30/08/2024
हनुमान की अडिग निष्ठा: भक्ति का अप्रतिम उदाहरण
त्रेतायुग का समय था। श्रीराम का वनवास चल रहा था, और माता सीता का अपहरण करके रावण उन्हें लंका ले गया था। श्रीराम अपनी प्रियतमा को वापस लाने के लिए समुद्र के किनारे खड़े थे, और उनके साथ थे वीर हनुमान, जिनकी भक्ति और शक्ति जगजाहिर थी।
हनुमान जी, जो हमेशा श्रीराम के प्रति अपनी भक्ति में लीन रहते थे, किसी भी कठिनाई का सामना करने के लिए सदैव तत्पर थे। एक दिन श्रीराम ने हनुमान को लंका जाने का आदेश दिया, यह जानने के लिए कि माता सीता किस हाल में हैं और उन्हें संदेश देने के लिए कि श्रीराम शीघ्र ही उन्हें मुक्त कराने आएंगे।
हनुमान जी ने अपनी शक्ति और निष्ठा से भरे मन से श्रीराम का आदेश स्वीकार किया। वे एक छलांग में समुद्र को पार कर लंका पहुँच गए। लेकिन लंका में प्रवेश करना इतना आसान नहीं था। लंका का रक्षक लंकिनी, जो एक भयंकर राक्षसी थी, हनुमान को रोकने के लिए खड़ी थी।
लंकिनी ने हनुमान को चुनौती दी, "यह लंका का क्षेत्र है, यहाँ बिना अनुमति कोई प्रवेश नहीं कर सकता।" हनुमान जी ने विनम्रता से कहा, "मुझे केवल माता सीता से मिलना है, मैं उनसे मिलकर लौट जाऊँगा।" लेकिन लंकिनी ने हनुमान को नहीं जाने दिया।
हनुमान जी ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए लंकिनी को एक हल्का थप्पड़ मारा। लंकिनी उसी क्षण समझ गई कि यह कोई साधारण वानर नहीं, बल्कि श्रीराम का परम भक्त हनुमान है। उसने हनुमान से क्षमा माँगी और उन्हें लंका में प्रवेश करने की अनुमति दी।
हनुमान जी लंका में प्रवेश करके सीता माता की खोज में निकल पड़े। उन्होंने लंका के हर कोने की छानबीन की, लेकिन माता सीता का कोई पता नहीं चला। अंततः, उन्हें अशोक वाटिका में माता सीता मिलीं, जो रावण के अत्याचारों का सामना कर रही थीं लेकिन अपनी भक्ति और विश्वास में अडिग थीं।
हनुमान जी ने माता सीता को श्रीराम का संदेश दिया और उन्हें आश्वासन दिया कि श्रीराम जल्द ही उन्हें रावण के चंगुल से मुक्त कराने आएंगे। माता सीता ने हनुमान जी को अपने आशीर्वाद से विभूषित किया और उन्हें श्रीराम के पास वापस भेज दिया।
लेकिन हनुमान जी का कार्य यहीं समाप्त नहीं हुआ। उन्होंने अपनी शक्ति से लंका में रावण की सेना को ध्वस्त किया, अशोक वाटिका में आग लगा दी और पूरे लंका को अपनी शक्ति का परिचय दे दिया। इसके बाद, वे श्रीराम के पास लौट आए और माता सीता की जानकारी दी।
हनुमान जी की इस यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया कि जब भक्ति और निष्ठा का संगम होता है, तब कोई भी शक्ति या चुनौती उसे रोक नहीं सकती। हनुमान जी ने अपनी अडिग भक्ति से यह दिखाया कि श्रीराम के प्रति उनका प्रेम और समर्पण असीमित है, और यही भक्ति उन्हें अमर बनाती है।
हनुमान जी की यह कहानी आज भी हमें सिखाती है कि जब हम अपने कर्तव्य और भक्ति के पथ पर चलते हैं, तो किसी भी बाधा या कठिनाई को पार करना संभव हो जाता है। हनुमान जी की अडिग निष्ठा का यह उदाहरण हमें सदा प्रेरित करता रहेगा।
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