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शब्दयुग्म | शब्दों का शहर

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नया साल हम सब को खूब खूब मुबारक 👏🎼🎞️       #2025
01/01/2025

नया साल हम सब को खूब खूब मुबारक 👏🎼🎞️

#2025

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिकेशरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुतेशुभ नवरात्रि 🙏🙏
10/03/2024

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते

शुभ नवरात्रि 🙏🙏

शब्दयुग्म का पहला प्रकाशनअनुज अज्ञात द्वारा लिखित ‘सारा जगत अधूरा सा’ किंडल - प्री-बुकिंग शुरू हो चुकी है।https://a.co/d...
08/21/2024

शब्दयुग्म का पहला प्रकाशन
अनुज अज्ञात द्वारा लिखित ‘सारा जगत अधूरा सा’

किंडल - प्री-बुकिंग शुरू हो चुकी है।

https://a.co/d/0KnKxRf

सारा जगत अधूरा सा: The world remains a puzzle with missing pieces (Hindi Edition)

स्वतंत्रता दिवस की हम सब को खूब मुबारकबाद 🇮🇳🇮🇳जय हिन्द 🇮🇳🇮🇳
08/15/2024

स्वतंत्रता दिवस की हम सब को खूब मुबारकबाद 🇮🇳🇮🇳

जय हिन्द 🇮🇳🇮🇳

There is no such thing as a vote that doesn’t matter. - Barack Obama
05/20/2024

There is no such thing as a vote that doesn’t matter.

- Barack Obama

आज आदमी पी रहा है अपनी प्यासऔर भर रहा है अपने को अपनी भूख सेमिलती है जब भी दो बूँद कहीं… कभी,जल उठता है ख़ुद हीख़ुद में ...
05/16/2024

आज आदमी पी रहा है अपनी प्यास
और भर रहा है अपने को अपनी भूख से
मिलती है जब भी दो बूँद
कहीं… कभी,
जल उठता है ख़ुद ही
ख़ुद में लगी आग से।

- मनीष मिश्र

केवल प्रेम ही वास्तविकता है,ये महज एक भावना नहीं है।यह एक परम सत्य है,जो सृजन के ह्रदय में वास करता है।- रवींद्रनाथ टैगो...
05/08/2024

केवल प्रेम ही वास्तविकता है,
ये महज एक भावना नहीं है।
यह एक परम सत्य है,
जो सृजन के ह्रदय में वास करता है।

- रवींद्रनाथ टैगोर

#शब्द #शब्दयुग्म

बात यह है कि तब वह जवान था। आँखें मजबूत थीं। सपने देख सकती थी , तो उसने अपनी आँखों को कोई और काम सिखलाया ही नहीं और फिर ...
04/28/2024

बात यह है कि तब वह जवान था। आँखें मजबूत थीं। सपने देख सकती थी , तो उसने अपनी आँखों को कोई और काम सिखलाया ही नहीं और फिर ऐसा हुआ कि सपनो का बाज़ार मंदा हो गया जिंदगी बाजार का उतार चढाव होकर रह गई।

- राही मासूम रज़ा

आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का;आज उठता और कल फिर फूट जाता है;किन्तु, फिर भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो?बुलबुलों से खेलता...
04/27/2024

आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का;
आज उठता और कल फिर फूट जाता है;
किन्तु, फिर भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।

मैं न बोला, किन्तु, मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से, चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

- रामधारी सिंह दिनकर

#शब्दयुग्म

नफ़रत की आग में शुरुआती धधक उस आँच की तरह होती है, जो धीरे धीरे धुएँ में मिलकर सब जला कर राख रख देती है... … ख़ासकर वर्त...
04/25/2024

नफ़रत की आग में
शुरुआती धधक उस आँच की तरह होती है,
जो धीरे धीरे धुएँ में मिलकर
सब जला कर राख रख देती है...

… ख़ासकर वर्तमान के भविष्य को।

- अश्वनी

#शब्दयुग्म

गाँव में ईद फिरा करती थी गलियाँ गलियाँ और इस शहर में थक कर यूँही सो जाती है पहले हँसती थी हँसाती थी खेलाती थी मुझे अब तो...
04/10/2024

गाँव में ईद फिरा करती थी गलियाँ गलियाँ
और इस शहर में थक कर यूँही सो जाती है

पहले हँसती थी हँसाती थी खेलाती थी मुझे
अब तो वो पास भी आती है तो रो जाती है

कितनी मस्ताना सी थी ईद मिरे बचपन की
अब ख़यालों में भी लाता हूँ तो खो जाती है

हम कभी ईद मनाते थे मनाने की तरह
अब तो बस वक़्त गुज़रता है तो हो जाती है

हम बड़े होते गए ईद का बचपन न गया
ये तो बच्चों की है बच्चों ही की हो जाती है

- सलाहुद्दीन अय्यूब (ईद)

समस्त एकाधिकार एवं संग्रह -

#शब्दयुग्म

सभी को शुभ होली । रंग मुबारक 💦💦जो कुछ होनी थी, सब होली।धूल उड़ी या रंग उड़ा है,हाथ रही अब कोरी झोली।आँखों में सरसों फूली ...
03/24/2024

सभी को शुभ होली । रंग मुबारक 💦💦

जो कुछ होनी थी, सब होली।

धूल उड़ी या रंग उड़ा है,
हाथ रही अब कोरी झोली।

आँखों में सरसों फूली है,
सजी टेसुओं की है टोली।

पीली पड़ी अपत, भारत-भू,
फिर भी नहीं तनिक तू डोली।

- मैथिलीशरण गुप्त

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