बनाने की प्रेरणा देता है।

सिंधुताई सपकाल की कहानी एक असाधारण संघर्ष, सेवा और ममता की मिसाल है। उनका जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले...
05/18/2025

सिंधुताई सपकाल की कहानी एक असाधारण संघर्ष, सेवा और ममता की मिसाल है। उनका जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने सामाजिक भेदभाव और गरीबी का सामना किया। कम उम्र में उनकी शादी कर दी गई, लेकिन जीवन ने उन्हें कई कठिनाइयों के रास्ते पर ला खड़ा किया। जब उनके पति ने उन्हें घर से निकाल दिया और समाज ने उन्हें ठुकरा दिया, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी।

अपने दुख और अकेलेपन को उन्होंने दूसरों की मदद का जरिया बना लिया। उन्होंने सड़कों पर लावारिस और बेसहारा बच्चों को देखा और उन्हें अपना लिया। एक-एक कर कई बच्चों को गोद लिया, उन्हें घर, शिक्षा और स्नेह दिया। वे अपने जीवन को इन बच्चों की सेवा में समर्पित कर चुकी थीं।

सिंधुताई सपकाल को 'अनाथों की माँ' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने न केवल इन बच्चों को ममता दी, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन जीने की राह दिखाई।

उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:

* उन्होंने 40 वर्षों में 1000 से अधिक अनाथ बच्चों को गोद लिया और उन्हें संवारने का कार्य किया
* कई संस्थानों की स्थापना की, जिनमें आज भी 1500 से अधिक बच्चे रहते हैं
* उनके बच्चों में कई आज डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और समाजसेवी हैं
* उन्हें देशभर में अनेक पुरस्कार मिले, जिनमें पद्मश्री सम्मान भी शामिल है
* उनका जीवन सेवा, त्याग और इंसानियत का प्रतीक बन गया है

सिंधुताई का 4 जनवरी 2022 को निधन हुआ, लेकिन उनके कार्य और उनके आदर्श आज भी जीवित हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची माँ वह होती है जो बिना किसी स्वार्थ के, केवल प्रेम और कर्तव्य के लिए जीती है।

अंजिनेय यादव की कहानी सच्चे अर्थों में प्रेरणादायक है। उन्होंने अपनी कमाई से धीरे-धीरे बचत कर 40,000 रुपये इकट्ठा किए और...
05/18/2025

अंजिनेय यादव की कहानी सच्चे अर्थों में प्रेरणादायक है। उन्होंने अपनी कमाई से धीरे-धीरे बचत कर 40,000 रुपये इकट्ठा किए और 11 लड़कियों को मुफ्त में साइकिलें वितरित कीं। यह एक सराहनीय और मानवीय कार्य है, जिसने उनके गांव के बच्चों की शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

अंजिनेय ने देखा कि गांव की कई छात्राएं स्कूल पैदल जाती थीं, जिससे उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। यह देखकर उन्होंने ठान लिया कि वे कुछ बदलाव लाएंगे। अपनी सीमित आय में से नियमित रूप से थोड़ा-थोड़ा पैसा बचाकर उन्होंने साइकिलें खरीदीं और उन्हें उन बच्चों को भेंट की, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।

यह उदाहरण बताता है कि किसी की मदद करने के लिए अमीर होना जरूरी नहीं होता, बल्कि एक संवेदनशील दिल और मजबूत इरादा ही काफी है। अंजिनेय यादव की पहल ने न सिर्फ शिक्षा की राह आसान की, बल्कि पूरे समाज को एक सकारात्मक संदेश भी दिया।

उनकी इस सोच और समर्पण के लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम चाहें, तो अपने छोटे-छोटे प्रयासों से भी दूसरों की जिंदगी में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।

हरियाणा के नूंह में हुई हिंसा के दौरान IPS ममता सिंह ने 2500 लोगों को सुरक्षित निकाला31 जुलाई 2023 को हरियाणा के नूंह जि...
05/17/2025

हरियाणा के नूंह में हुई हिंसा के दौरान IPS ममता सिंह ने 2500 लोगों को सुरक्षित निकाला

31 जुलाई 2023 को हरियाणा के नूंह जिले में विश्व हिंदू परिषद की ब्रजमंडल यात्रा के दौरान हिंसा भड़की, जिससे इलाके में दहशत फैल गई। इस हिंसा के बीच नलहड़ के शिव मंदिर में करीब 2500 लोग फंस गए थे, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे। मंदिर के बाहर गोलीबारी और पत्थरबाजी हो रही थी, जिससे वहां से निकलना मुश्किल हो गया था। इस संकट में हरियाणा पुलिस की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADGP) और IPS अधिकारी ममता सिंह ने बड़ी समझदारी और बहादुरी दिखाते हुए इन लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला। उनकी इस बहादुरी की हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज समेत कई लोगों ने तारीफ की।

हिंसा कैसे शुरू हुई

नूंह में हिंसा तब शुरू हुई जब विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की ब्रजमंडल यात्रा के दौरान कुछ लोगों ने पथराव किया। यह जल्दी ही हिंसक हो गया, कई गाड़ियां जला दी गईं और गोली चली। इस हिंसा में दो होमगार्ड जवानों समेत छह लोगों की मौत हो गई, कई घायल हुए। नूंह और गुरुग्राम में धारा 144 लगाई गई और इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई।

ममता सिंह की भूमिका

IPS ममता सिंह, जो 1996 बैच की अधिकारी हैं, को सूचना मिली कि नलहड़ के शिव मंदिर में 2500 लोग फंसे हैं। वे तुरंत मौके पर पहुंचीं और वहां की भयावह स्थिति देखी। उन्होंने पहले लोगों को शांत किया और भरोसा दिलाया कि वे सुरक्षित बाहर निकलेंगे। उन्होंने लोगों को छोटे समूहों में बांटकर कवर फायरिंग के साथ बाहर निकालने का फैसला किया। पुलिस की एक टीम ने कवर फायरिंग की और दूसरी टीम ने लोगों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया। यह काम करीब दो घंटे में पूरा हुआ। ममता सिंह के साथ अन्य अधिकारी भी मौजूद थे।

गृह मंत्री की तारीफ

हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने ममता सिंह की बहादुरी की जमकर प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ममता सिंह ने फंसे लोगों को तुरंत सुरक्षित निकालकर एक साहसिक काम किया। उन्हें “लेडी सिंघम” कहकर सम्मानित किया।

ममता सिंह का परिचय

ममता सिंह उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की रहने वाली हैं और 1996 बैच की हरियाणा कैडर की IPS अधिकारी हैं। उनके पिता किसान थे और उनके दादा भी IPS अधिकारी रहे। उन्होंने MBBS की पढ़ाई शुरू की थी, लेकिन बाद में पुलिस सेवा में जाने का निर्णय लिया। उनके पति भी हरियाणा कैडर के IPS अधिकारी हैं। ममता सिंह ने नक्सल विरोधी अभियानों में काम किया है और मानवाधिकार आयोग में भी सेवाएं दी हैं। उन्हें 2022 में राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया।

अफवाहों का खंडन

हिंसा के दौरान कुछ अफवाहें फैलीं कि मंदिर में फंसी महिलाओं के साथ गलत व्यवहार हुआ, लेकिन ममता सिंह ने इस बात को पूरी तरह गलत बताया। उन्होंने कहा कि वह घटना स्थल पर थीं और ऐसी कोई घटना नहीं हुई। उन्होंने अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी।

निष्कर्ष

IPS ममता सिंह की बहादुरी और त्वरित फैसलों ने नूंह हिंसा के दौरान 2500 लोगों की जान बचाई। उनकी यह बहादुरी हरियाणा पुलिस के लिए गर्व की बात है और पूरे देश में सराही गई। ममता सिंह ने साबित कर दिया कि वे संकट में भी लोगों की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती हैं।

यह सच में एक भावुक कर देने वाली कहानी है। एक ठेलेवाले ने अपनी बेटी के जन्म को सेलिब्रेट करने के लिए हजारों रुपए के गोलगप...
05/17/2025

यह सच में एक भावुक कर देने वाली कहानी है। एक ठेलेवाले ने अपनी बेटी के जन्म को सेलिब्रेट करने के लिए हजारों रुपए के गोलगप्पे मुफ्त बांट दिए — यह दिखाता है कि बेटियां भी उतनी ही खुशियों का कारण होती हैं जितने बेटे।

उनका यह कदम समाज को एक सकारात्मक संदेश देता है कि बेटियों को भी वही प्यार, सम्मान और गर्व मिलना चाहिए। ऐसे उदाहरण समाज में सोच बदलने की दिशा में एक मजबूत कदम हैं।

आइए हम सब इस प्यारे पिता को सलाम करें और उनकी सोच को सराहें।
क्या आप भी इस खूबसूरत पहल को एक लाइक और शेयर देकर सम्मान नहीं देना चाहेंगे?

पुनम कश्यप: एक प्रेरणादायक बाइक मैकेनिक की कहानीगाजियाबाद की रहने वाली पुनम कश्यप ने विपरीत परिस्थितियों में हार मानने क...
05/17/2025

पुनम कश्यप: एक प्रेरणादायक बाइक मैकेनिक की कहानी

गाजियाबाद की रहने वाली पुनम कश्यप ने विपरीत परिस्थितियों में हार मानने की बजाय एक नया रास्ता चुना। जब उनके पति को पैरालिसिस हुआ और परिवार की आमदनी रुक गई, तब घर और बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह उनके कंधों पर आ गई। अपने पति के इलाज और दो बेटियों की पढ़ाई के लिए उन्होंने एक ऐसा पेशा चुना जो आमतौर पर पुरुषों से जुड़ा माना जाता है—बाइक मैकेनिक बनना। यह कहानी साहस, मेहनत और आत्मनिर्भरता की मिसाल है।

*जीवन की चुनौतियाँ*

उनके पति की बीमारी ने परिवार की आर्थिक रीढ़ तोड़ दी। इलाज का खर्च, रोजमर्रा की जरूरतें और बेटियों की पढ़ाई ने उन्हें घेर लिया। समाज की पारंपरिक सोच के बीच पुनम ने हार नहीं मानी और खुद को मजबूत बनाकर आगे बढ़ने का फैसला किया। उन्होंने तय किया कि अब वह खुद परिवार का सहारा बनेंगी।

*बाइक मैकेनिक बनने की राह*

पुनम ने गाजियाबाद में एक छोटी सी बाइक रिपेयर की दुकान खोली। शुरुआत आसान नहीं थी। बाइक मैकेनिक का काम आम तौर पर पुरुषों का माना जाता है, इसलिए उन्हें कई तरह की बातों और नजरों का सामना करना पड़ा। उन्हें टेक्निकल जानकारी नहीं थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने पास के मैकेनिक से सीखना शुरू किया और धीरे-धीरे बाइक रिपेयरिंग में दक्षता हासिल की।

*परिवार के लिए प्रेरणा*

आज पुनम अपनी बेटियों की पढ़ाई के साथ-साथ पति का इलाज भी करा रही हैं। उनकी मेहनत और संघर्ष ने उनके परिवार को नई दिशा दी है। उनकी बेटियाँ उन्हें अपना आदर्श मानती हैं और भविष्य में खुद भी आत्मनिर्भर बनने का सपना देख रही हैं।

*सामाजिक असर*

पुनम की कहानी गाजियाबाद ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है। उनकी हिम्मत ने कई महिलाओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कोई भी काम सिर्फ पुरुषों के लिए नहीं होता। उनके ग्राहक न केवल उनकी मेहनत की सराहना करते हैं, बल्कि उन्हें सम्मान की नजर से देखते हैं।

*निष्कर्ष*

पुनम कश्यप ने यह साबित किया है कि मुश्किलें चाहे जितनी भी बड़ी हों, अगर इरादा मजबूत हो तो हर बाधा को पार किया जा सकता है। उन्होंने अपने संघर्ष से यह दिखा दिया कि सच्ची ताकत हमारे भीतर होती है। आज वे सिर्फ एक बाइक मैकेनिक नहीं, बल्कि एक मिसाल हैं—हर उस व्यक्ति के लिए जो अपने हालात से लड़कर कुछ करना चाहता है।

एक छोटी सी खरोंच लगती है तो हम दर्द से कराह उठते हैं...और ये हमारे रक्षक हैं, जो बिना शिकायत सब कुछ सह जाते हैं।हमारा कर...
05/17/2025

एक छोटी सी खरोंच लगती है तो हम दर्द से कराह उठते हैं...
और ये हमारे रक्षक हैं, जो बिना शिकायत सब कुछ सह जाते हैं।
हमारा कर्तव्य है कि हम उनका सम्मान करें।
जय हिन्द।

हरियाणा के रेवाड़ी शहर में एक प्रेरणादायक घटना ने समाज में मानवता और सहयोग की मिसाल पेश की है। यहां किन्नर समाज ने एक गर...
05/17/2025

हरियाणा के रेवाड़ी शहर में एक प्रेरणादायक घटना ने समाज में मानवता और सहयोग की मिसाल पेश की है। यहां किन्नर समाज ने एक गरीब ऑटो चालक की बेटी की शादी का पूरा खर्च उठाकर न केवल उस परिवार की मदद की, बल्कि एक सकारात्मक सामाजिक संदेश भी दिया। इस शादी में किन्नर समाज ने लाखों रुपये का दहेज, सोने-चांदी के आभूषण और अन्य आवश्यक सामान प्रदान किया, जिससे यह घटना चर्चा का विषय बन गई।

रेवाड़ी के मोहल्ला बाला सराय में रहने वाले एक ऑटो चालक हाल ही में सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे। पहले से ही आर्थिक रूप से कमजोर यह परिवार अब और अधिक कठिनाई में था। उनके परिवार में तीन बेटियां और एक बेटा है। उनकी सबसे बड़ी बेटी, पायल, की शादी 6 दिसंबर 2024 को तय थी, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण वे इसकी तैयारी नहीं कर पा रहे थे।

ऐसे समय में ऑटो चालक ने रेवाड़ी की गुरु महंत किन्नर काजल और सोनिया से सहायता की अपील की। जब उन्होंने अपनी स्थिति साझा की, तो गुरु महंत काजल ने आश्वासन दिया कि शादी का सारा खर्च किन्नर समाज वहन करेगा। शादी के दिन किन्नर समाज के सदस्य ढोल-नगाड़ों और गीतों के साथ पायल के घर पहुंचे। उन्होंने शादी की सभी तैयारियों की जिम्मेदारी ली और लाखों रुपये मूल्य का दहेज, जिसमें सोने-चांदी के जेवर, मोबाइल फोन, बर्तन, वस्त्र और अन्य घरेलू सामान शामिल था, भेंट स्वरूप दिया।

गुरु महंत काजल ने बताया कि यह उनकी ओर से पांचवीं बेटी की शादी थी, जिसमें उन्होंने पूरा खर्च वहन किया। उनके साथ वीरेंद्र, नीरज और अमरपाल जैसे अन्य धर्म भाई भी शामिल थे, जिन्होंने इस शादी में 51 हजार रुपये का भात और एक चांदी का सिक्का प्रदान किया। किन्नर समाज ने न केवल आर्थिक सहायता दी, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों, शगुन गीतों और नोटों की बारिश के साथ शादी को यादगार बना दिया।

गुरु महंत काजल ने समाज को यह संदेश भी दिया कि यदि कोई गरीब पिता अपनी बेटी की शादी में असमर्थ है, तो वह बेझिझक किन्नर समाज से संपर्क कर सकता है। वे हरसंभव सहायता के लिए तैयार हैं। यह भावना किन्नर समाज की उदारता और सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाती है।

इस घटना ने रेवाड़ी और उसके आसपास के क्षेत्रों में एक नई चर्चा को जन्म दिया है। किन्नर समाज के इस योगदान ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि सामाजिक भेदभाव, जाति, धर्म और वर्ग की सीमाओं से परे भी सहयोग और सहानुभूति संभव है। यह शादी सिर्फ एक परिवार की खुशी नहीं थी, बल्कि सामाजिक एकता और इंसानियत की गूंज भी थी।

रेवाड़ी में किन्नर समाज की यह पहल समाज के लिए अनुकरणीय उदाहरण है। यह दिखाता है कि जब समाज के विभिन्न वर्ग एक-दूसरे की सहायता के लिए आगे आते हैं, तो कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है। इस घटना ने दहेज और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दों पर भी समाज को एक नया दृष्टिकोण दिया है। ऐसी पहलों से ही समाज अधिक समावेशी और सहानुभूतिपूर्ण बनता है।

सुनीता कृष्णन एक प्रेरणादायक समाज सेविका हैं, जिन्होंने अपने जीवन की त्रासदियों को पीछे छोड़कर हजारों लड़कियों और महिलाओ...
05/17/2025

सुनीता कृष्णन एक प्रेरणादायक समाज सेविका हैं, जिन्होंने अपने जीवन की त्रासदियों को पीछे छोड़कर हजारों लड़कियों और महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण बन गई हैं। 15 साल की उम्र में उनके साथ 8 लोगों ने सामूहिक दु,ष्कर्म किया, जिसके कारण उनके एक कान की सुनने की क्षमता भी चली गई। इसके बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और समाज सेवा के रास्ते पर चल पड़ीं।

उनके एनजीओ प्रज्ज्वला के माध्यम से, जो यौ,न तस्करी की शिकार महिलाओं और लड़कियों के बचाव और पुनर्वास के लिए काम करता है, सुनीता ने 24,000 से अधिक लड़कियों को यौ,न तस्करी और वे,श्यावृत्ति के दलदल से मुक्त कराया है। उनके काम के दौरान उन पर 17 बार जानलेवा हमले हुए, जिसमें एसिड अ,टैक, ज,हर देने की कोशिश, और तलवार से हमले शामिल हैं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

बेंगलुरु में जन्मी सुनीता ने बचपन से ही समाज सेवा शुरू कर दी थी। 8 साल की उम्र में वे मानसिक रूप से अक्षम बच्चों को नृत्य सिखाती थीं, और 12 साल की उम्र में झुग्गियों में स्कूल चलाती थीं। 2016 में उन्हें पद्मश्री और मदर टेरेसा अवॉर्ड जैसे सम्मानों से नवाजा गया। उन्होंने 14 डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाईं, जो एचआईवी, यौन तस्करी और वेश्यावृत्ति जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाती हैं।

सुनीता कृष्णन की कहानी साहस, दृढ़ संकल्प और मानवता की सेवा का जीवंत उदाहरण है।

चांदनकी: एक गांव जहां रसोई नहीं, रिश्ते बनते हैंगुजरात के मेहसाना जिले में स्थित चांदनकी गांव अपनी अनोखी जीवनशैली के लिए...
05/17/2025

चांदनकी: एक गांव जहां रसोई नहीं, रिश्ते बनते हैं

गुजरात के मेहसाना जिले में स्थित चांदनकी गांव अपनी अनोखी जीवनशैली के लिए जाना जाता है। लगभग 1100 की आबादी वाला यह गांव, जिसमें ज्यादातर बुजुर्ग रहते हैं, एक ऐसा स्थान है जहां घरों में चूल्हे नहीं जलते। इसके बजाय, यहां हर दिन दोपहर और शाम को सामुदायिक रसोई में पकने वाला खाना पूरे गांव को एक सूत्र में बांधता है।

गांव के बीच बने सोलर-एयरकंडीशन्ड हॉल में, आधुनिकता और परंपरा का सुंदर मेल देखने को मिलता है। इस हॉल में सभी गांववासी एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। दाल की सोंधी खुशबू, रोटी की गरमाहट और सब्जियों का स्वाद सिर्फ भूख ही नहीं, मन को भी संतोष देता है। पहले महिलाओं को परोसा जाता है, फिर पुरुषों को—यह क्रम केवल व्यवस्था नहीं, बल्कि सम्मान और संस्कृति की झलक है। यहां आने वाला हर मेहमान भी उसी थाली में भोजन करता है, जैसे वह इस बड़े परिवार का हिस्सा हो।

यह सामुदायिक रसोई पिछले दस वर्षों से गांव के बुजुर्गों, विशेष रूप से बीमार और अकेले रह रही महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हुई है। जहां गांव के युवा रोजगार की तलाश में शहरों का रुख कर चुके हैं, वहीं यह रसोई गांव के सामाजिक जीवन की धड़कन बन गई है। मामूली शुल्क में मिलने वाला यह भोजन न केवल पोषण देता है, बल्कि लोगों के बीच जुड़ाव और सहारा भी बनता है।

चांदनकी गांव सहयोग, अपनापन और साझा संस्कृति का जीवंत उदाहरण है। यह गांव दिखाता है कि रसोई सिर्फ खाना पकाने की जगह नहीं होती, बल्कि वह स्थान होती है जहां संबंधों की गर्माहट तैयार होती है, और साथ बैठकर खाए गए निवाले समाज को मजबूती देते हैं।

चांदनकी, सच मायनों में, एक गांव से कहीं अधिक—एक सोच, एक प्रेरणा है।

तलवारबाज नदा हाफेज ने पेरिस ओलंपिक 2024 में सात महीने की गर्भवती होने के बावजूद हिस्सा लेकर दुनिया भर में सराहना बटोरी। ...
05/17/2025

तलवारबाज नदा हाफेज ने पेरिस ओलंपिक 2024 में सात महीने की गर्भवती होने के बावजूद हिस्सा लेकर दुनिया भर में सराहना बटोरी। 26 वर्षीय नदा, जो मेडिसिन की डिग्री रखती हैं और पूर्व जिमनास्ट भी रह चुकी हैं, तीन बार की ओलंपियन हैं। 2019 के अफ्रीकी खेलों में उन्होंने व्यक्तिगत और टीम सेबर स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था।

पेरिस ओलंपिक में उन्होंने महिलाओं की सेबर स्पर्धा में राउंड 16 तक का सफर तय किया। इस दौरान उन्होंने अमेरिका की एलिजाबेथ टार्टाकोवस्की को हराकर बड़ा उलटफेर किया, हालांकि बाद में कोरिया की जियोन हेयंग से हार का सामना करना पड़ा। भले ही वे पदक नहीं जीत सकीं, लेकिन उनके साहस और गर्भावस्था के दौरान खेल में हिस्सा लेने के फैसले ने लाखों लोगों को प्रेरित किया।

नदा ने इंस्टाग्राम पर लिखा, "मेरे गर्भ में एक छोटा ओलंपियन पल रहा है। गर्भावस्था की शारीरिक और मानसिक चुनौतियों के बावजूद, मैंने जीवन और खेल के बीच संतुलन बनाए रखा। मुझे राउंड 16 तक पहुंचने पर गर्व है।" उन्होंने अपने पति और परिवार के सहयोग को भी इस सफर का अहम हिस्सा बताया।

नदा हाफेज की यह कहानी साबित करती है कि जुनून, समर्पण और आत्मविश्वास के साथ कोई भी सीमा पार की जा सकती है।

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