09/05/2023
*लॉकडाउन में मसीहा बनकर जब हमारे बीच पहुंचे अरशद जमाल!*
*~ अब्दुल हलीम साहब (कोपागंजी) की कलम से*
० लॉक डाउन फेज़ 1 में दारुल उलूम देवबंद से वापस आए बहुत से बच्चों में हमारे भाई साहब भी शामिल थे। सूरत ए हाल कुछ यूं थी कि कोपागंज का रहने वाला एक लड़का कोरोना पॉजिटिव हो गया जिसकी वजह से बाकी बच्चों को भी डिटेन करके लिटिल फ्लावर चिल्ड्रेन स्कूल के करीब एक प्राइवेट स्कूल में ही क्वारेंटाईन कर दिया गया।
अरशद जमाल से हमारी बात हो चुकी थी जिन्होंने हमें यकीन दिलाया कि मैं इस तश्वीसनाक सूरत ए हाल में आपको हरगिज़ तन्हा नहीं छोडूंगा और आपके दुख-दर्द शरीक होने जरूर आऊंगा। बहरहाल, शाम हो गई सूरज ढल गया, रात के दस बज गए और यहां तक कि 11: 30 हो गए। बच्चों के पास कुछ नही था...सिवाय अपने फोन मोबाइल के, मगर अरशद जमाल ने कहा था कि मैं आऊंगा तो वो आए भी और खाली हाथ नहीं बल्कि सारी चीज़े अपने साथ लेकर आए। यहां तक कि अगरबत्ती सुलगाने के लिए माचिस और ज्यादा से ज्यादा दो दिन के नाश्ते के लिए पैकेट वाले सामान भी साथ लाए।
उसी दौरान माह ए मुकद्दस (रमज़ान) भी शुरू हो गया लेकिन हमारे पास अल्हमदुलिल्लाह कोई कमी नहीं थी। कमी बस थी तो अपने बाल बच्चों की जिनके बीच हम नहीं थे। यही एक भारी कमी थी। बाकी कोई कमी नही थी। खैर यह तो फितरी था। आप अपने लोगों से इन हालात में कब तक दूर tah सकेंगे।
सेहरी के लिए चेयरमैन साहब की गाड़ी 2:30 आ जाती। घर के बने हुए खाने के साथ दूध-पाव और सब कुछ होता था। खबरगीरी के लिए कभी वो खुद और कभी दानिश भाई जरूर आते थे।
वो उस वक्त चेयरमैन के पद पर नही थे और न ही कभी क्वारेंटाईन हुए बच्चों की आप जाती मफात या नामवरी के मकसद से तस्वीर बनाई गई। यह काम सिर्फ और सिर्फ नेकनीयती से अंजाम दिया गया था। हां! चेयरमैन साहब ने इतना ज़रूर कहा था कि आप लोग मेरे हक में दुआ ए खैर करते रहिएगा।
अरशद साहब! आपका एहसान वो बच्चे तो नहीं चुका पाएंगे, मगर अल्लाह आप को कामयाब करे, इसकी दुआ वो बच्चे अक्सर ज़रूर करते रहते हैं।