23/05/2024
हिंदू समाज सनातन धर्म
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart68 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart69
"वृंदावन में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा से लाभ"
प्रश्न 48 (हिन्दू पक्ष): मैं गिरिराज (गोवर्धन) पर्वत की परिक्रमा करने जाता हूँ। हजारों की संख्या में श्रद्धालु परिक्रमा करने जाते हैं। हम को लाभ भी होते हैं। क्या यह भी व्यर्थ साधना है?
उत्तर :- पहले तो यह स्पष्ट करता हूँ कि गिरिराज (गोवर्धन) पर्वत की कथा क्या है। ब्रजवासी यानि श्री कृष्ण जी के कुल के व्यक्ति देवी-देवताओं की पूजा किया करते थे। श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि हम देवी-देवताओं की पूजा नहीं करेंगे, न देवताओं के राजा इन्द्र की पूजा करेंगे।
हम परमात्मा की पूजा करेंगे। देवताओं के राजा इन्द्र की भी पूजा बंद कर दी। इन्द्र ने प्रतिशोध लेने के लिए मूसलाधार बारिश करनी शुरू कर दी ब्रज नगरी को डुबोने के उद्देश्य से। श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को एक हाथ की ऊंगली पर रख लिया तथा उसको पूरे ब्रज नगरी के ऊपर फैला दिया। सब ब्रजवासियों से कहा कि अपने पशुओं सहित पर्वत के नीचे आ जाओ। वर्षा का सारा पानी गिरिराज पर्वत ने सोख लिया। इन्द्र की हार हुई। देवी-देवताओं की पूजा बंद कर दी। उस गोवर्धन पर्वत को पुनः यथास्थान पर रख दिया।
विचार करो: हिन्दू समाज गोवर्धन (गिरिराज) की परिक्रमा करते हैं और पूजा देवी-देवताओं की करते हैं। इससे तो भगवान विष्णु उर्फ श्री कृष्ण जी सख्त नाराज होता है।
यह परिक्रमा व गोवर्धन पूजा करके तो आप भगवान श्री कृष्ण जी को चिढ़ाने (खिजाने) यानि अपमान करने जाते हो। शास्त्रोक्त साधना न होने के कारण लाभ तो मिलता नहीं, परिक्रमा के समय (चक्र लगाते समय) पैरों के नीचे असँख्यों कीडे-मकोडे जीव-जन्त मरते हैं। वह पाप अवश्य लगता है याान उनका पाप आपक भाग्य म लिखा जाता है।
प्रश्न 49 :- श्री विष्णु जी स्वयं श्री कृष्ण जी व श्री राम रूप में जन्में थे। ये समर्थ परमात्मा हैं। जैसे श्री कृष्ण जी ने गिरिराज (गोवर्धन) पर्वत को हाथ पर धारण करके ब्रज नगरी को इन्द्र के प्रकोप से बचाया।
श्री रामचन्द्र रूप में समुद्र के ऊपर पुल बनाया। सेना को लंका में लेकर गए। राक्षस रावण को मारा, तेतीस करोड़ देवताओं की बंद छुड़वाई जो रावण ने कैद कर रखे थे। क्या श्री विष्णु जी पूर्ण ब्रह्म परमात्मा नहीं है?
उत्तर :- इसका उत्तर सूक्ष्मवेद में इस प्रकार दिया है कि :- कबीर, समुद्र पाट लंका गयो, सीता का भरतार।
अगस्त ऋषि ने सातों पीये, इनमें कौन करतार ? ।।1 ।। कबीर, काटे बंधन विपत्ति में, कठिन किया संग्राम। चिन्हों रे नर प्राणियाँ, गरूड़ बड़ो के राम? ।।2।। कबीर, गोवर्धन श्री कृष्ण ने धार्यो, द्रौणगिरि हनुमंत। शेषनाग सब सृष्टि उठायो, इनमें कौन भगवंत ? । ।3।।
अर्थात् वाणी नं. 1 कबीर जी ने कहा है कि समुद्र के ऊपर पुल बनाने से श्री रामचन्द्र जी जो सीता के पति को आप करतार यानि सृष्टिकर्ता मानते हैं, तो अगस्त ऋषि ने सातों समुद्रों को एक घूंट में पी लिया था। इनमें किसको कर्ता माना जाए?
वाणी नं. 2: आप कहते हो कि श्री राम ने रावण को मारकर 33 करोड़ देवताओं का बंधन छुड़वा दिया। जिस समय नागफास शस्त्र से श्री रामचन्द्र समेत सारी सेना रावण ने बांध दी थी। तब श्री रामचन्द्र जी व सेना की बंद गरूड़ ने छुड़वाई। सर्पों को काटा। इनमें अब बता! गरूड़ समर्थ है या श्री
राम।
आठवां अध्याय
241 वाणी नं. 3 श्री कृष्ण जी को आप इसीलिए परमात्मा (ईश) मानते हो कि उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। हनुमान जी ने द्रोणागिरी पर्वत को उठाया था तथा आप लोकवेद के आधार से कहते हो कि शेषनाग सारी सृष्टि को उठाए हुए है। इनमें कौन परमात्मा है? इन प्रमाणों से श्री विष्णु जी को परमात्मा नहीं माना जा सकता। शास्त्रों व आँखों देखने वाले संतों से पता चलता है कि पूर्ण परमात्मा कौन है।
प्रश्न 50 :- जो नाम हिन्दू जाप करते हैं, क्या वे मोक्षदायक व लाभदायक
नहीं हैं?
उत्तर :- हिन्दू समाज में जो नाम जाप किए जाते हैं, वे मनमाना आचरण हैं। जैसे हरे कृष्ण, हरे राम, ओम् नमः शिवाय, ओम् भगवते वासुदेवाय नमः, राधे श्याम, सीता राम, राधे-राधे श्याम मिलादे, जय माता दी, बम्ब-बम्ब महादेव, ओम् आदि। ओम् नाम को छोड़कर शेष नाम मनमाना आचरण है जो शास्त्रों में नहीं है। इसलिए इनके जाप से साधक को कोई लाभ नहीं होता।
गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में स्पष्ट है। श्री रामचन्द्र जी का जन्म त्रेतायुग के अंत में हुआ, तब तक सत्ययुग 17 लाख 28 हजार वर्ष तथा त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष का समय भी लगभग व्यतीत हो चुका था। लगभग 30 लाख वर्ष चतुर्युग के पूरे हो चुके थे। उस दौरान हरे राम, हरे कृष्ण, सीता राम, राधे श्याम का जन्म भी नहीं हुआ था। उस समय के व्यक्ति इनका जाप नहीं करते थे। वे ओम् नाम मनमाना आचरण तप करते थे।
एक लाख वर्ष तक सनातनी साधना की जाती थी। उसके पश्चात् मनमाना आचरण का दौर चला जो आज तक जारी है।
मोक्ष होगा तत्त्वदर्शी संत द्वारा बताए सूक्ष्मवेद में वर्णित भक्ति विधि से। हिन्दू समाज पुराणों को आगे अड़ाता है कि पुराणों में यह साधना करना
लिखा है।
विचार करो :- पुराण तो मनमाना आचरण करने वालों का अपना अनुभव है जो वेदों गीता तथा सूक्ष्मवेद से मेल नहीं करता। इसलिए ये साधना व्यर्थ है। तत्त्वदर्शी संत बताएगा कि परमात्मा कौन है? सत्य साधना कौन-सी है, गलत कौन सी है? गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में स्पष्ट है कि गीता ज्ञान भी पूर्ण नहीं है, परंतु गलत भी नहीं। इसलिए तत्त्वदर्शी संत से जानने को कहा है। तत्त्वदर्शी संत बताएगा। अब वह ज्ञान पढ़ते हैं :-
242
हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
"नौवां अध्याय"
"हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे निर्मल वेद ज्ञान"
अब वेदों से प्रमाणित करता हूँ कि पूर्ण परमात्मा कौन है? :-
चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) हिन्दू धर्म की रीढ़ माने जाते हैं। इन्हीं का सारांश श्रीमद्भगवत गीता है। चारों वेद परमात्मा की जानकारी रखते हैं। उसके लक्षण बताते हैं। परमात्मा कौन है? कैसा है? निराकार है या साकार है? कैसी लीला करता है? निवास स्थान कहाँ है? जिस किसी की लीलाएँ वेदों के अनुसार हैं, वह परमात्मा है। वेदों का ज्ञान कबीर जी पर खरा उतरता है :-
हिन्दू धर्म के व्यक्ति चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) के ज्ञान को सत्य मानते हैं। वेदों में परमेश्वर की महिमा बताई है। परमेश्वर की पहचान भी बताई है। बताया है कि सृष्टि की उत्पत्ति करने वाला परमेश्वर साकार यानि नराकार है जो इस प्रकार है :-
परमात्मा आसमान में बने लोक (सतलोक ऋतधाम) में निवास करता है। वहाँ से सशरीर चलकर पृथ्वी आदि लोक-लोकान्तरों में आता है। सतलोक में परमेश्वर के शरीर का तेज असंख्यों सूर्यों के तेज (प्रकाश) से भी अधिक है। यदि उसी तेजोमय शरीर में यहाँ आए तो सबकी आँखें बंद हो जाएँ। कोई भी नहीं देख सकेगा। इसलिए परमेश्वर अपने शरीर को सरल करके यानि हल्के तेज का करके पृथ्वी आदि लोकों में आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताता है। सत्य भक्ति के नामों का आविष्कार करता है। अपने मुख से वाणी बोलकर मानव को भक्ति की प्रेरणा करता है। अपने मुख कमल से सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान कवित्व से ये सब लीला कबीर जी ने की थी। वेद भी प्रमाणित करते हैं कि कबीर जी परमेश्वर हैं।
"पवित्र वेदों से जानते हैं परम अक्षर ब्रह्म कौन है?"
यहाँ पर वेदों के मंत्रों की कुछ फोटोकॉपी लगाई हैं जिनका अनुवाद आर्य समाज के आचार्यों, शास्त्रियों ने किया है। कुछ ठीक, कुछ गलत है। परंतु सत्य फिर भी स्पष्ट है।
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